ॐ श्री साँई राम जी
छज्जू झीवर
सतिगुरु हरिकृष्ण साहिब जी दिल्ली को जा रहे थे| आप को बालक रूप में गुरुगद्दी पर विराजमान देखकर कई अज्ञानी तथा अहंकारी पंडित मजाक करते थे| उनके विचार से गुरु साहिब के पास कोई आत्मिक शक्ति नहीं थी| ऐसे पुरुष जब निकट हो कर चमत्कार देखते हैं तो सिर नीचे कर लेते हैं| पर हर एक गुरु साहिब में सतिगुरु नानक देव जी अकाल पुरुष से प्राप्त की शक्ति थी, जो चाहें कर सकते थे|
एक नगर में पड़ाव किया| जीव दर्शन करके आनंदित होते तथा जन्म मरन कटते और दुःख दूर करते थे| सतिगुरु जी की उपमा सुन कर अनेक लोग आए थे तथा दीवान सज गया तथा| उसी समय एक पंडित आया| उसका नाम लाल जी था| उसने दर्शन किए|
अहंकार से भरा मन में विचार आया-'मैं चार वेदों, गीता तथा उपनिषदों का कथा वाचक हूं मेरी बराबरी कौन कर सकता है| यदि गुरु हो तो गीता के अर्थ करें| ऐसी मन की बात उसने व्यक्त कर दी| इस समय जो उसके पास थे उनको शंका हुई|
ज्योति स्वरूप कृपा के दाता, अंतर्यामी सतिगुरु जी पंडित लाल के मन की बात जान गए| उन्होंने ऊंचे स्वर में वचन किया -'पंडित जी! आप के मन में जो शंका है निवृत कर लो सतिगुरु नानक देव जी सर्वज्ञाता हैं|
पंडित लाल कुछ शर्मिन्दा हुआ, फिर भी उस को विद्या तथा आयु का अभिमान था| उठ कर आगे हुआ तथा कहने लगा -
'गीता के अर्थ सुनाओ|'
'यदि हमने अर्थ बताए तो आप सोचेंगे शायद अर्थ याद किए हैं, इसलिए कोई आदमी बाहर से ले आओ| आप ने सतिगुरु महाराज के घर पर भी संदेह किया है, इसलिए उसको दूर करो|' सतिगुरु जी ने पंडित को फ़रमाया|
पंडित लाल बहुत अहंकार में आ गया|
वह दीवान में से उठ कर बाहर गया तथा एक अनपढ़ छज्जू झीवर को पकड़ कर ले आया| सतिगुरु जी ने छज्जू को अपने पास बिठाया तथा उसके सिर पर छड़ी रखी तथा वचन किया -
'हे पंडित! जिस को ले आए हो, ठीक है, कर्मों की गति न्यारी है यह तो पूर्व जन्म में पंडित था| चार वेद तथा गीता की कथा किया करता था| पर इस समय दाने भुनता है तथा आप लोग अज्ञानी मुर्ख समझ रहे हो| इसका ज्ञान किसी को नहीं|
यह सुन कर पंडित लाल बहुत हक्का-बक्का हुआ तथा इधर छज्जू की भी पूर्व जन्म की चेतना जाग पड़ी| उसके सामने गीता आई| गीता के सारे श्लोक आए तथा श्लोकों के भाव अर्थ! उसने हाथ जोड़ कर सतिगुरु जी के पास विनती की-'महाराज! आपकी अपार कृपा दृष्टि हुई है, जो आप ने पूर्व जन्म का ज्ञान करा दिया है| मुझे अहंकार हो गया था, इसलिए मैं जितना विद्वान तथा ज्ञानी था उतना ही फिर मुर्ख, अनपढ़ तथा अज्ञानी हुआ| यह जन्म मेरे अहंकार का दण्ड है| परमात्मा की लीला है कि संयोग बना दिया तथा आपके चरणों में हाजिर हो गया हूं| जैसे हुक्म करोगे वैसा ही होगा| आप तो त्रिलोकी के मालिक हो, ज्ञानी हो, ब्रह्म ज्ञान का पता है| कृपा करो तथा यह पुतली नाचती रहेगी|
पंडित लाल ने छज्जू से यह कुछ सुना तो उसके पैरों के नीचे की मिट्टी निकल गई, उसको प्रत्यक्ष दिखाई दिया, छज्जू पंडित की तरह तिलकधारी बैठा था तथा उसके गले में जनेऊ था| उसने आंखें मली तो हैरान हुआ पर उसकी अहंकारी आत्मा इस भेद को न जान सकी तथा उसी समय कहने लगा - 'यह भी देख लेता हूं कैसा तुम्हारा ज्ञान है|'
हे पंडित लाल जी! आप श्लोक पढ़ो तथा पंडित छज्जू जी कथा करेंगे| व्याख्या भी हर श्लोक की होगी|
सतिगुरु जी ने पंडित लाल को कहा तथा उस ने एक श्लोक पड़ा जिसे वह बहुत कठिन पाठ तथा अर्थ भाव वाला श्लोक समझता था|
'पंडित लाल जी!' छज्जू बोला-आपने श्लोक अशुद्ध पढ़ा है, वास्तविक पाठ इस तरह है-
छज्जू संस्कृत का श्लोक मौखिक पढ़ने लग पड़ा तथा श्लोक का पाठ करने के बाद उसने अर्थ करने शुरू किए| भगवान श्री कृष्ण जी उच्चारण करते हैं - 'मैं परमात्मा माया रूप भी हूं तथा निरंजन भी, जीव आत्मा अमर है| इसके बाद व्याख्या की| व्याख्या को सुन कर पंडित लाल को पसीना आ गया| वह बड़ा लज्जित हुआ कि उसने सतिगुरु नानक देव जी की गुरुता पर शक क्यों किया? जैसे सतिगुरु नानक देव जी महान थे, उसी तरह पिछले गुरु महाराज|'
पंडित लाल के अहंकार का सिर झुक गया, उसको इस तरह प्रतीत हुआ जैसे उसकी विद्या सारी छज्जू के पास चली गई थी| वह तो शुद्ध पाठ भी करने के योग्य नहीं रह गया था| उठ कर सतिगुरु जी के चरणों पर नतमस्तक हो गया| आंखों से आंसू आ गए| दिल में पश्चाताप तथा वैराग| वह विनती करने लगा -
'हे दातार! आप तो प्रत्यक्ष अवतार हो| मुझे क्षमा कीजिए| मेरी विद्या मुझे लौटा दें| मैं मुर्ख न बन जाऊं| छज्जू पंडित है कि नहीं पर आप तो अवश्य पंडितों के भी पंडित हो महां विद्वान|'
सतिगुरु महाराज जी दया के घर में आए| बख्शनहार दाता ने पंडित लाल की भूल क्षमा की| उसका अहंकार खत्म करके उसको सुखी जीवन का सही मार्ग बताया| वह गुरु घर में रह कर सेवा करने लगा तथा कहा, 'मैं आप के चरणों में ही रहूंगा|'
सतिगुरु महाराज जी ने उसकी यह विनती स्वीकार कर ली तथा उसको हुक्म किया, गुरु चरणों से ध्यान जोड़ कर प्रभु नाम का सिमरन किया करो| आप का कल्याण होगा| अनपढ़ जीवों को अक्षर ज्ञान करवाया करो| गांव में धर्मशाला कायम करो| नाम ज्ञान तथा हरि कीर्तन की मण्डली तैयार करके भजन बंदगी में लगो| गुणों का लोगों को लाभ पहुंचा|
पण्डित लाल ने सब वचन आदर सहित स्वीकार किये| छज्जू का भी जन्म मरन कट गया और भजन करने लगा|
सतिगुरु महाराज की विशाल तथा अपार महिमा के बारे भाई गुरदास जी फरमाते हैं -
भाई साहिब जी फरमाते हैं कि सतिगुरु जी भी धन्य हैं, उनकी महिमा ब्यान नहीं की जा सकती तथा सतिगुरु जी के सिक्ख भी, जिन्होंने अनेक कुर्बानियां दीं| सेवा करते तथा हुक्म मानते हुए कोई कमी बाकी न छोड़ी| सतिगुरु जी ने सिक्खों को अकाल पुरुष के आगे डण्डवत कराई अथवा नाम सिमरन में लगाया| सतिगुरु जी के दर्शन भी धन्य उपमा योग्य है क्योंकि दर्शन करने से जन्म मरन के बंधन कट जाते हैं, मन एक तरफ लग जाता है| धन्य हैं सतिगुरु जी के चरण कंवल, जिन पर जब शीश झुकाते हैं तो जंगाल लगे हुए पाप भी दूर हो जाते हैं| सतिगुरु जी का बक्शा हुआ चरणामृत (पाहुल) आजकल खंण्डे का अमृत ऐसा नशा होता है कि जीवन भर नहीं उतरता तथा सदा -
जैसी बात होती है| सतिगुरु महाराज ने गुरमुखों को ऐसा बना दिया कि वह विनम्र हो गए| अहं खत्म हो गया|
ऐसी ही कृपा सतिगुरु हरिकृष्ण जी ने आठवीं देह रूप में पंडित लाल तथा भाई छज्जू पर की|
श्री हरिकृष्ण धिआईऐ जिस डिठै सभि दुखि जाइ ||
सतिगुरु हरिकृष्ण साहिब जी दिल्ली को जा रहे थे| आप को बालक रूप में गुरुगद्दी पर विराजमान देखकर कई अज्ञानी तथा अहंकारी पंडित मजाक करते थे| उनके विचार से गुरु साहिब के पास कोई आत्मिक शक्ति नहीं थी| ऐसे पुरुष जब निकट हो कर चमत्कार देखते हैं तो सिर नीचे कर लेते हैं| पर हर एक गुरु साहिब में सतिगुरु नानक देव जी अकाल पुरुष से प्राप्त की शक्ति थी, जो चाहें कर सकते थे|
एक नगर में पड़ाव किया| जीव दर्शन करके आनंदित होते तथा जन्म मरन कटते और दुःख दूर करते थे| सतिगुरु जी की उपमा सुन कर अनेक लोग आए थे तथा दीवान सज गया तथा| उसी समय एक पंडित आया| उसका नाम लाल जी था| उसने दर्शन किए|
अहंकार से भरा मन में विचार आया-'मैं चार वेदों, गीता तथा उपनिषदों का कथा वाचक हूं मेरी बराबरी कौन कर सकता है| यदि गुरु हो तो गीता के अर्थ करें| ऐसी मन की बात उसने व्यक्त कर दी| इस समय जो उसके पास थे उनको शंका हुई|
ज्योति स्वरूप कृपा के दाता, अंतर्यामी सतिगुरु जी पंडित लाल के मन की बात जान गए| उन्होंने ऊंचे स्वर में वचन किया -'पंडित जी! आप के मन में जो शंका है निवृत कर लो सतिगुरु नानक देव जी सर्वज्ञाता हैं|
पंडित लाल कुछ शर्मिन्दा हुआ, फिर भी उस को विद्या तथा आयु का अभिमान था| उठ कर आगे हुआ तथा कहने लगा -
'गीता के अर्थ सुनाओ|'
'यदि हमने अर्थ बताए तो आप सोचेंगे शायद अर्थ याद किए हैं, इसलिए कोई आदमी बाहर से ले आओ| आप ने सतिगुरु महाराज के घर पर भी संदेह किया है, इसलिए उसको दूर करो|' सतिगुरु जी ने पंडित को फ़रमाया|
पंडित लाल बहुत अहंकार में आ गया|
वह दीवान में से उठ कर बाहर गया तथा एक अनपढ़ छज्जू झीवर को पकड़ कर ले आया| सतिगुरु जी ने छज्जू को अपने पास बिठाया तथा उसके सिर पर छड़ी रखी तथा वचन किया -
'हे पंडित! जिस को ले आए हो, ठीक है, कर्मों की गति न्यारी है यह तो पूर्व जन्म में पंडित था| चार वेद तथा गीता की कथा किया करता था| पर इस समय दाने भुनता है तथा आप लोग अज्ञानी मुर्ख समझ रहे हो| इसका ज्ञान किसी को नहीं|
यह सुन कर पंडित लाल बहुत हक्का-बक्का हुआ तथा इधर छज्जू की भी पूर्व जन्म की चेतना जाग पड़ी| उसके सामने गीता आई| गीता के सारे श्लोक आए तथा श्लोकों के भाव अर्थ! उसने हाथ जोड़ कर सतिगुरु जी के पास विनती की-'महाराज! आपकी अपार कृपा दृष्टि हुई है, जो आप ने पूर्व जन्म का ज्ञान करा दिया है| मुझे अहंकार हो गया था, इसलिए मैं जितना विद्वान तथा ज्ञानी था उतना ही फिर मुर्ख, अनपढ़ तथा अज्ञानी हुआ| यह जन्म मेरे अहंकार का दण्ड है| परमात्मा की लीला है कि संयोग बना दिया तथा आपके चरणों में हाजिर हो गया हूं| जैसे हुक्म करोगे वैसा ही होगा| आप तो त्रिलोकी के मालिक हो, ज्ञानी हो, ब्रह्म ज्ञान का पता है| कृपा करो तथा यह पुतली नाचती रहेगी|
पंडित लाल ने छज्जू से यह कुछ सुना तो उसके पैरों के नीचे की मिट्टी निकल गई, उसको प्रत्यक्ष दिखाई दिया, छज्जू पंडित की तरह तिलकधारी बैठा था तथा उसके गले में जनेऊ था| उसने आंखें मली तो हैरान हुआ पर उसकी अहंकारी आत्मा इस भेद को न जान सकी तथा उसी समय कहने लगा - 'यह भी देख लेता हूं कैसा तुम्हारा ज्ञान है|'
हे पंडित लाल जी! आप श्लोक पढ़ो तथा पंडित छज्जू जी कथा करेंगे| व्याख्या भी हर श्लोक की होगी|
सतिगुरु जी ने पंडित लाल को कहा तथा उस ने एक श्लोक पड़ा जिसे वह बहुत कठिन पाठ तथा अर्थ भाव वाला श्लोक समझता था|
'पंडित लाल जी!' छज्जू बोला-आपने श्लोक अशुद्ध पढ़ा है, वास्तविक पाठ इस तरह है-
छज्जू संस्कृत का श्लोक मौखिक पढ़ने लग पड़ा तथा श्लोक का पाठ करने के बाद उसने अर्थ करने शुरू किए| भगवान श्री कृष्ण जी उच्चारण करते हैं - 'मैं परमात्मा माया रूप भी हूं तथा निरंजन भी, जीव आत्मा अमर है| इसके बाद व्याख्या की| व्याख्या को सुन कर पंडित लाल को पसीना आ गया| वह बड़ा लज्जित हुआ कि उसने सतिगुरु नानक देव जी की गुरुता पर शक क्यों किया? जैसे सतिगुरु नानक देव जी महान थे, उसी तरह पिछले गुरु महाराज|'
पंडित लाल के अहंकार का सिर झुक गया, उसको इस तरह प्रतीत हुआ जैसे उसकी विद्या सारी छज्जू के पास चली गई थी| वह तो शुद्ध पाठ भी करने के योग्य नहीं रह गया था| उठ कर सतिगुरु जी के चरणों पर नतमस्तक हो गया| आंखों से आंसू आ गए| दिल में पश्चाताप तथा वैराग| वह विनती करने लगा -
'हे दातार! आप तो प्रत्यक्ष अवतार हो| मुझे क्षमा कीजिए| मेरी विद्या मुझे लौटा दें| मैं मुर्ख न बन जाऊं| छज्जू पंडित है कि नहीं पर आप तो अवश्य पंडितों के भी पंडित हो महां विद्वान|'
सतिगुरु महाराज जी दया के घर में आए| बख्शनहार दाता ने पंडित लाल की भूल क्षमा की| उसका अहंकार खत्म करके उसको सुखी जीवन का सही मार्ग बताया| वह गुरु घर में रह कर सेवा करने लगा तथा कहा, 'मैं आप के चरणों में ही रहूंगा|'
सतिगुरु महाराज जी ने उसकी यह विनती स्वीकार कर ली तथा उसको हुक्म किया, गुरु चरणों से ध्यान जोड़ कर प्रभु नाम का सिमरन किया करो| आप का कल्याण होगा| अनपढ़ जीवों को अक्षर ज्ञान करवाया करो| गांव में धर्मशाला कायम करो| नाम ज्ञान तथा हरि कीर्तन की मण्डली तैयार करके भजन बंदगी में लगो| गुणों का लोगों को लाभ पहुंचा|
पण्डित लाल ने सब वचन आदर सहित स्वीकार किये| छज्जू का भी जन्म मरन कट गया और भजन करने लगा|
सतिगुरु महाराज की विशाल तथा अपार महिमा के बारे भाई गुरदास जी फरमाते हैं -
धंन गुरु गुरसिख धंन आदि पुरख आदेस कराया |
सतिगुर दरशन धंन है धंन द्रिशटि गुर धिआन धराया |
धंन धंन सतिगुर शबद धंन सुरति गुर गिआन सुनाया |
चरनकवल गुर धंन धंन मसतक गुर चरणी लाया |
धंन धंन गुर उपदेश है धंन रिदा गुरमंत्र वसाया|
धंन धंन गुर चरनांम्रितो धंन मुहत जित अपिओ पीआया |
गुरमुख सुख फल अजर जराया ||१९||
भाई साहिब जी फरमाते हैं कि सतिगुरु जी भी धन्य हैं, उनकी महिमा ब्यान नहीं की जा सकती तथा सतिगुरु जी के सिक्ख भी, जिन्होंने अनेक कुर्बानियां दीं| सेवा करते तथा हुक्म मानते हुए कोई कमी बाकी न छोड़ी| सतिगुरु जी ने सिक्खों को अकाल पुरुष के आगे डण्डवत कराई अथवा नाम सिमरन में लगाया| सतिगुरु जी के दर्शन भी धन्य उपमा योग्य है क्योंकि दर्शन करने से जन्म मरन के बंधन कट जाते हैं, मन एक तरफ लग जाता है| धन्य हैं सतिगुरु जी के चरण कंवल, जिन पर जब शीश झुकाते हैं तो जंगाल लगे हुए पाप भी दूर हो जाते हैं| सतिगुरु जी का बक्शा हुआ चरणामृत (पाहुल) आजकल खंण्डे का अमृत ऐसा नशा होता है कि जीवन भर नहीं उतरता तथा सदा -
नाम खुमारी नानका चढ़ी रहै दिन रात |
जैसी बात होती है| सतिगुरु महाराज ने गुरमुखों को ऐसा बना दिया कि वह विनम्र हो गए| अहं खत्म हो गया|
ऐसी ही कृपा सतिगुरु हरिकृष्ण जी ने आठवीं देह रूप में पंडित लाल तथा भाई छज्जू पर की|