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Friday 2 August 2013

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ - पुत्र का वरदान

श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ








पुत्र का वरदान


एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थीगुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं हैआप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दोगुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं हैमाई निराश होकर बैठ गई| भाई गुरदास जी ने माई से निराशा का कारण पूछाउसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी ने उसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं हैभाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरु जी को प्रार्थना करने को कहाअगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना कि महाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैंअगर पहले नहीं लिखातो अब यहाँ ही लिख दोआप समर्थ हैं|दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जाने लगेजल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एक पुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करोगुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माई तेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चे पादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दोयहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्र होगामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिख दो ताकि मेरे मन को शांति होगुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ पर लिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गयागुरु जी ने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैंअब तुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगेमाई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपने घर आ गई|एक दिन गुरु हरिगोबिंद जी के पास माई देसा जी जो कि पट्टी की रहने वाली थीगुरु जी से आकर प्रार्थना करने लगी कि महाराज! मेरे घर कोई संतान नहीं हैआप किरपा करके मुझे पुत्र का वरदान दोगुरु जी ने अंतर्ध्यान होकर देखा और कहा कि माई तेरे भाग में पुत्र नहीं हैमाई निराश होकर बैठ गई| भाई गुरदास जी ने माई से निराशा का कारण पूछाउसने सारी बात भाई गुरदास जी को बताई कि किस तरह गुरु जी ने उसे कहा है कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं हैभाई गुरदास जी ने उसे दोबारा से गुरु जी को प्रार्थना करने को कहाअगर गुरु जी वही उत्तर देंगे तो आप उन्हें कहना कि महाराज! यहाँ वहाँ आप ही लिखने वाले हैंअगर पहले नहीं लिखातो अब यहाँ ही लिख दोआप समर्थ हैं|दूसरे दिन गुरु जी घोड़े पर सवार होकर शिकार के लिए जाने लगेजल्दी से माई ने आगे हो कर गुरु जी से कहा कि महाराज! किरपा करके मुझे एक पुत्र का वरदान बक्श कर मेरी आशा पूरी करोगुरु जी ने फिर वही उत्तर दिया कि माई तेरे भाग्य में पुत्र नहीं लिखामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे रखकर कहा कि सच्चे पादशाह! अगर आपने वहाँ नहीं लिखा तो यहाँ लिख दोयहाँ वहाँ आप ही भाग्य विधाता हो|माई की यह युक्ति की बात सुनकर गुरु जी हँस पड़े और कहा माई तेरे घर पुत्र होगामाई ने कलम दवात गुरु जी के आगे कर दी और कहा महाराज! यह वचन मेरे हाथ पर लिख दो ताकि मेरे मन को शांति होगुरु जी ने कलाम पकड़कर जैसे ही माई के दाये हाथ पर लिखने लगे तो नीचे से घोड़े के पाँव हिलने से एक की जगह सात अंक लिखा गयागुरु जी ने हँस कर कहा माई तुम एक लेने आई थी परन्तु स्वाभाविक ही सात लिखे गए हैंअब तुम्हारे घर सात पुत्र ही होंगेमाई देसो गुरु जी की उपमा करती हुई खुशी खुशी अपने घर आ गई|एक दिन झंगर नाथ गुरु हरिगोबिंद जी से कहने लगे कि आप जैसे गृहस्थियों का हमारे साथ ,जिन्होंने संसार के सभ पदार्थों का त्याग कर रखा है उनके साथ  झगड़ा करना अच्छा नहीं हैइस लिए आप हमारे स्थान गोरख मते को छोड़ कर चले जायेगुरु जी हँस कर कहने लगेआपका मान ममता में फँसा हुआ हैकिसे स्थान व पदार्थ में अपनत्व रक्खना योगियों का काम नहीं हैआप अपने आप को त्यागी कहते हुए भी मोह माया में फँसे हुए है| गुरु जी की यह बात सुनकर योगी अपनी अजमत दिखाने के लिए आकाश में उड़ कर पथरो कि वर्षा और आग कि चिंगारियां उड़ाने लगेमिट्टी कंकरो कि जोरदार आंधी चल पड़ीबड़े-बड़े भयानक रूप धारण करके मुँह से मार लो मार लो कि आवाजें करके सिखों को डराने लगेसाथ ही साथ शेर और सांप के भयंकर रूप धारण करके फुंकारे मारने लगेगुरु जी ने सिखों को चुपचाप तमाशा देखने को कहाइनकी सारी शक्ति अभी नष्ट हो जायेगी|गुरु जी ने ऐसे वचन करके जब ऊपर देखा तो सिद्ध जो जिस आकार में थावहाँ ही उसको आग जलाने लगीइस अग्नि से व्याकुल होकर सिद्ध भाग कर गोरख नाथ के पास चले गए और रख लो रख लो कि दुहाई देकर उसकी शरण पड़ गएगोरख ने कहा कि हमने आपको पहले ही समझाया था कि गुरु नानक कि गद्दी से झगड़ा करना ठीक नहींपरन्तु आपने हमारी बात नहीं मानीअब मान गँवा कर भागे आये होइस तरह गोरख ने  उनको लज्जित किया|

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.