ॐ सांई राम
मैं हूँ मजबूर मेरे हाथ बंधे, होंठ सिले .
पत्ता-पत्ता भी यहाँ का वो हिलाए,तो हिले ..
मेरे साई से है सिर्फ एक तमन्ना मेरी .
मुझको कुछ होश ना हो फिर भी मुझे आन मिले ..
पत्ता-पत्ता भी .....
तेरे पास आके में दुनिया के सितम भूल गया .
ये भी तेरा करम दिल में है शिकवे ना गिले ..
पत्ता-पत्ता भी .....
मैं ने हर हाल में खामोश इबादत की है .
मैं ने मांगे हैं कहाँ अपनी वफाओ के सिले ..
पत्ता-पत्ता भी .....
एक दिन धूप जला देगी हर इक पत्ती को .
नासमझ बनके अगर फुल को खिलना है, खिले ..
पत्ता-पत्ता भी .....
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