वर्ल्ड ऑफ़ साईं ग्रुप में आपका हार्दिक स्वागत है । श्री साईं जी के ब्लॉग में आने के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद । श्री साईं जी की कृपा आप सब पर सदैव बनी रहे ।

शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें

शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Saturday, 1 February 2014

कोई रोता है तुम्हे याद कर के बाबा...

ॐ सांई राम



कैसे आऊं मै शिर्डी में बाबा
मुझको अब तुम ही बतला दो
कोई तो रास्ता अब निकालो
जो जल्दी से तेरे दर पे लाये
बहुत तरसी है आंखे ये अब तक
कब देखेंगी ये वो नजारा
जब मुझको भी जन्नत के दर्शन
तेरी शिर्डी में जा कर होंगे
मैंने हर पल तुझको ही चाहा
फिर क्यूँ  न सुना तुमने बाबा
क्या एक बेटे को अपने पिता से
मिलने को तड़पते ही रहना है
खबर तो तुम्हे भी ये होगी
कोई रोता है तुम्हे याद कर के
तुम तो नरम दिल हो बाबा
फिर कैसे जुदाई तुम सह गए
साईं भक्त ये अरदास करें
हाथ जोड़ के साईं चरणों में
कैसे आऊं मै शिर्डी में बाबा
मुझको अब तुम ही बतला दो साईं नाथ मेरे !!!

Friday, 31 January 2014

माँ-बाप को भूलना नहीं।

ॐ साईं राम 

भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं।

उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।।

पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे।

पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।।

मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया।

अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।।

कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये।

पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।।

लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।

सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।।

सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो।

जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।।

सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह।

माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।।

जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में।

उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।।

धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे ?

Thursday, 30 January 2014

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 10

ॐ सांई राम

आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साँईं ग्रुप की और से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं |
हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है |
हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा| किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है|

श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 10
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श्री साईबाबा का रहन सहन, शयन पटिया, शिरडी में निवास, उनके उपदेश, उनकी विनयशीनता, सुगम पथ ।
प्रारम्भ
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Wednesday, 29 January 2014

है कस्तूरी सम मोहक संत ............

ॐ सांई राम!!!


है कस्तूरी सम मोहक संत। कृपा है उनकी सरस सुगंध।

ईखरसवत होते हैं संत। मधुर सुरूचि ज्यों सुखद बसंत॥

साधु-असाधु सभी पा करूणा। दृष्टि समान सभी पर रखना।

पापी से कम प्यार न करते। पाप-ताप-हर-करूणा करते॥

जो मल-युत है बहकर आता। सुरसरि जल में आन समाता।

निर्मल मंजूषा में रहता। सुरसरि जल नहीं वह गहता॥

वही वसन इक बार था आया। मंजूषा में रहा समाया।

अवगाहन सुरसरि में करता। धूल कर निर्मल खुद को करता॥

सुद्रढ़ मंजूषा है बैकुण्ठ। अलौकिक निष्ठा गंग तरंग।

जीवात्मा ही वसन समझिये। षड् विकार ही मैल समझिये॥

जग में तव पद-दर्शन पाना। यही गंगा में डूब नहाना।

पावन इससे होते तन-मन। मल-विमुक्त होता वह तत्क्षण॥

दुखद विवश हैं हम संसारी। दोष-कालिमा हम में भारी।

सन्त दरश के हम अधिकारी। मुक्ति हेतु निज बाट निहारी॥

गोदावरी पूरित निर्मल जल। मैली गठरी भीगी तत्जल।

बन न सकी यदि फिर भी निर्मल। क्या न दोषयुत गोदावरि जल॥

आप सघन हैं शीतल तरूवर।श्रान्त पथिक हम डगमग पथ हम।

तपे ताप त्रय महाप्रखर तम। जेठ दुपहरी जलते भूकण॥

ताप हमारे दूर निवारों। महा विपद से आप उबारों।

करों नाथ तुम करूणा छाया। सर्वज्ञात तेरी प्रभु दया॥

परम व्यर्थ वह छायातरू है। दूर करे न ताप प्रखर हैं।

जो शरणागत को न बचाये। शीतल तरू कैसे कहलाये॥

कृपा आपकी यदि नहीं पाये। कैसे निर्मल हम रह जावें।

पारथ-साथ रहे थे गिरधर। धर्म हेतु प्रभु पाँचजन्य-धर॥

सुग्रीव कृपा से दनुज बिभीषण। पाया प्राणतपाल रघुपति पद।

भगवत पाते अमित बङाई। सन्त मात्र के कारण भाई॥

नेति-नेति हैं वेद उचरते। रूपरहित हैं ब्रह्म विचरते।

महामंत्र सन्तों ने पाये। सगुण बनाकर भू पर लायें॥

दामा ए दिया रूप महार। रुकमणि-वर त्रैलोक्य आधार।

चोखी जी ने किया कमाल। विष्णु को दिया कर्म पशुपाल॥

महिमा सन्त ईश ही जानें। दासनुदास स्वयं बन जावें।

सच्चा सन्त बङप्पन पाता। प्रभु का सुजन अतिथि हो जाता॥

ऐसे सन्त तुम्हीं सुखदाता। तुम्हीं पिता हो तुम ही माता।

सदगुरु सांईनाथ हमारे। कलियुग में शिरडी अवतारें॥

लीला तिहारी नाथ महान। जन-जन नहीं पायें पहचान।

जिव्हा कर ना सके गुणगान। तना हुआ है रहस्य वितान॥

तुमने जल के दीप जलायें। चमत्कार जग में थे पायें।

भक्त उद्धार हित जग में आयें। तीरथ शिरडी धाम बनाए॥

जो जिस रूप आपको ध्यायें। देव सरूप वही तव पायें।

सूक्षम तक्त निज सेज बनायें। विचित्र योग सामर्थ दिखायें॥

पुत्र हीन सन्तति पा जावें। रोग असाध्य नहीं रह जावें।

रक्षा वह विभूति से पाता। शरण तिहारी जो भी आता॥

भक्त जनों के संकट हरते। कार्य असम्भव सम्भव करतें।

जग की चींटी भार शून्य ज्यों। समक्ष तिहारे कठिन कार्य त्यों॥

सांई सदगुरू नाथ हमारें। रहम करो मुझ पर हे प्यारे।

शरणागत हूँ प्रभु अपनायें। इस अनाथ को नहीं ठुकरायें॥

प्रभु तुम हो राज्य राजेश्वर। कुबेर के भी परम अधीश्वर।

देव धन्वन्तरी तव अवतार। प्राणदायक है सर्वाधार॥

बहु देवों की पूजन करतें। बाह्य वस्तु हम संग्रह करते।

पूजन प्रभु की शीधी-साधा। बाह्य वस्तु की नहीं उपाधी॥

जैसे दीपावली त्यौहार। आये प्रखर सूरज के द्वार।

दीपक ज्योतिं कहां वह लाये। सूर्य समक्ष जो जगमग होवें॥

जल क्या ऐसा भू के पास। बुझा सके जो सागर प्यास।

अग्नि जिससे उष्मा पायें। ऐसा वस्तु कहां हम पावें॥

जो पदार्थ हैं प्रभु पूजन के। आत्म-वश वे सभी आपके।

हे समर्थ गुरू देव हमारे। निर्गुण अलख निरंजन प्यारे॥

तत्वद्रष्टि का दर्शन कुछ है। भक्ति भावना-ह्रदय सत्य हैं।

केवल वाणी परम निरर्थक। अनुभव करना निज में सार्थक॥

अर्पित कंरू तुम्हें क्या सांई। वह सम्पत्ति जग में नहीं पाई।

जग वैभव तुमने उपजाया। कैसे कहूं कमी कुछ दाता॥

"पत्रं-पुष्पं" विनत चढ़ाऊं। प्रभु चरणों में चित्त लगाऊं।

जो कुछ मिला मुझे हें स्वामी। करूं समर्पित तन-मन वाणी॥

प्रेम-अश्रु जलधार बहाऊं। प्रभु चरणों को मैं नहलाऊं।

चन्दन बना ह्रदय निज गारूं। भक्ति भाव का तिलक लगाऊं॥

शब्दाभूष्ण-कफनी लाऊं। प्रेम निशानी वह पहनाऊं।

प्रणय-सुमन उपहार बनाऊं। नाथ-कंठ में पुलक चढ़ाऊं॥

आहुति दोषों की कर डालूं। वेदी में वह होम उछालूं।

दुर्विचार धूम्र यों भागे। वह दुर्गंध नहीं फिर लागे॥

अग्नि सरिस हैं सदगुरू समर्थ। दुर्गुण-धूप करें हम अर्पित।

स्वाहा जलकर जब होता है। तदरूप तत्क्षण बन जाता है॥

धूप-द्रव्य जब उस पर चढ़ता। अग्नि ज्वाला में है जलता।

सुरभि-अस्तित्व कहां रहेगा। दूर गगन में शून्य बनेगा॥

प्रभु की होती अन्यथा रीति। बनती कुवस्तु जल कर विभुति।

सदगुण कुन्दन सा बन दमके। शाशवत जग बढ़ निरखे परखे॥

निर्मल मन जब हो जाता है। दुर्विकार तब जल जाता है।

गंगा ज्यों पावन है होती। अविकल दूषण मल वह धोती॥

सांई के हित दीप बनाऊं। सत्वर माया मोह जलाऊं।

विराग प्रकाश जगमग होवें। राग अन्ध वह उर का खावें॥

पावन निष्ठा का सिंहासन। निर्मित करता प्रभु के कारण।

कृपा करें प्रभु आप पधारें। अब नैवेद्य-भक्ति स्वीकारें॥

भक्ति-नैवेद्य प्रभु तुम पाओं। सरस-रास-रस हमें पिलाओं।

माता, मैं हूँ वत्स तिहारा। पाऊं तव दुग्धामृत धारा॥

मन-रूपी दक्षिणा चुकाऊं। मन में नहीं कुछ और बसाऊं।

अहम् भाव सब करूं सम्पर्ण। अन्तः रहे नाथ का दर्पण॥

बिनती नाथ पुनः दुहराऊं। श्री चरणों में शीश नमाऊं।

सांई कलियुग ब्रह्म अवतार। करों प्रणाम मेरे स्वीकार॥

ॐ सांई राम!!!

Tuesday, 28 January 2014

श्री चरणों में भक्ती

ॐ सांई राम


ॐ शिरडी वासाय विधमहे
सच्चिदानन्दाय धीमही
तन्नो साईं प्रचोदयात॥
पलक उठे जब जब भी अपने,
बाबा जी का दर्शन पाये |
पलक झुके तो मन मन्दिर में,
बाबाजी को बैठा पाये |
मुख से जब कुछ बोलें तो,
साईं नाम ही दोहरायें |
कानों से कुछ सुनना हो तो,
साईं नाद ही सुन पायें |
हाथ उठें तो जुड जायें,
श्री चरणों में भक्ती से |
कारज करते साईं ध्यायें,
बाबा जी की शक्ती से ||

Monday, 27 January 2014

आँसूओं के सहारे ही सही मेरे नैनों में समाते रहिए


ॐ सांई राम



मेरा हर एक आँसू सांई तुझे ही पुकारे
मेरी पहुँच तुझ तक सिर्फ आँसुओं के सहारे
जब आप की याद सांई सही न जाए
आप को सामने न पा कर दिल मेरा घबराए
तब ज़ुबा, हाथ , पांव सब बेबस होते है
इन्ही का काम सांई आँसू कर देते है
ये आप तक तो नहीं पहुँते पर फिर भी
इस तङप को कुछ शांत कर देते है
जब तक ये बहते है सांई आँखे बंद रहती है
बंद आँखे ही सांई मुझे आप से मिलाती है
बह बह कर सांई जब ये आंसू थक जाते है
कुछ समय सांस लेने खुद ही रूक जाते है,
पर आप की याद कभी नहीं थकती है,
बिना रूके सदा मेरी सांसों के साथ ही चलती है
मुझे मंज़ूर है ये सौदा आप यूँ ही याद आते रहिए
आँसूओं के सहारे ही सही मेरे नैनों में समाते रहिए

Sunday, 26 January 2014

|| गणतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ||

ॐ सांई राम

भारतीय होने  पर  करिए  गर्व,
मिलके  मानिए  लोकतंत्र  का  पर्व,
देश  के  दुश्मनों को मिलके हराओ,
हर घर पर तिरंगा लहराओ.
जय भारत
|| जय हिंद ||

31 राज्य
1618 भाषाएँ
6400 जातियां
6 से भी अधिक धर्म
29 से भी ज्यादा त्यौहार
1 देश.......
PROUD TO BE AN INDIAN
Because it happens only in INDIA

*Happy Republic Day*
|| गणतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं ||

Saturday, 25 January 2014

जन-गण-मन अधिनायक जय हे

ॐ सांई राम

जन-गण-मन अधिनायक जय हे


भारत भाग्य विधाता


पंजाब-सिंध-गुजरात-मराठा

द्रविड़ उत्कल बंगा


विंध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा

उच्छल जलधि तरंगा


तव: शुभ  नामे जागे

तव: शुभ   आशीष मांगे


गाये तव: जय गाथा

जन  गण  मंगलदायक जय हे


भारत भाग्य विधाता

जय हे जय हे जय हे


जय जय जय जय हे!
जय हिंद
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Thou art the ruler of the minds of all people,
Dispenser of India's destiny.
Thy name rouses the hearts of 
PunjabSind,Gujarat and Maratha,
Of the 
Dravida and Orissa and Bengal;
It echoes in the hills of the 
Vindhyas and Himalayas,
mingles in the music of 
Jamuna and Ganges and is
chanted by the waves of the Indian Sea.
They pray for thy blessings and sing thy praise.
The saving of all people waits in thy hand,
Thou dispenser of India's destiny.
Victory, victory, victory, Victory to thee.
*****************************************

Friday, 24 January 2014

मैली चादर ओड़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊँ

ॐ सांई राम 

मैली चादर  ओड़  के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ
हे पावन परमेश्वर मेरे
मन ही मन शरमाऊँ

[मैली चादर  ओड़  के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]


तुने मुझको जग में भेजा
निर्मल दे कर काया
इस संसार में आकार मैंने
इसको दाग लगाया
जनम जनम की मैली चादर
कैसे दाग छुडाऊँ

[मैली चादर  ओड़  के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]


निर्मल वाणी पाकर तुझसे
नाम न तेरा गाया
नैन मूंदकर हे परमेश्वर
कभी ना तुझको ध्याया
मन वीणा की तारें टूटी
अब क्या गीत सुनाऊँ

[मैली चादर  ओड़  के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]

  
इन पैरों से चल कर तेरे
मंदिर कभी ना आया
जहां जहां हो पूजा तेरी
कभी ना शीश झुकाया
हे हरिहर मैं हार के आया
अब क्या हार चढाऊँ

[मैली चादर  ओड़  के कैसे
द्वार तुम्हारे आऊँ …]


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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.