ॐ सांई राम
मैली चादर औड के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ
हे पावन परमेश्वर मेरे
मन ही मन शरमाऊँ
[मैली चादर औड के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
तुने मुझको जग में भेजा
निर्मल दे कर काया
इस संसार में आकार मैंने
इसको दाग लगाया
जनम जनम की मैली चादर
कैसे दाग छुडाऊँ
[मैली चादर औड के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
निर्मल वाणी पाकर तुझसे
नाम न तेरा गाया
नैन मूंदकर हे परमेश्वर
कभी ना तुझको ध्याया
मन वीणा की तारें टूटी
अब क्या गीत सुनाऊँ
[मैली चादर औड के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
इन पैरों से चल कर तेरे
मंदिर कभी ना आया
जहां जहां हो पूजा तेरी
कभी ना शीश झुकाया
हे हरिहर मैं हार के आया
अब क्या हार चढाऊँ
[मैली चादर औड के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]
दुनिया से हर बाज़ी जीत कर मशहूर हो गए..............!!
इतना मुस्कराए के ............आंसू दूर हो गये..............!!!!
हम कांच थे........दुनिया ने हमको फ़ेंक दिया था........!!
मगर साई जी के चरणों में आये तो कोहिनूर हो गये..!
ॐ सांई राम
दृष्टि के बदलते ही सृष्टि बदल जाती है, क्योंकि दृष्टि का परिवर्तन मौलिक परिवर्तन है। अतः दृष्टि को बदलें सृष्टि को नहीं, दृष्टि का परिवर्तन संभव है, सृष्टि का नहीं। दृष्टि को बदला जा सकता है, सृष्टि को नहीं। हाँ, इतना जरूर है कि दृष्टि के परिवर्तन में सृष्टिभी बदल जाती है। इसलिए तो सम्यकदृष्टि की दृष्टि में सभी कुछ सत्य होता है और मिथ्या दृष्टि बुराइयों को देखता है। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ हमारी दृष्टि पर आधारित हैं।
दृष्टि दो प्रकार की होती है। एक गुणग्राही और दूसरी छिन्द्रान्वेषी दृष्टि। गुणग्राही व्यक्ति खूबियों को और छिन्द्रान्वेषी खामियों को देखता है। गुणग्राही कोयल को देखता है तो कहता है कि कितना प्यारा बोलती है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी बदसूरत दिखती है। गुणग्राही मोर को देखता है तो कहता है कि कितना सुंदर है और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितनी भद्दी आवाज है, कितने रुखे पैर हैं। गुणग्राही गुलाब के पौधे को देखता है तो कहता है कि कैसा अद्भुत सौंदर्य है। कितने सुंदर फूल खिले हैं और छिन्द्रान्वेषी देखता है तो कहता है कि कितने तीखे काँटे हैं। इस पौधे में मात्र दृष्टि का फर्क है। जो गुणों को देखता है वह बुराइयों को नहीं देखता है।
कबीर ने कहा-
बुरा जो खोजन मैं चला, बुरा न मिलिया कोई,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
कबीर ने बहुत कोशिश की बुरे आदमी को खोजने की। गली - गली, गाँव - गाँव खोजते रहे परंतु उन्हें कोई बुरा आदमी न मिला। मालूम है क्यों ? क्योंकि कबीर भले आदमी थे। और भले आदमी को बुरा आदमी कैसे मिल सकता है?
कबीर अपने आपको बुरा कह रहे हैं। यह एक अच्छे आदमी का परिचय है, क्योंकि अच्छा आदमी स्वयं को बुरा और दूसरों को अच्छा कह सकता है। बुरे आदमी में यह सामर्थ्य नहीं होती। वह तो आत्म प्रशंसक और परनिंदक होता है। वह कहता है भला जो खोजन मैं चला भला न मिला कोय, जो दिल खोजा आपना मुझसे भला न कोय।
ध्यान रखना जिसकी निंदा-आलोचना करने की आदत हो गई है, दोष ढूँढने की आदत पड़ गई, वे हजारों गुण होने पर भी दोष ढूँढ निकाल लेते हैं और जिनकी गुण ग्रहण की प्रकृति है, वे हजार अवगुण होने पर भी गुण देख ही लेते हैं, क्योंकि दुनिया में ऐसी कोई भीचीज नहीं है जो पूरी तरह से गुणसंपन्ना हो या पूरी तरह से गुणहीन हो। एक न एक गुण या अवगुण सभी में होते हैं। मात्र ग्रहणता की बात है कि आप क्या ग्रहण करते हैं गुण या अवगुण।
तुलसीदासजी ने कहा है - जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
अर्थात जिसकी जैसी दृष्टि होती है उसे वैसी ही मूरत नजर आती है।
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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.