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Sunday 1 June 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - श्रीशत्रुघ्न

ॐ श्री साँईं राम जी



श्रीशत्रुघ्नजी का चरित्र अत्यन्त विलक्षण है| ये मौन सेवाव्रती हैं| बचपनसे श्रीभरतजीका अनुगमन तथा सेवा ही इनका मुख व्रत था| ये मितभाषी, सदाचारी, सत्यवादी, विषय-विरागी तथा भगवान् श्रीरामके दासानुदास हैं| जिस प्रकार श्रीलक्ष्मणजी हाथमें धनुष श्रीरामकी रक्षा करते हुए उनके पीछे चलते थे, उसी प्रकार श्रीशत्रुघ्नजी भी श्रीभरतजीके साथ रहते थे|

जब श्रीभरतजीके मामा युधाजित् श्रीभरतजीको अपने साथ ले जा रहे थे, तब श्रीशत्रुघ्नजी भी उनके साथ ननिहाल चले गये| इन्होंने माता-पिता, भाई, नवविवाहिता पत्नी सबका मोह छोड़कर श्रीभरतजीके साथ रहना और उनकी सेवा करना ही अपना कर्तव्य मान लिया था| भरतजीके साथ ननिहालसे लौटनेपर पिताके मरण और लक्ष्मण, सीतासहित श्रीरामके वनवासका समाचार सुनकर इनका हृदय दुःख और शोकसे व्याकुल हो गया| उसी समय इन्हें सूचना मिली कि जिस क्रूरा पापिनीके षड्यन्त्रसे श्रीरामका वनवास हुआ, वह वस्त्राभूषणोंसे सज-धजकर खड़ी है, तब ये क्रोधसे व्याकुल हो गये| ये मन्थराकी चोटीपकड़कर उसे आँगनमें घसीटने लगे| इनके लातके प्रहारसे उसका कूबर टूट गया और सिर फट गया| उसकी दशा देखकर श्रीभरतजीको दया आ गयी और उन्होंने उसे छुड़ा दिया| इस घटनासे श्रीशत्रुघ्नजीकी श्रीरामके प्रति दृढ़ निष्ठा और भक्तिका परिचय मिलता है|

चित्रकूटसे श्रीराम पादुकाएँ लेकर लौटते समय जब श्रीशत्रुघ्नजी श्रीरामसे मिले, तब इनके तेज स्वभावको जानकर भगवान् श्रीरामने कहा - 'शत्रुघ्न! तुम्हें मेरी और सीताकी शपथ है, तुम माता कैकेयीकी सेवा करना, उनपर कभी भी क्रोध मत करना|'

श्रीशत्रुघ्नजीका शौर्य भी अनुपम था| सीता-वनवासके बाद एक दिन ऋषियोंने भगवान् श्रीरामकी सभामें उपस्थित होकर लवणासुरके अत्याचारोंका वर्णन किया और उसका वध करके उसके अत्याचारोंसे मुक्ति दिलानेकी प्रार्थना की| श्रीशत्रुघ्नजीने भगवान् श्रीरामकी आज्ञासे वहाँ जाकर प्रबल पराक्रमी लवणासुरका वध किया और मथुरापुरी बसाकर वहाँ बहुत दिनोंतक शासन किया|

भगवान् श्रीरामके परमधाम पधारनेके समय मथुरामें अपने पुत्रोंका राज्याभिषेक करके श्रीशत्रुघ्नजी अयोध्या पहुँचे| श्रीरामके पास आकर और उनके चरणोंमें प्रणाम करके इन्होंने विनीत भावसे कहा - 'भगवन्! मैं अपने दोनों पुत्रोंका राज्याभिषेक करके आपके साथ चलनेका निश्चय करके ही यहाँ आया हूँ| आप अब मुझे कोई दूसरी आज्ञा न देकर अपने साथ चलनेकी अनुमति प्रदान करें|' भगवन् श्रीरामने शत्रुघ्नजीकी प्रार्थना स्वीकार की और वे श्रीरामचन्द्रके साथ ही साकेत पधारे|


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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.