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शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Friday, 4 November 2011

रुख़ से पर्दा हटाना तेरा काम है

ॐ साईं राम
काम मेरा है चाहत करूं दीद की, रुख़ से पर्दा हटाना तेरा काम है
काम है मेरा साँई तुझे देखना, आगे जलवा दिखाना तेरा काम है
मुझको तेरे करम पे है कामिल यकीं
मुझको तारीख़ की कोई परवाह नहीं
काम है मेरा दर पे मैं आऊँ मगर,मुझको दर पे बुलाना तेरा काम है
भक्त का काम है कि वो सिमरन करे
साँई का काम है खाली दामन भरे
काम मेरा है ज्योति जलाना तेरी,सोयी किस्मत जगाना तेरा काम है
आभी जाओ प्रभो दो घड़ी के लिये
मेरा आज़ाद वक्ते सफ़र आगया
काम मेरा है आवाज़ देना तुझे ,आगे आना न आना तेरा काम है
मैं खिलोना हूं हाथों का भगवन तेरे
मेरी क्या ज़िन्दगी मेरी औकात क्या
काम मेरा है बन-बन के नित टूटना,तोड़ना या बनाना तेरा काम है |
 

Thursday, 3 November 2011

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 30

शिरडी को खींचे गये भक्त
वणी के काका वैद्य 
खुशालचंद
बम्बई के रामलाल पंजाबी ।
इस अध्याय में बतलाया गया है कि तीन अन्य भक्त किस प्रकार शिरडी की ओर खींचे गये ।
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प्राक्कथन
जो बिना किसी कारण भक्तों पर स्नेह करने वाले दया के सागर है तथा निर्गुण होकर भी भक्तों के प्रेमवश ही जिन्होंने स्वेच्छापूर्वक मानव शरीर धारण किया, जो ऐसे भक्त-वत्सल गें कि जिनके दर्शन मात्र से ही भवसागर के भय और समस्त कष्ट दूर हो जाते है, ऐसे श्री साईनाथ महाराज को हम नमन करें । भक्तों को आत्मदर्शन कराना ही सन्तों का प्रधान कार्य है । श्री साई, जो सन्त शिरोमणि है, उनका तो मुख्य ध्येय ही यही है । जो उनके श्री-चरणों की शरण में जाते है , उनके समस्त पाप नष्ट होकर निश्चित ही दिन-प्रतिदिन उनकी प्रगति होती है । उनके श्री-चरणों का स्मरण कर पवित्र स्थानों से भक्तगण शिरडी आते और उनके समीप बैठकर श्लोक पढ़कर गायत्री-मंत्र का जप किया करते थे । परन्तु जो निर्बल तथा सर्व प्रकार से दीन-हीन है और जो यह भी नहीं जानते कि भक्ति किसे कहते है, उनका तो केवल इतना ही विश्वास है कि अन्य सब लोग उन्हें असहाय छोड़कर उपेक्षा भले ही कर दे, परन्तु अनाथों के नाथ और प्रभु श्री साई मेरा कभी परित्याग न करेंगे । जिन पर वे कृपा करे, उन्हें प्रचण्ड शक्ति, नित्य-अनित्य में विवेक तथा ज्ञान सहज ही प्राप्त हो जाता है ।

वे अपने भक्तों की इच्छायें पूर्णतः जानकर उन्हें पूर्ण किया करते है, इसीलिये भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति हो जाया करती है और वे सदा कृतज्ञ बने रहते है । हम उन्हें साष्टांग प्रणाम कर प्रार्थना करते है कि वे हमारी त्रुटियों की ओर ध्यान न देकर हमें समस्त कष्टों से बचा लें । जो विपति-ग्रस्त प्राणी इस प्रकार श्री साई से प्रार्थना करता है, उनकी कृपा से उसे पूर्ण शान्ति तथा सुख-समृद्घि प्राप्त हती है ।
श्री हेमाडपंत कहते है कि, "हे मेरे प्यारे साई ! तुम तो दया के सागर हो ।" यह तो तुम्हारी ही दया का फल है, जो आज यह "साई सच्चरित्र" भक्तों के समक्ष प्रस्तुत है, अन्यथा मुझमें इतनी योग्यता कहाँ थी, जो ऐसा कठिन कार्य करने का दुस्साहस भी कर सकता ? जब पूर्ण उत्तरदायित्व साई ने अपने ऊपर ही ले लिया तो हेमाडपंत को तिलमात्र भी भार प्रतीत न हुआ और न ही इसकी उन्हें चिन्ता ही हुई । श्री साई ने इस ग्रन्थ के रुप में उनकी सेवा स्वीकार कर ली । यह केवल उनके पूर्वजन्म के शुभ संस्कारों के कारण ही सम्भव हुआ, जिसके लिये वे अपने को भाग्यशाली और कृतार्थ समझते है ।
नीचे लिखी कथा कपोलकल्पित नहीं, वरन् विशुद्ध अमृततुल्य है । इसे जो हृदयंगम करेगा, उसे श्री साई की महानता और सर्वव्यापकता विदित हो जायेगी, परन्तु जो वादविवाद और आलोचना करना चाहते है, उन्हें इन कथाओं की ओर ध्यान देने की आवश्यकता भी नहीं है । यहाँ तर्क की नहीं, वरन् प्रगाढ़ प्रेम और भक्ति की अत्यन्त अपेक्षा है । विद्वान् भक्त तथा श्रद्घालु जन अथवा जो अपने को साई-पद-सेवक समझते है, उन्हें ही ये कथाएँ रुचिकर तथा शिक्षाप्रद प्रतीत होगी, अन्य लोगों के लिये तो वे निरी कपोल-कल्पनाएँ ही है । श्री साई के अंतरंग भक्तों को श्री साईलीलाएँ कल्पतरु के सदृश है । श्री साई-लीलारुपी अमृतपान करने से अज्ञानी जीवों को ज्ञान, गृहस्थाश्रमियों को सन्तोष तथा मुमुक्षुओं को एक उच्च साधन प्राप्त होता है । अब हम इस अध्याय की मूल कथा पर आते है ।

काका जी वैद्य 
नासिक जिले के वणी ग्राम में काका जी वैद्य नाम के एक व्यक्ति रहते थे । वे श्रीसप्तशृंगी देवी के मुख्य पुजारी थे । एक बार वे विपत्तियों में कुछ इस प्रकार ग्रसित हुए कि उनके चित्त की शांति भंग हो गई और वे बिलकुल निराश हो उठे । एक दिन अति व्यथित होकर देवी के मंदिर में जाकर अन्तःकरण से वे प्रार्थना करने लगे कि, "हे देवि ! हे दयामयी ! मुझे कष्टों से शीघ्र मुक्त करो । उनकी प्रार्थना से देवी प्रसन्न हो गई और उसी रात्रि को उन्हें स्वप्न में बोली कि "तू बाबा के पास जा, वहाँ तेरा मन शान्त और स्थिर हो जायेगा ।" बाबा का परिचय जानने को काका जी बड़े उत्सुक थे, परन्तु देवी से प्रश्न करने के पूर्व ही उनकी निद्रा भंग हो गई । वे विचारने लगे कि ऐसे ये कौन से बाबा है, जिनकी ओर देवी ने मुझे संकेत किया है । कुछ देर विचार करने के पश्चात् वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सम्भव है कि वे त्र्यंबकेश्वर बाबा (शिव) ही हों । इसलिये वे पवित्र तीर्थ त्र्यंबक (नासिक) को गये और वहाँ रहकर दस दिन व्यतीत किये । वे प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त हो, रुद्र मंत्र का जप कर, साथ ही साथ अभिषेक व अन्य धार्मिक कृत्य भी करने लगे । परन्तु उनका मन पूर्ववत् ही अशान्त बना रहा । तब फिर अपने घर लौटकर वे अति करुण स्वर में देवी की स्तुति करने लगे । उसी रात्रि में देवी ने पुनः स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि "तू व्यर्थ ही त्र्यम्बकेश्वर क्यो गया ? बाबा से तो मेरा अभिप्राय था शिरडी के श्री साई समर्थ से ।" अब काका जी के समक्ष मुख्य प्रश्न यह उपस्थित हो गया कि वे कैसे और कब शिरडी जाकर बाबा के श्री दर्शन का लाभ उठाये । यथार्थ में यदि कोई व्यक्ति, किसी सन्त के दर्शने को आतुर हो तो केवल सन्त ही नही, भगवान् भी उसकी इच्छा पूर्ण कर देते है । वस्तुतः यदि पूछा जाय तो सन्त और अनन्त एक ही है और उनमें कोई भिन्नता नही । यदि कोई कहे कि मैं स्वतः ही अमुक सन्त के दर्शन को जाऊँगा तो इसे निरे दम्भ के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है ? सन्त की इच्छा के विरुदृ उनके समीप कौन जाकर दर्शन ले सकता है । उनकी सत्ता के बिना वृक्ष का एक पत्ता भी नहीं हिल सकता । जितनी तीव्र उत्कंठा संत दर्शन की होती, तदनुसार ही उसकी भक्ति और विश्वास में वृद्घि होती जायेगी और उतनी ही शीघ्रता से उनकी मनोकामना भी सफलतापूर्वक पूर्ण होगी । जो निमंत्रण देता है, वह आदर आतिथ्य का प्रबन्ध भी करता है । काका जी के सम्बन्ध में सचमुच यही हुआ ।

शामा की मान्यता
जब काका जी शिरडी यात्रा करने का विचार कर रहे थे, उसी समय उनके यहाँ एक अतिथि आया (जो शामा के अतिरिक्त और कोई न था) । शामा बाबा के अंतरंग भक्तों में से एक थे । वे ठीक इसी समय वणी में क्यों और कैसे आ पहुँचे, अब हम इस पर दृष्टि डालें । बाल्यावस्था में वे एक बार बहुत बीमार पड़ गये थे । उनकी माता ने अपनी कुलदेवी सप्तशृंगी से प्रार्थना की कि यदि मेरा पुत्र नीरोग हो जाये तो मैं उसे तुम्हारे चरणों पर लाकर डालूँगी । कुछ वर्षों के पश्चात् ही उनकी माता के स्तन में दाद हो गई । तब उन्होंने पुनः देवी से प्रार्थना की कि यदि मैं रोगमुक्त हो जाऊँ तो मैं तुम्हें चाँदी के दो स्तन चाढाऊँगी । पर ये दोनों वचन अधूरे ही रहे । परन्तु जब वे मृत्युशैया पर पड़ी ती तो उन्होंने अपने पुत्र शामा को समीप बुलाकर उन दोनों वचनों की स्मृति दिलाई तथा उन्हें पूर्ण करने का आश्वासन पाकर प्राण त्याग दिये । कुछ दिनों के पश्चात् वे अपनी यह प्रतिज्ञा भूल गये और इसे भूले पूरे तीस साल व्यतीत हो गये । तभी एक प्रसिदृ ज्योतिषी शिरडी आये और वहाँ लगभग एक मास ठहरे । श्री मान् बूटीसाहेब और अन्य लोगों को बतलाये उनके सभी भविष्य प्रायः सही निकले, जिनसे सब को पूर्ण सन्तोष था । शामा के लघुभ्राता बापाजी ने भी उनसे कुछ प्रश्न पूछे । तब ज्योतिषी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राता ने अपनी माता को मृत्युशैया पर जो वचन दिये थे, उनके अब तक पूर्ण न किये जाने के कारण देवी असन्तुष्ट होकर उन्हें कष्ट पहुँचा रही है । ज्योतिषी की बात सुनकर शामा को उन अपूर्ण वचनों की स्मृति हो आई । अब और विलम्ब करना खतरनाक समझकर उन्होंने सुनार को बुलाकर चाँदी के दो स्तन शीघ्र तैयार कराये और उन्हें मस्जिद में ले जाकर बाबा के समक्ष रख दिया तथा प्रणाम कर उन्हें स्वीकार कर वचनमुक्त करने की प्रार्थना की । शामा ने कहा कि मेरे लिये तो सप्तशृंगी देवी आप ही है, परन्तु बाबा ने साग्रह कहा कि तुम इन्हें स्वयं ले जाकर देवी के चरणों में अर्पित करो । बाबा की आज्ञा व उदी लेकर उन्होंने वणी को प्रस्थान कर दिया । पुजारी का घर पूछते-पूछते वे काका जी के पास जा पहुँचे । काका जी इस समय बाबा के दर्शनों को बड़े उत्सुक थे और ठीक ऐसे ही मौके पर शामा भी वहाँ पहुँच गये । वह संयोग भी कैसा विचित्र था ? काका जी ने आगन्तुक से उनका परिचय प्राप्त कर पूछा कि आप कहाँ से पधार रहे है ? जब उन्होंने सुना कि वे शिरडी से आ रहे तो वे एकदम प्रेमोन्मत हो शामा से लिपट गये और फिर दोनों का श्री साई लीलाओं पर वार्तालाप आरम्भ हो गया । अपने वचन संबंधी कृत्यों को पूर्ण कर वे काकाजी के साथ शिरडी लौट आये । काकाजी मस्जिद पहुँच कर बाबा के श्रीचरणों से जा लिपटे । उनके नेत्रों से प्रेमाश्रुओं की धारा बहने लगी और उनका चित्त स्थिर हो गया । देवी के दृष्टांतानुसार जैसे ही उन्होंनें बाबा के दर्शन किये, उनके मन की अशांति तुरन्त नष्ट हो गई और वे परम शीतलता का अनुभव करने लगे । वे विचार करने लगे कि कैसी अदभुत शक्ति है कि बिना कोई सम्भाषण या प्रश्नोत्तर किये अथवा आशीष पाये, दर्शन मात्र से ही अपार प्रसन्नता हो रही है । सचमुच में दर्शन का महत्व तो इसे ही कहते है । उनके तृषित नेत्र श्री साई-चरणों पर अटक गये और वे अपनी जिहा से एक शब्द भी न बोल सके । बाबा की अन्य लीलाएँ सुनकर उन्हें अपार आनन्द हुआ और वे पूर्णतः बाबा के शरणागत हो गये । सब चिन्ताओं और कष्टों को भूलकर वे परम आनन्दित हुए । उन्होंने वहाँ सुखपूर्वक बारह दिन व्यतीत किये और फिर बाबा की आज्ञा, आशीर्वाद तथा उदी प्राप्त कर अपने घर लौट गये ।

खुशालचन्द (राहातानिवासी)
ऐसा कहते है कि प्रातःबेला में जो स्वप्न आता है, वह बहुधा जागृतावस्था में सत्य ही निकलता है । ठीक है, ऐसा ही होता होगा । परन्तु बाबा के सम्बन्ध में समय का ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं था । ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत है – बाबा ने एक दिन तृतीय प्रहर काकासाहेब को ताँगा लेकर राहाता से खुशालचन्द को लाने के लिये भेजा, क्योंकि खुशालचन्द से उनकी कई दोनों से भेंट न हुई थी । राहाता पहुँच कर काकासाहेब ने यह सन्देश उन्हें सुना दिया । यह सन्देश सुनकर उन्हें महान् आश्चर्य हुआ और वे कहने लगे कि दोपहर को भोजन के उपरान्त थोड़ी देर को मुझे झपकी सी आ गई थी, तभी बाबा स्वप्न में आये और मुझे शीघ्र ही शिरडी आने को कहा । परन्तु घोडे का उचित प्रबन्ध न हो सकने के कारण मैंने अपने पुत्र को यह सूचना देने के लिये ही उनके पास भेजा था । जब वह गाँव की सीमा तक ही पहुँचा था, तभी आप सामने से ताँगे में आते दिखे ।
वे दोनों उस ताँगे में बैठकर शिरडी पहुँचे तथा बाबा से भेंटकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई । बाबा की यह लीला देख खुशालचन्द गदगद हो गये ।

बम्बई के रामलाल पंजाबी
बम्बई के एक पंजाबी ब्राहमण श्री. रामलाल को बाबा ने स्वप्न में एक महन्त के वेश में दर्शन देकर शिरडी आने को कहा । उन्हें नाम ग्राम का कुछ भी पता चल न रहा था । उनको श्री-दर्शन करने की तीव्र उत्कंठा तो थी, परन्तु पता-ठिकाना ज्ञात न होने के कारण वे बड़े असमंजस में पड़े हुये थे । जो आमंत्रण देता है, वही आने का प्रबन्ध भी करता है और अन्त में हुआ भी वैसा ही । उसी दिन सन्ध्या समय जब वे सड़क पर टहल रहे थे तो उन्होंने एक दुकान पर बाबा का चित्र टंगा देखा । स्वप्न में उन्हें जिस आकृति वाले महन्त के दर्शन हुए थे, वे इस चित्र के समक्ष ही थे । पूछताछ करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि यह चित्र शिरडी के श्री साई समर्थ का है और तब उन्होंने शीघ्र ही शिरडी को प्रस्थान कर दिया तथा जीवनपर्यन्त शिरडी में ही निवास किया ।
इस प्रकार बाबा ने अपने भक्तों को अपने दर्शन के लिये शिरडी में बुलाया और उनकी लौकिक तथा पारलौकिक समस्त इच्छाँए पूर्ण की ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

विनम्र प्रार्थना

ॐ साईं राम
 श्री सद्गुरु साईनाथ. मेरा मन-मधुप आपके चरण कमल और भजनों में ही लगा रहे । आपके अतिरिक्त भी अन्य कोई ईश्वर है, इसका मुझे ज्ञान नहीं । मुझ पर आप सदा दया और स्नेह करें और अपने चरणों के दीन दास की रक्षा कर उसका कल्याण करें । आपके भवभयनाशक चरणों का स्मरण करते हैं...ये मेरा जीवन आनन्द से व्यतीत हो जाये, ऐसी मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है । श्री सद्गुरु साईनाथार्पणमस्तु 
क्या कहूँ क्या है आरजू मेरी,
आरजू सबसे जुदा है मेरी 
तेरे कदमो में मेरा दम निकले. 
मेरे बाबा ये दुआ हे मेरी 
 बाबा : "जो पहले मेरा ही चिंतन करता है और प्रेम ही जिसकी भूख-प्यास है और जो पहले मुझे अर्पित किये बिना कुछ भी नही खाता, मैं उसके आधीन हूँ" 
मेरा हर एक आँसू सांई तुझे ही पुकारे है,
मेरी पहुँच तुझ तक सिर्फ आँसुओं के सहारे है,
जब आप की याद सांई सही न जाए 
आप को सामने न पा कर दिल मेरा घबराए है,
तब ज़ुबा, हाथ, पांव सब बेबस होते है,
इन्ही का काम सांई आँसू कर देते है, 
ये आप तक तो नहीं पहुँचते पर फिर भी,
इस तङप को कुछ शांत कर देते है,
जब तक ये बहते है सांई आँखे बंद रहती है,
बंद आँखे ही सांई मुझे आप से मिलाती है, 
बह बह कर सांई जब ये थक जाते है,
कुछ समय सांस लेने खुद ही रूक जाते है,
पर आप की याद कभी नहीं थकती है,
बिना रूके सदा मेरी सांसों के साथ ही चलती है,
मुझे मंज़ूर है ये सौदा आप यूँ ही याद आते रहिए,
आँसूओं के सहारे ही सही मेरे नैनों में समाते रहिए 
श्री साईनाथ आपके ऋण हम किस प्रकार चुका सकेंगें । आपके श्री चरणों में हमारा बार-बार प्रणाम है । हम दीनों पर आप सदैव कृपा करते रहियेगा, क्योंकि हमारे मन में सोते-जागते हर समय न जाने क्या-क्या संकल्प-विकल्प उठा करते है । आपके भजन में ही हमारा मन मग्न हो जाये, ऐसा आर्शीवाद दीजिये । 
 

Wednesday, 2 November 2011

ओ मेरे प्यारे बच्चों ,मैं क्या करता

ॐ साईं राम
 
जैसे बच्चा अपने टूटे खिलौने लाता है,
आँखो में आँसू लिए,माता-पिता के पास!
वैसे ही हम अपने टूटे सपने लाते है बाबा के पास,
क्योंकि साईं, मेरे करूणामयी साईं पूरी करते है सब की आस!!

फिर शांति से उन्हें काम
करने देने की बजाय
हम बार-बार उन्हें टोकते है,
अपने ढंग से उन्हें मदद की गुहार लगाते है,
ऐसा होता तो अच्छा रहता,
ये हो जाता तो और अच्छा हो जाता,
वो नहीं किया....ऐसा कर दो न बाबा.....

जब फिर पूरे न होते सपने,

फिर यूँ लगता अब बाबा न रहे अपने,
फिर लगाने लगते शिकायतों की फेरी,
दूसरों की व्यथा सुनते हो
और मेरी बारी क्यों इतनी देरी??

फिर मेरे साईं मेरे बाबा बोले कुछ यूँ रो कर--
"ओ मेरे प्यारे बच्चों ,मैं क्या करता?
मैं क्या कर सकता था?
तुमने कभी पूर्ण विश्वास किया ही नहीं,
तुमने कभी पूरी तरह छोड़ा ही नहीं मुझ पर ".....

गुरु

जय साईं माँ
गुरु
गु - अर्थात अंधकार ... रु - अर्थात रोशनी
अर्थात  गुरु हमें अंधकार में रोशनी दिखाता है
हम गुरु धारण इसलिए करते है ताकि हम भटके हुए मार्ग में भी रोशनी पा सकें .
हम गुरु धारण इसलिये करते है ताकि हम सच्ची राह पर चल सकें .
हम गुरु धारण इसलिए करते है ताकि हमें मोक्ष की प्राप्ति होवें .
हम गुरु धारण इसलिए करते है ताकि हम संसार रुपी जाल में न फसें .
हम गुरु धारण इसलिए करते है ताकि हम किसी का बुरा न सोचें .
हम गुरु धारण इसलिए करते है ताकि हमारे कष्टों का निवारण हो सकें .
गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊंचा होता है

शास्त्रों में माँ का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा बताया गया है क्यों की माँ ही मनुष्य की पहली गुरु होती है

   

हो जाए बंद आँखे मेरी,तेरा ध्यान करते करते

ॐ सांई राम
बाबा के पुजारी

सुध तन मन की भूल जाऊं,कभी होश में न आंऊ

तेरे धाम पहुचँ जाऊं,या किसी के काम आंऊ...
शुभ काम पाठ पूजा,गुणगान करते करते
...हो जाए बंद आँखे मेरी,तेरा ध्यान करते करते...


साईं नाम को हृदय में धर ले
राह मुक्ति की निश्चित कर ले
वो त्रिकालदर्शी सब जाने

जाने न कोई भी बन्दा

और न ही संसार
बस......,
तू अपना कर्म करता चला जा
साईं नाम का श्रवण करता चला जा

Tuesday, 1 November 2011

तेरे दर का सवाली कभी जाये न ख़ाली

ॐ साईं राम
तेरे दर का सवाली कभी जाये न ख़ाली
 
तू है साईं शिर्डी वाला तेरी शान है निराली
 
तुझे जिसने पुकारा माँगा जिसने सहारा
 
तेरा एक ही इशारा दे दे सबको किनारा
 
हम तेरे मस्ताने तेरे नाम के दीवाने
 
साईं तेरे तू ही जाने ज्योति के ही परवाने
 
साईं मैं हूँ कमज़ोर बाबा तेरे हाथ डोर 
 
मेरा कोई नहीं और मुझे ख़ाली न मोड़

विशेष आभार : साईं प्रिया

सांई से हो गई मुलाकात

ॐ साईं राम



यूँ ही एक दिन चलते-चलते सांई से हो गई मुलाकात। 
जब अचानक सांई सच्चरित्र की पाई एक सौगात। 
फिर सांई के विभिन्न रूपों के मिलने लगे उपहार। 
तब सांई ने बुलाया मुझको शिरडी भेज के तार। 
सांई सच्चरित्र ने मुझ पर अपना ऐसा जादू डाला। 
सांई नाम की दिन-रात मैं जपने लगा फिर माला। 
घर में गूँजने लगी हर वक्त सांई गान की धुन। 
मन के तार झूमने लगे सांई धुन को सुन। 
धीरे-धीरे सांई भक्ति का रंग गाढ़ा होने लगा। 
और सांई कथाओं की खुश्बूं में मन मेरा खोने लगा। 
सांई नाम के लिखे शब्दों पर मैं होने लगी फिदा। 
अब मेरे सांई को मुझसे कोई कर पाए गा ना जुदा। 
हर घङी मिलता रहे मुझे सांई का संतसंग। 
सांई मेरी ये साधना कभी ना होवे भंग। 
सांई चरणों में झुका रहे मेरा यह शीश। 
सांई मेरे प्राण हैं और सांई ही मेरे ईश। 
भेदभाव से दूर रहूँ,शुद्ध हो मेरे विचार। 
सांई ज्ञान की जीवन में बहती रहे ब्यार |

साईं की बेटी प्रिया

द्वारकामाई की महिमा

ॐ साईं राम
द्वारकामाई की महिमा
जय हो जय हो द्वारकामाई , यहाँ रहते है मेरे साईं
भक्तों इनको करो प्रणाम, बनते सबके बिगरे काम
होती यहाँ सबकी सुनवाई , जय हो जय हो द्वारकामाई


यहाँ पर धुनी जलती है, जिससे उदी बनती है
जो हर दावा मैं काम आई, जय हो जय हो द्वारकामाई


यहाँ जो दुखिया आता है , वो भव से तर जाता है
साईं ने यहाँ अमृत बरसाई , पावन हो जाओ मेरे भाई
जय हो जय हो द्वारकामाई

 
यहाँ साईं ने पानी से दिये जलाये है , अपने चमत्कार दिखाये है
श्रद्धा सबुरी का पाठ पढाये है , सबका मालिक एक की बात बताये है
जय हो जय हो द्वारकामाई



यहाँ सबकी झोली भरती है , यह सबका पेट भरती है

यह द्वारकामाई सबकी माई है ,जय हो जय हो द्वारकामाई


यह ग्यारह वचन निभाती है , सबकी बिगड़ी बनाती है

मन मैं विश्वास रखो मेरे भाई , इसके दर्शन करो भाई
जय हो जय हो द्वारकामाई
 

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.