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Tuesday 27 May 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - माता कैकेयी

ॐ श्री साँई राम जी


माता कैकेयी

कैकेयीजी महाराज केकयनरेशकी पुत्री तथा महाराज दशरथकी तीसरी पटरानी थीं| ये अनुपम सुन्दरी, बुद्धिमति, साध्वी और श्रेष्ठ वीराग्ङना थीं| महाराज दशरथ इनसे सर्वाधिक प्रेम करते थे| इन्होंने देवासुरसंग्राममें महाराज दशरथके साथ सारथिका कार्य करके अनुपम शौर्यका परिचय दिया और महाराज दशरथके प्राणोंकी दो बार रक्षा की| यदि शम्बरासुरसे संग्राममें महाराजके साथ महारानी कैकेयी न होतीं तो उनके प्राणोंकी रक्षा असम्भव थी| महाराज दशरथने अपने प्राण-रक्षाके लिये इनसे दो वार माँगनेका आग्रह किया और इन्होंने समयपर माँगनेकी बात कहकर उनके आग्रहको टाल दिया| इनके लिये पतिप्रेमके आगे संसारकी सारी वस्तुएँ तुच्छ थीं|

महारानी कैकेयी भगवान् श्रीरामसे सर्वाधिक स्नेह करती थीं| श्रीरामके युवराज बनाये जानेका संवाद सुनते ही ये आनन्दमग्न हो गयीं| मन्थराके द्वारा यह समाचार पाते ही इन्होंने उसे अपना मूल्यवान् आभूषण प्रदान किया और कहा - 'मन्थरे! तूने मुझे बड़ा ही प्रिय समाचार सुनाया है| मेरे लिये श्रीराम-अभिषेकके समाचारसे बढ़कर दूसरा कोई प्रिय समाचार नहीं हो सकता| इसके लिये तू मुझसे जो भी माँगेगी, मैं अवश्य दूँगी!' इसीसे पता लगता है कि ये श्रीरामसे कितना प्रेम करती थीं| इन्होंने मन्थराकि विपरीत बात सुनकर उसकी जीभतक खींचनेकी बात कहीं| इनके श्रीरामके वनगमनमें निमित्त बनने का प्रमुख कारण श्रीरामकी प्रेरणासे देवकार्यके लिये सरस्वतीदेवीके द्वारा इनकी बुद्धिका परिवर्तन कर दिया जाना था| महारानी कैकेयीने भगवान् श्रीरामकी लीलामें सहायता करनेके लिये जन्म लिया था| यदि श्रीरामका अभिषेक हो जाता तो वनगमनके बिना श्रीरामका ऋषि-मुनियोंको दर्शन, रावण-वध, साधु-परित्राण, दुष्ट-विनाश, धर्म-संरक्षण आदि अवतारके प्रमुख कार्य नहीं हो पाते| इससे स्पष्ट है कि कैकेयीजीने श्रीरामकी लीलामें सहयोग करनेके लिये ही जन्म लिया था| इसके लिये इन्होंने चिरकालिक अपयशके साथ पापिनी, कुलघातिनी, कलक्ङिनी आदि अनेक उपाधियोंको मौन होकर स्वीकार कर लिया|

चित्रकूटमें जब माता कैकेयी श्रीरामसे एकान्तमें मिलीं, तब इन्होंने अपने नेत्रोंमें आँसू भरकर उनसे कहा - 'हे राम! मायासे मोहित होकर मैंने बहुत बड़ा अपकर्म किया है| आप मेरी कुटिलताको क्षमा कर दें, क्योंकि साधुजन क्षमाशील होते हैं| देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये आपने ही मुझसे यह कर्म करवाया है| मैंने आपको पहचान लिया है| आप देवताओंके लिये भी मन, बुद्धि और वाणीसे परे हैं|'

भगवान् श्रीरामने उनसे कहा - 'महाभागे! तुमने जो कहा, वह मिथ्या नहीं है| मेरी प्रेरणासे ही देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये तुम्हारे मुखसे वे शब्द निकले थे| उसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है| अब तुम जाओ| सर्वत्र आसक्तिरहित मेरी भक्तिके द्वारा तुम मुक्त हो जाओगी|'

भगवान् श्रीरामके इस कथनसे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि कैकेयीजी श्रीरामकी अन्तरंग भक्त, तत्त्वज्ञान-सम्पन्न और सर्वथा निर्दोष थीं| इन्होंने सदाके लिये अपकीर्तिका वरण करके भी श्रीरामकी लीलामें अपना विलक्षण योगदान दिया|

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.