वर्ल्ड ऑफ़ साईं ग्रुप में आपका हार्दिक स्वागत है । श्री साईं जी के ब्लॉग में आने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद । श्री साईं जी की कृपा आप सब पर सदैव बनी रहे ।

शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Wednesday 31 October 2012

हे दुःख भंजन हे साईराम


ॐ सांई राम

हे दुःख भंजन हे साई राम
पतित पावन है तेरा नाम

Tuesday 30 October 2012

कोई कहे सांई कृष्ण कन्हैया कोई कहे सांई राम रमैया


ॐ सांई राम

कोई कहे सांई कृष्ण कन्हैया कोई कहे सांई राम रमैया
कोई कहे अल्लाह ताला मेरा सांई है रखवाला – 2

Monday 29 October 2012

जब से पकडे चरण साई के


ॐ सांई राम


जब से पकडे चरण साई के
मन बुद्धी को छोड दिया .
खुद को कर के उसके अर्पण
अपनी खुदी को छोड दिया ..

Sunday 28 October 2012

श्री साईबाबा की कथाएँ


ॐ सांई राम

साईं नाथ महाराज की भिक्षा


बाबा प्रतिदिन निम्न पांच घरों से भिक्षा लिया करते थे---

१ - नन्दराम मारवाड़ी

२- अप्पाजी कोते पाटिल

३- सखाराम पाटिल भौलवे

४- तात्या काते पाटिल

५- वामन राव गोंदकर
श्री साईबाबा की कथाएँ

Saturday 27 October 2012

शिर्डी नगरिया चल शिर्डी नगरिया....

ॐ सांई राम
Still snap of Live telecast from Shirdi
today dated 27102012 at 0600 Hrs ...,
ॐ साँई राम जी,
साँई शुभ प्रभात, ..
बाबा जी की कृपा आप सभी पर बनी रहे..
www.shirdikesaibabaji.blogspot.com

Friday 26 October 2012

श्री साँई नाथ महाराज जी की महा समाधी की कुछ झल्कियाँ...


ॐ सांई राम
श्री साँई नाथ महाराज जी की महा समाधी के दिन शिर्डी के साँई बाबा ग्रुप एवं सभी साथियोँ द्वारा 24/10/2012 दिन विजय दशमी को श्री साँई कीर्तन दरबार का आयोजन किया गया, पेश है उसी की कुछ झल्कियाँ...



आप सभी के सहयोग के लिये आप सभी का तहे दिल से आभार..

Thursday 25 October 2012

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33


ॐ सांई राम


Happy Baba's Day to all..
Still snap of Live telecast from Shirdi
today dated 25/10/2012 at 0530 Hrs ...,
आप सभी को साँई-वार की हार्दिक शुभ कामनाये..,
Om Sai Ram to All..
Baba bless all..

आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साँई ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33

उदी की महिमा, बिच्छू का डंक, प्लेग की गाँठ, जामनेर का चमत्कार, नारायण राव, बाला बुवा सुतार, अप्पा साहेब कुलकर्णी, हरीभाऊ कर्णिक ।
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Wednesday 24 October 2012

रखीं चरणां च सानू वी हजूर साईंयाँ

ॐ सांई राम
 रखीं चरणां च सानू वी हजूर साईंयाँ
करीं साडा वी तूं हुण दुःख दूर साईंयाँ

Tuesday 23 October 2012

माँ सिद्धिदात्री

ॐ सांई राम 
या देवी सर्वभू‍तेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के

Monday 22 October 2012

माँ महागौरी


ॐ सांई राम
श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः |
महागौरी   शुभं  दधान्महादेवप्रमोददा ||



माँ दुर्गा जी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है | इनका वर्ण पूर्णत: गौर 

Sunday 21 October 2012

माँ कालरात्रि


ॐ सांई राम
एकवेणी   जपाकरणपूरा  नग्ना खरास्थिता |
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ||
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषण         |
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिभरयंकरी    ||


माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है | इनके

Saturday 20 October 2012

माँ कात्यायनी


ॐ सांई राम
चन्द्रहासोजज्वलकरा   शार्दूलवरवाहना |
कात्यायनी शुभं दधादेवी दानवघातिनी ||


माँ दुर्गा के छठवें स्वरूप का नाम कात्यायनी है | इनका कात्यायनी नाम

Friday 19 October 2012

माँ स्कन्दमाता


ॐ सांई राम

सिंहासनगता  नित्यं      पदमाश्रितकरद्व्या |
शुभदास्तु    सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ||

Thursday 18 October 2012

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 32

 गुरु और ईश्वर की खोज, उपवास अमान्य, बाबा के सरकार

इस अध्याय में हेमाडपंत ने दो विषयों का वर्णन किया है ।
किस प्रकार अपने गुरु से बाबा की भेंट हुई और उनके द्वारा ईश्वरदर्शन की प्राप्ति कैसे हुई ।
श्रीमती गोखले जो तीन दिन से उपवास कर रही थी, उसे पूरनपोली का भोजन कराया ।
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प्रस्तावना 
श्री. हेमाडपंत वटवृक्ष का उदाहरण देकर इस गोचर संसार के स्वरुप का वर्णन करते है । गीता के अनुसार वटवृक्ष की जड़ें ऊपर और शाखाएँ नीचे की ओर फैली हुई है । 'ऊध्र्वमूलमधः शाखाम्" (गीता पंद्रहवाँ अध्याय, श्लोक 1) । इस वृक्ष के गुण पोषक और अंकुर इंद्रियों के भोग्य पदार्थ है । जड़ें जिनका कारणीभूत कर्म है, वे सृष्टि के मानवों की ओर फैली हुई है । इस वृक्ष की रचना बड़ी ही विचित्र है । न तो इसके आकार, उदगम और अन्त का ही भान होता है और न ही इसके आश्रय का । इस कठोर जड़ वाले संसार रुपी वृक्ष को, नष्ट करने के हेतु किसी बाह्य मार्ग का अवलंबन करना अत्यंत आवश्यक है , ताकि इस असार-संसार में आवागमन से मुक्ति प्राप्त हो । इस पथ पर अग्रसर होने के लिये किसी योग्य दिग्दर्शक (गुरु) की नितांत आवश्यकता है । चाहे कोई कितना ही विद्वान् अथवा वेद और वेदांत में पारंगत क्यों न हो, वह अपने निर्दिष्ट स्थान पर नहीं पहुँच सकता, जब तक कि उसकी सहायतार्थ कोई योग्य. पथ प्रदर्शक न मिल जाये, जिसके पद चिन्हों का अनुसरण करने से ही मार्ग में मिलने वाले गहृरों, खंदकों तथा हिंसक प्राणियों के भय से मुक्त हुआ जा सकता है और इस विधि से ही संसार-यात्रा सुगम तथा कुशलतापूर्वक पूर्ण हो सकती है । इस विषय में बाबा का अनुभव, जो उन्होंने स्वयं बतलाया, वास्तव में आश्चर्यजनक है । यदि हम उसका ध्यानपूर्वक अनुसरण करेंगें तो हमें निश्चय ही श्रद्घा, भक्ति और मुक्ति प्राप्त होगी ।

अन्वेषण
"एक समय हम चार सहयोगी मिलकर धार्मिक एवं अन्य पुस्तकों का अध्ययन कर रहे थे । इस प्रकार प्रबुदृ होकर हम लोग ब्रह्म के मूलस्वरुप पर विचार करने लगे । एक ने कहा कि हमें स्वयं की ही जागृति करनी चाहिए । दूसरों पर निर्भर रहना हमें उचित नहीं है । इस पर दूसरे ने कहा कि जिसने मनोनिग्रह कर लिया है, वही धन्य है, हमें अपने संकीर्ण विचारों व भावनाओं से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि इस संसार में हमारे अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । तीसरे ने कहा कि यह संसार सदैव परिवर्तनशील है केवल निराकार ही शाश्वत है । अतः हमें सत्य और असत्य में विवेक करना चाहिए । तब चौथे (स्वयं बाबा) ने कहा कि केवल पुस्तकीय ज्ञान से कोई लाभ नहीं । हमें तो अपना कर्तव्य करते रहना चाहिये । दृढ़ विश्वास और पूर्ण निष्ठापूर्वक हमें अपना तन, मन, धन और पंचप्राणादि सर्वव्यापक गुरुदेव को अर्पण कर देना चाहिये । गुरु भगवान् है, सबका पालनहार है ।"
इस प्रकार वादविवाद के उपरांत हम चारों सहयोगी वन में, ईश्वर की खोज को निकले । हम चार विद्वान् बिना किसी से सहायता लिए केवल अपनी स्वतंत्र बुद्घि से ही ईश्वर की खोज करना चाहते थे । मार्ग में हमें एक बंजारा मिला, जिसने हम लोगों से पूछा कि, "हे सज्जनों ! इतनी धूप में आप लोग किस ओर प्रस्थान कर रहे है ? प्रत्युत्तर में हम लोगों ने कहा कि, "वन की ओर !" उसने पुनः पूछा, कृपया यह तो बतलाइये कि वन की ओर जाने का उद्देश्य क्या है?" हम लोगों ने उसे टालमटोल वाला उत्तर दे दिया । हम लोगों को निरुद्देश्य सघन भयानक जंगलों में भटकते देखकर उसे दया आ गई । तब उसने अति विनम्र होकर हम लोगों से निवेदन किया कि आप अपनी गुप्त खोज का हेतु चाहे मुझे न बतलाये, किन्तु मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ कि मध्याहृ के प्रचण्ड मार्तण्ड की तीव्र किरणों की उष्णता से आप लोग अधिक कष्ट पा रहे है । कृपया यहाँ पर कुछ क्षण विश्राम कर जल-पान कर लीजिये । आप लोगों को सुहृदय तथा नम्र होना चाहिए । बिना पथ-प्रदर्शक के इस अपरिचित भयानक वन में भटकते फिरने से कोई लाभ नहीं है । यदि आप लोगों की तीव्र इच्छा ऐसी ही है तो कृपया किसी योग्य पथ-प्रदर्शक को साथ ले लें ।" उसकी विनम्र प्रार्थना पर ध्यान न देकर हम लोग आगे बढ़े । हम लोगों ने विचार किया कि हम स्वयं ही अपना लक्ष्य प्राप्त करने में समर्थ है, तब फिर हमें किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं है । जंगल बहुत विशाल और पथहीन था । वृक्ष इतने ऊँचे और घने थे कि सूर्य की किरणों का भी वहाँ पहुँच सकना कठिन था । परिणाम यह हुआ कि हम मार्ग भूल गये और बहुत समय तक यहाँ-वहाँ भटकते रहे । भाग्यवश हम लोग उसी स्थान पर पुनः जा पहुँचे, जहाँ से पहले प्रस्थान किया था । तब वही बंजारा हमें पुनः मिला और कहने लगा कि, "अपने चातुर्य पर विश्वास कर आप लोगों को पथ की विस्मृति हो गई है । प्रत्येक कार्य में चाहे वह बड़ा हो या छोटा, मार्ग-दर्शक आवश्यक है । ईश्वर-प्रेरणा के अभाव में सत्पुरुषों से भेंट होना संभव नहीं । भूखे रहकर कोई कार्य पूर्ण नहीं हो सकता । इसलिये यदि कोई आग्रहपूर्वक भोजन के लिये आमंत्रित करे तो उसे अस्वीकार न करो । भोजन तो भगवान का प्रसाद है, उसे ठुकराना उचित नहीं । यदि कोई भोजन के लिये आग्रह करे तो उसे अपनी सफलता का प्रतीक जानो ।" इतना कहकर उसने भोजन करने का पुनः अनुरोध किया । फिर भी हम लोगों ने उसके अनुरोध की उपेक्षा कर भोजन करना अस्वीकार कर दिया । उसके सरल और गूढ़ उपदेशों की परीक्षा किये बिना ही मेरे तीन साथियों ने आगे को प्रस्थान कर दिया । अब पाठक ही अनुमान करें कि वे लोग कितने अहंकारी थे । मैं क्षुधा और तृषा से अत्यंत व्याकुल था ही, बंजारे के अपूर्व प्रेम ने भी मुझे आकर्षित कर लिया । यद्यपि हम लोग अपने को अत्यंत विद्वान समझते थे, परन्तु दया एवं कृपा किसे कहते है, उससे सर्वथा अनभिज्ञ ही थे । बंजारा था तो एक शूद्र, अनपढ़ और गँवार, परन्तु उसके हृदय में महान् दया थी, जिसने बारबार भोजन के लिये आग्रह किया । जो दूसरों पर निःस्वार्थ प्रेम करते है, सचमुच में ही महान् है । मैंनें सोचा कि इसका आग्रह स्वीकार कर लेना ज्ञान-प्राप्ति के हेतु शुभ आवाहन है और मैंने इसी कारण उसके दिये हुए रुखे-सूखे भोजन को आदर व प्रेमपूर्वक स्वीकार कर लिया ।
क्षुधा-निवारण होते ही क्या देखता हूँ कि गुरुदेव तुरंत ही समक्ष प्रगट हो गये और प्रश्न करने लगे कि यह सब क्या हो रहा था ?" घटित घटना मैंने तुरन्त ही उन्हें सुना दी । उन्होंने आश्वासन दिया कि "मैं तुम्हारे हृदय की समस्त इच्छाएँ पूर्ण कर दूँगा, परन्तु जिसका विश्वास मुझ पर होगा, सफलता केवल उसी को प्राप्त होगी । मेरे तीनों सहयोगी तो उनके वचनों पर अविश्वास कर वहाँ से चले गये । तब मैंने उन्हें आदरसहित प्रणाम किया और उनकी आज्ञा मानना स्वीकार कर लिया । तत्पश्चात् वे मुझे एक कुएँ के समीप ले गये और रस्सी से मेरे पैर बाँधकर मुझे कुएँ में उलटा लटका दिया । मेरा सिर नीचे और पैर ऊपर को थे । मेरा सिर जल से लगभग तीन फुट की ऊँचाई पर था, जिससे न मैं हाथों के द्वारा जल ही छू सकता था और न मुँह में ही उसके जा सकने की कोई सम्भावना थी । मुझे इस प्रकार उलटा लटका कर वे न जाने कहाँ चले गये । लगभग चार-पाँच घंटों के उपरांत वे लौटे और उन्होंने मुझे शीघ्र ही कुएँ से बाहर निकाला । फिर वे मुझसे पूछने लगे कि तुम्हें वहाँ कैसा अनुभव हो रहा था ? मैंने कहा कि "मैं परम आनन्द का अनुभव कर रहा था । मेरे समान मूर्ख प्राणी भला ऐसे आनन्द का वर्णन कैसे कर सकता है ।" मेरे उत्तर सुन कर मेरे गुरुदेव अत्यंत ही प्रसन्न हुए और उन्होंनें मुझे अपने हृदय से लगाकर मेरी प्रशंसा की और मुझे अपने संग ले लिया । एक चिड़िया अपने बच्चों का जितनी सावधानी से लालन पालन करती है, उसी प्रकार उन्होंनें मेरा भी पालन किया । उन्होंने मुझे अपनी शाला में स्थान दिया । कितनी सुन्दर थी वह शाला ! वहाँ मुझे अपने माता-पिता की भी विस्मृति हो गई । मेरे अन्य समस्त आकर्षण दूर हो गये और मैंनें सरलतापूर्वक बन्धनों से मुक्ति पाई । मुझे सदा ऐसा ही लगता था कि उनके हृदय से ही चिपके रहकर उनकी ओर निहारा करुँ । यदि उनकी भव्य मूर्ति मेरी दृष्टि में न समाती तो मैं अपने को नेत्रहीन होना ही अधिक श्रेयस्कर समझता । ऐसी प्रिय थी वह शाला कि वहाँ पहुँचकर कोई भी कभी खाली हाथ नहीं लौटा । मेरी समस्त निधि, घर, सम्पत्ति, माता, पिता या क्या कहूँ, वे ही मेरे सर्वस्व थे । मेरी इन्द्रियाँ अपने कर्मों को छोड़कर मेरे नेत्रों में केन्द्रित हो गई और मेरे नेत्र उन पर । मेरे लिये तो गुरु ऐसे हो चुके थे कि दिन-रात मैं उनके ही ध्यान में निमग्न रहता था । मुझे किसी भी बात की सुध न थी । इस प्रकार ध्यान और चिंतन करते हुए मेरा मन और बुद्घि स्थिर हो गई । मैं स्तब्ध हो गया और उन्हें मानसिक प्रणाम करने लगा । अन्य और भी आध्यात्मिक केन्द्र है, जहाँ एक भिन्न ही दृश्य देखने में आता है । साधक वहाँ ज्ञान प्राप्त करने को जाता है तथा द्रव्य और समय का अपव्यय करता है । कठोर परिश्रम भी करता है, परन्तु अंत में उसे पश्चाताप ही हाथ लगता है । वहाँ गुरु अपने गुप्त ज्ञान-भंडार का अभिमान प्रदर्शित करते है और अपने को निष्कलंक बतलाते है । वे अपनी पवित्रता और शुद्धता का अभिनय तो करते है, परन्तु उनके अन्तःकरण में दया लेशमात्र भी नहीं होती है । वे उपदेश अधिक देते है और अपनी कीर्ति का स्वयं ही गुणगान करते है, परन्तु उनके शब्द हृदयवेधी नहीं होते, इसलिये साधकों को संतोष प्राप्त नहीं होता । जहाँ तक आत्म-दर्शन का प्रश्न है, वे उससे कोसों दूर होते है । इस प्रकार के केंद्र साधकों को उपयोगी कैसे सिद्ध हो सकते है और उनसे किसी उन्नति की आशा कोई कहाँ तक कर सकता है ? जिन गुरु के श्री चरण का मैंने अभी वर्णन किया है, वे भिन्न प्रकार के ही थे । केवल उनकी कृपा-दृष्टि से मुझे स्वतः ही अनुभूति प्राप्त हो गई तथा मुझे न कोई प्रयास और न ही कोई विशेष अध्ययन करना पड़ा । मुझे किसी भी वस्तु के खोजने की आवश्यकता नहीं पड़ी, वरन् प्रत्येक वस्तु मुझे दिन के प्रकाश के समान उज्जवल दिखाई देने लगी । केवल मेरे वे गुरु ही जानते है कि किस प्रकार उनके द्वारा कुएँ में मुझे उल्टा लटकाना मेरे लिये परमानंद का कारण सिद्ध हुआ ।
उन चार सहयोगियों में से एक महान कर्मकांडी था । किस प्रकार कर्म करना और उससे अलिप्त रहना, यह उसे भली भाँति ज्ञात था । दूसरा ज्ञानी था, जो सदैव ज्ञान के अहंकार में चूर रहता था । तीसरा ईश्वर भक्त था जो कि अनन्य भाव से भगवान् के शरणागत हो चुका था तथा उसे ज्ञात था कि ईश्वर ही कर्ता है । जब वे इस प्रकार परस्पर विचार-विनिमय कर रहे थे, तभी ईश्वर सम्बन्धी प्रश्न उठ पड़ा तथा वे बिना किसी से सहायता प्राप्त किये अपने स्वतंत्र ज्ञान पर निर्भर रहकर ईश्वर की खोज में निकल पड़े । श्री साई, जो विवेक और वैराग्य की प्रत्यक्ष मूर्ति थे, उन चारों लोगों में सम्मिलित थे । यहाँ कोई शंका कर सकता है कि जब साई स्वयं ही ब्रह्म के अवतार थे, तब वे उन लोगों के साथ क्यों सम्मिलित हुए और क्यों उन्होंने ऐसा आचरण किया । जन-कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही उन्होने ऐसा आचरण किया । स्वयं अवतार होते हुए भी और यह दृढ़ धारणा कर कि अन्न् ही ब्रह्म है, उन्होंने एक क्षुद्र बंजारे के भोजन को स्वीकार कर लिया तथा बंजारे के भोजन के आग्रह की उपेक्षा करने और बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त करने वालों की क्या दशा होती है, इसका उनके समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया । श्रुति (तैत्तिरीय उपतनिषद्) का कथन है कि हमें माता, पिता तथा गुरु का आदरसहित पूजन कर धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिये । ये चित्त-शुद्घि के मार्ग है और जब तक चित्त की शुद्घि नहीं होती, तब तक आत्मानुभूति की आशा व्यर्थ है । आत्मा इन्द्रियों, मन और बुद्घि के परे है । इस विषय में ज्ञान और तर्क हमारी कोई सहायता नहीं कर सकते, केवल गुरु की कृपा से ही सब कुछ सम्भव है । धर्म, अर्थ, और काम की प्राप्ति अपने प्रयत्न से हो सकती है, परन्तु मोक्ष की प्राप्ति तो केवल गुरुकृपा से ही सम्भव है । श्री साई के दरबार में तरह-तरह के लोगों का दर्शन होता था । देखो, ज्योतिषी लोग आ रहे है और भविष्य का बखान कर रहे है । दूसरी ओर राजकुमार, श्रीमान्, सम्पन्न और निर्धन, सन्यासी, योगी और गवैये दर्शनार्थ चले आ रहे है । यहाँ तक कि एक अतिशूद्र भी दरबार में आता है और प्रणाम करने के पश्चात् कहता है कि, "साई ही मेरे माँ या बाप है और वे मेरा जन्म मृत्यु के चक्र से छुटकारा कर देंगें ।" और भी अनेकों –तमाशा करने वाले, कीर्तन करने वाले, अंधे, पंगु, नाथपन्थी, नर्तक व अन्य मनोरंजन करने वाले दरबार में आते थे, जहाँ उनका उचित मान किया जाता था और इसी प्रकार उपयुक्त समय पर, वह बंजारा भी प्रगट हुआ और जो अभिनय उसे सौंपा गया था, उसने उसको पूर्ण किया ।
हमारे विचार से कुएं में 4-5 घंटे उलटे लटके रहना – इसे सामान्य घटना नहीं समझना चाहिए, क्योंकि ऐसा कोई बिरला ही पुरुष होगा, जो इस प्रकार अधिक समय तक, रस्सी से लटकाये जाने पर कष्ट का अनुभव न कर परमानंद का अनुभव करे । इसके विपरत उसे पीड़ा होने की ही अधिक संभावना है । ऐसा प्रतीत होता है कि समाधि-अवस्था का ही यहाँ चित्रण किया गया है । आनंद दो प्रकार के होते है – प्रथम ऐन्द्रिक और द्वितीय आध्यात्मिक । ईश्वर ने हमारी इन्द्रियों व तन मन की प्रवृत्तियों की रचना बाह्यमुखी की है । और जब वे (इन्द्रियाँ और मन) अपने विषयपदार्थों में संलग्न होती है, तब हमें इन्द्रिय-चैतन्यता प्राप्त होती है, जिसके फलस्वरुप हमें सुख या दुःख का पृथक् या दोनों का सम्मिलित अनुभव होता है, न कि परमानंद का । जब इन्द्रियों और मन को उनके विषय पदार्थों से हटाकर अंतर्मुख कर आत्मा पर केन्द्रत किया जाता है, तब हमें आध्यात्मिक बोध होता है और उस समय के आनन्द का मुख से वर्णन नहीं किया जा सकता । "मैं परमानन्द में था तथा उस समय का वर्णन मैं कैसे कर सकता हूँ ?" इन शब्दों से ध्वनित होता है कि गुरु ने उन्हें समाधि अवस्था में रखकर चंचल इन्द्रियों और मनरुपी जल से दूर रखा ।

उपवास और श्रीमती गोखले
बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया, न ही उन्होंने दूसरों को करने दिया । उपवास करने वालों का मन कभी शांत नहीं रहता, तब उन्हें परमार्थ की प्राप्ति कैसे संभव है ? प्रथम आत्मा की तृप्ति होना आवश्यक है भूखे रहकर ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती । यदि पेट में कुछ अन्न की शीतलता न हो तो हम कौन सी आँख से ईश्वर को देखेंगे, किस जिहा से उनकी महानता का वर्णन करेंगे और किन कानों से उनका श्रवण करेंगे । सारांश यह कि जब समस्त इंद्रियों को यथेष्ठ भोजन व शांति मिलती है तथा जब वे बलिष्ठ रहती है, तब ही हम भक्ति और ईश्वर-प्राप्ति की अन्य साधनाएँ कर सकते है, इसलिये न तो हमें उपवास करना चाहिये और न ही अधिक भोजन । भोजन में संयम रखना शरीर और मन दोनों के लिये उत्तम है ।
श्रीमती काशीबाई कानिटकर (श्री साईबाबा की एक भक्त) से परिचयपत्र लेकर श्रीमती गोखले, दादा केलकर के पास शिरडी को आई । वे यह दृढ़ निश्चय कर के आई थीं कि बाबा के श्री चरणों में बैठकर तीन दिन उपवास करुँगी । उनके शिरडी पहुँचने के एक दिन पूर्व ही बाबा ने दादा केलकर से कहा कि, "मैं शिमगा (होली) के दिनों में अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता है । यदि उन्हें भूखे रहना पड़ा तो मेरे यहाँ वर्तमान होने का लाभ ही क्या है ?" दूसरे दिन जब वह महिला दादा केलकर के साथ मस्जिद में जाकर बाबा के चरण-कमलों के समीप बैठी तो तुरंत बाबा ने कहा, "उपवास की आवश्यकता ही क्या है ? दादा भट के घर जाकर पूरनपोली तैयार करो । अपने बच्चों को खिलाओ और स्वयं खाओ ।" वे होली के दिन थे और इस समय श्रीमती केलकर मासिक धर्म से थी । दादा भट के घर में रसोई बनाने कि लिये कोई न था और इसलिये बाबा की युक्ति बड़ी सामयिक थी । श्रीमती गोखले ने दादा भट के घर जाकर भोजन तैयार किया और दूसरों को भोजन कराकर स्वयं भी खाया । कितनी सुंदर कथा है और कितनी सुन्दर उसकी शिक्षा ।

बाबा के सरकार
बाबा ने अपने बचपन की एक कहानी का इस प्रकार वर्णन किया –
जब मैं छोटा था, तब जीविका उपार्जनार्थ मैं बीडगाँव आया । वहाँ मुझे जरी का काम मिल गया और मैं पूर्ण लगन व उम्मीद से अपना काम करने लगा । मेरा काम देखकर सेठ बहुत ही प्रसन्न हुआ । मेरे साथ तीन लड़के और भी काम करते थे । पहले का काम 50 रुपये का, दूसरे का 100 रुपये का और तीसरे का 150 रुपये का हुआ । मेरा काम उन तीनों से दुगुना हो गया । मेरी चतुराई देखकर सेठ बहुत ही प्रसन्न हुआ । वह मुझे अधिक चाहता था और मेरी प्रशंसा भी करता रहता था । उसने मुझे एक पूरी पोशाक प्रदान की, जिसमें सिर के लिये एक पगड़ी और शरीर के लिये एक शेला भी थी । मेरे पास वह पोशक वैसी ही रखी रही । मैंने सोचा कि जो कुछ मनुष्य-निर्मित है, वह नाशवान् और अपूर्ण है, परन्तु जो कुछ मेरे सरकार द्वारा प्राप्त होगा, वही अन्त तक रहेगा । किसी भी मनुष्य के उपहार की उससे समानता संभव नहीं है । मेरे सरकार कहते है "ले जाओ"। लोग मेरे पास आकर कहते है "मुझे दो, मुझे दो ।" परन्तु जो कुछ मैं कहता हूँ उसके अर्थ पर कोई ध्यान देने का प्रयत्न नहीं करता । मेरे सरकार का खजाना (आध्यात्मिक भंडार) भरपूर है और वह ऊपर से बह रहा है । मैं तो कहता हूँ कि खोदकर गाड़ी में भरकर ले जाओ । जो सच्ची माँ का लाल होगा, उसे स्वयं ही भरना चाहिए । मेरे फकीर की कला, मेरे भगवान् की लीला और मेरे सरकार का बर्ताव सर्वथा अद्वितीय है । मेरा क्या, यह शरीर मिट्टी में मिलकर सारे भूमंडल में व्याप्त हो जायेगा तथा फिर यह अवसर कभी प्राप्त न होगा । मैं चाहें कहीं जाता हूँ या कहीं बैठता हूँ, परन्तु माया फिर भी मुझे कष्ट पहुँचाती है । इतना होने पर भी मैं अपने भक्तों के कल्याणार्थ सदैव उत्सुक ही रहता हूँ । जो कुछ भी कोई करता है, एक दिन उसका फल उसको अवश्य प्राप्त होगा और जो मेरे इन वचनों को स्मरण रखेगा, उसे मौलिक आनन्द की प्राप्ति होगी ।


।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

माँ चंद्रघंटा एवं माँ कूष्मांडा

ॐ सांई राम
पिंडजप्रवरारूढ़ा   चंडकोपास्त्रकैयुर्ता |
प्रसादं तनुते महा चन्द्रघंटेती विश्रुता ||
 

माँ दुर्गा जी की तीसरी शक्ति का नाम 'चंद्रघंटा' है | नवरात्रि-उपासना में तीसरे दिन इन्ही के विग्रह का पूजन आराधन किया जाता है | इनका यह

Wednesday 17 October 2012

कर्मों का लेखा जोखा है पास जिसके

ॐ सांई राम
 कर्मों का लेखा जोखा है पास जिसके
लाखों की मैंने देखा किस्मत बदलते
बन के सवाली आजा साईं के पास
साचा है भक्तो शिर्डी वाले का पास

माँ ब्रम्हचारिणी

ॐ सांई राम
 दधाना               कर्पद्मभ्यमक्श्मलकमन्दलु |
देवि   प्रसीदतु   मयि      ब्रम्हाचारिन्यानुत्मा  |

 
माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा रूप माँ ब्रम्हचारिणी का है | यहाँ ब्रम्हा शब्द का अर्थ तपस्या है |

Tuesday 16 October 2012

प्रथम मां शैलपुत्री

ॐ सांई राम
आप सभी को नवरात्रों की  हार्दिक बधाई 

वंदे वाद्द्रिछतलाभाय चंद्रार्धकृतशेखरम |
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्‌ ||


दुर्गा पूजा के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा-वंदना इस मंत्र द्वारा की जाती है.

तुम ही राम तुम ही श्याम साईं नाथ मेरे

ॐ सांई राम

तुम ही राम तुम ही श्याम साईं नाथ मेरे
दूर किये तुमने मेरी राह के अँधेरे
तुम ही राम तुम ही श्याम साईं नाथ मेरे

Monday 15 October 2012

शिर्डी है राजधानी डंका संसार में

ॐ सांई राम
 
बन ठन के बैठा मेरा साईं दरबार में
शिर्डी है राजधानी डंका संसार में
बन ठन के बैठा मेरा भोला दरबार में
शिर्डी है राजधानी डंका संसार में

Sunday 14 October 2012

जब दिल उदास हो तो, साईं का नाम लेना

ॐ सांई राम
 जब दिल उदास हो तो, साईं का नाम लेना
जीवन सूना लगे तो, साईं का नाम लेना 

जब दिल उदास हो तो, साईं का नाम लेना
जीवन सूना लगे तो, साईं का नाम लेना

Saturday 13 October 2012

Sai Baba abandons himself to the mood of divine ecstasy through music.

ॐ सांई राम

पहूड येती भव्य्ये नाचती गवय्ये गाती भाट वानती तमासगीर मुजरे देती - भजनीं रंगती हरिभक्त ||  

Here Sai Baba is seen sitting on the steps of the famous Dwara Mayee mosque at Shirdi, absorbed in the divine thraldom of music. Baba’s appreciation of talent, and the warm encouragement he gave to those who had talent were priceless gifts from his immeasurable divinity.

Friday 12 October 2012

आओ आओ साईं प्यारे

ॐ सांई राम
 आओ  आओ  साईं  प्यारे
कीर्तन  करूँ   मैं   साईं  तुम्हारे
आओ  आओ  साईं  प्यारे
तुम   हो  मेरे  नयनों  के  तारे
दर्शन  दो  जीवन  के  सहारे  (2)

Thursday 11 October 2012

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 31


ॐ सांई राम

आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साईं ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा |

किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 31

मुक्ति-दान
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1. सन्यासी विरजयानंद
2. बालाराम मानकर
3. नूलकर
4. मेघा और
5. बाबा के सम्मुख बाघ की मुक्त

इस अध्याय में हेमाडपंत बाबा के सामने कुछ भक्तों की मृत्यु तथा बाघ के प्राण-त्याग की कथा का वर्णन करते है ।

श्री साईं-कथा आराधना(भाग-18 )

ॐ सांई राम
 
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श्री साईं-कथा आराधना(भाग-18 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए

शिर्डी में गुरुस्थान की महिमा है अपरंपार
जो भी लगाता चक्कर इसके ग्यारह ही बार
हर पीड़ा से भक्त वो मुक्ति पा जाता

Wednesday 10 October 2012

कोई ये न पूछे, कहाँ तक चलेंगे

ॐ सांई राम
 कोई ये न पूछे, कहाँ तक चलेंगे
चलाएँगे साईं, वहाँ तक चलेंगे

Tuesday 9 October 2012

मेरी आत्मा करेगी तेरा गुणगान साईं

ॐ सांई राम
देखता  हूँ  कब  तक  रूठे  रहते  हो  बाबा..
मेरे  सब्र  का ले लो  इम्तेहान  साईं...
मर  जाऊंगा  तेरे  बिना मैं बाबा ....
नहीं  छोडूंगा  तुझे  मालिक  कहना,
चाहे  तो  ले ले  मेरी  जान  साईं

Monday 8 October 2012

श्री साईं-कथा आराधना(भाग-17 )

ॐ सांई राम
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श्री साईं-कथा आराधना(भाग-17 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए


कहने को तो साईं का साकार रूप लुप्त हो गया
बाबा का हाथ भक्तों के सिर पे से उठ गया
पर आज भी शिर्डी में बाबा विराजमान हैं
समाधी में जैसे श्री साईं के बसे प्राण हैं

Sunday 7 October 2012

श्री साईं-कथा आराधना (भाग-16)

ॐ सांई राम
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श्री साईं-कथा आराधना (भाग-16)
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए


साईं तो हैं इस पूरे ब्रह्मांड के नायक
दुःख हरते सब तरह से बनते सहायक
मां बायजा का ऋण साईं ने ऐसे चुकाया
तांत्या का जीवन मौत के हाथों बचाया

Saturday 6 October 2012

श्री साईं-कथा आराधना (भाग -15)

ॐ सांई राम
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श्री साईं-कथा आराधना(भाग -15)
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए


रंग साईं का मन पे चढ़ गया जो एक बार,
साईं भक्ति में झूमेगा वो तो हज़ार बार
बाबा ने कहा जब भी मुझे तुम याद करोगे
सात समंदर पार भी मुझको अपने पास पाओगे

Friday 5 October 2012

श्री साईं-कथा आराधना (भाग-14 )

ॐ सांई राम

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श्री साईं-कथा आराधना (भाग-14 )
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श्री साईं गाथा सुनिए
जय साईंनाथ कहिए


जिसने भी साईं बाबा को दिल से जब था पुकारा,
साईं ने दिया उसको तुरंत बढ़ के सहारा।
साईं को जब भी श्रद्धा से तुम याद करोगे,
तब ही साईं को अपने पास पाओगे।

Thursday 4 October 2012

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30


ॐ सांई राम
आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साँई ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा
किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...


श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30
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शिरडी को खींचे गये भक्त
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1. वणी के काका वैघ
2. खुशालचंद
3. बम्बई के रामलाल पंजाबी ।
इस अध्याय में बतलाया गया है कि तीन अन्य भक्त किस प्रकार शिरडी की ओर खींचे गये ।

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.