श्री गुरु हरि कृष्ण जी - ज्योति ज्योत
श्री गुरु हरि कृष्ण जी ज्योति - ज्योत समाना
रानियों के महल से वापिस आकर कुछ समय बाद गुरु जी को बुखार हो गया जिससे सबको चिंता हो गई| बुखार के साथ-साथ दूसरे दिन ही गुरु जी को शीतला निकल आई| जब एक दो दिन इलाज करने से बीमारी का फर्क ना पड़ा तो इसे छूत की बीमारी समझकर राजा जयसिंह के बंगले से आपको यमुना नदी के किनारे तिलेखरी में तम्बू कनाते लगाकर भेज दिया|
इस प्रकार दो दिन दो राते गुरु जी को बहुत कष्ट रहा जिससे आपकी हालत खराब हो गई| सिखो ने प्रार्थना की महाराज! संगत के लिए क्या आज्ञा है किसके जिम्मे लगा चले हो| घर-घर गुरु बन बैठेगें| इसलिए संगत की बाजू किसे पकड़ाओगे| कृपा करके हमें बताए|
गुरु जी ने अपने मसंद भाई गुरुबक्श जी से एक ओर पांच पैसे मंगवाकर थाल में रखकर उनको माथा टेक कर कहा -
"बाबा बसहि जि गराम बकले|| बनि गुर संगति सकल समाले||"
यह वचन करके आपजी कुश के आसन पर चादर तान कर लेट गए और शरीर त्यागकर स्वर्ग सिधार गए|
कुल आयु व गुरु गद्दी का समय (Shri Guru Har Krishan Ji Total Age and Ascension to Heaven)
श्री गुरु हरि कृष्ण जी 5 साल 2 महीने की उम्र में गुरु गद्दी पर बैठ कर 2 साल 5 महीने गुरुत्व करके चेत्र सुदी चौदस 1721 विक्रमी को ज्योति ज्योत समां गए|
श्री गुरु हरि कृष्ण जी - साखियाँ
अनपढ़ झीवर से श्री भागवत गीता के अर्थ
करवायें
कीरतपुर से दिल्ली को जाते हुए गुरु जी अम्बाले के पास पंजोखरे गाँव में ठहरे| पंडित जो उसी गाँव के रहने वाले थे आपसे कहने लगे कि आप छोटी उम्र में ही ईश्वर अवतार और गुरु कहलाते हो|
अगर आपमें शक्ति है तो मुझे आप गीता के अर्थ करके दिखाओ| पंडित की ऐसी बात सुनकर गुरु जी ने कहा, पंडित जी! अगर अपने गीता के अर्थ सुनने हैं तो अपने गाँव में से किसी आदमी को लेकर आओ, हम उससे ही गीता के अर्थ आपको सुनवा देंगे|
गुरु जी की यह बात सुनकर पंडित जी ने एक अनपढ़ झीवर को बुलाया| गुरु जी ने उस झीवर को हाथ मुँह धुलवा कर एक आसन पर बिठा दिया|गुरु जी ने अपने हाथ की छड़ी उसके सिर पर रख कर कहा कि "पंडित जी को गीता के अर्थ करके सुनाओ|" गुरु जी की कृपा से उस झीवर ने गीता पड़कर शास्त्र अनुसार अर्थ करके पंडित को सुनाए|
गुरु जी के ऐसे कौतक को देखकर पंडित जी दंग रह गए| उनकी ऐसी प्रत्यक्ष शक्ति को देखकर पंडित ने गुरु जी को प्रणाम किया और क्षमा माँगी| अब इस स्थान पर एक सुन्दर गुरुद्वारा बना हुआ है|
ॐ सांई राम
आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साँई ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं , हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है , हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 38
बाबा की हंड़ी, नानासाहेब द्अघारा देव-मूर्ति की उपेक्षा, नैवेघ वितरण, छाँछ का प्रसाद ।
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श्री गुरु हरि कृष्ण जी - साखियाँ
चरणामृत से रोगियों के रोग
दूर करना
पंजोखरे से चलकर और स्थान-स्थान पर संगतो को दर्शन की खुशी देते हुए गुरु हरि कृष्ण जी दिल्ली पहुँच गए| गुरु जी के रहने का प्रबंध राजा जयसिंह ने अपने बंगले में कराया| उसने गुरु जी के दिल्ली पहुँचने की खबर बादशाह को भी दे दी|
उस समय दिल्ली शहर में हैजे की बीमारी से बहुत लोग बीमार थे| गुरु जी के आने की खबर सुनकर बहुत से रोगी आपके पास आने लगे| आप जिन्हें भी अपने चरणों का चरणामृत देते वह जल्द ही स्वस्थ हो जाता| इस प्रकार आपकी उपमा को सुनकर बहुत रोगी आपके पास आने लगे| आपने एक कुंड बनवाया जिसमे अमृत समय के स्मरण से उठकर अपने चरणों की छोह का पानी भर देते| इस कुंड में आए हुए रोगियों को सेवादार आठों पहर चरणामृत देते| जिससे बहुत से रोगी स्वस्थ हो गए| वह गुरु जी की महिमा गाते और भेंट अर्पण करते|
इस वार्ता को सुनकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने अरदास में यह शब्द रखे -
"श्री हरि कृष्ण जी धिआईअै जिस डिठै सभ दुख जाइ||"
सांई राम
बादशाह भी तु है
फ़कीर भी तु है
साधू भी तु है
और पीर भी तु है
कोई मिटा न सके जिसे
हाथो की वो लकीर है तू
तू समाया है सब में साईं
सब की तकदीर है तू...
नन्द के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की
हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की
*** जय श्री कृष्ण *** जय साईं राम ***
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श्री कृष्ण जन्माष्टमी कि हार्दिक शुभ कामनाएं
श्री गुरु हरि कृष्ण जी - साखियाँ
बादशाह औरंगजेब के शहिजादे का गुरु जी से प्रभावित होना
राजा जयसिंह ने जब बादशाह को यह बताया कि गुरु जी ने मेने बंगले में निवास कर लिया है तो दूसरे ही दिन उसने अपने शहिजादे को गुरु जी के पास भेज दिया| शहिजादे ने बादशाह की ओर से गुरु जी को भेंट अर्पण की और माथा टेका| उसने गुरु जी से यह प्रार्थना की कि बादशाह आपके दर्शन करना चाहते हैं| पर गुरु जी आगे से कहने लगे कि हमारा प्रण है कि हम किसी बादशाह के माथे नहीं लगेंगे|
शहिजादे गुरु जी से बातचीत करके बहुत प्रभावित हुआ| उसने यह सारी बात बादशाह को बताई कि गुरु जी उम्र में चाहे बच्चे हैं परन्तु उनकी सूझ-बूझ वृद्धों वाली है| इस प्रकार शहिजादा गुरु हरि कृष्ण जी से प्रभावित हुए बिना ना रह सका|
श्री गुरु हरि कृष्ण जी - साखियाँ
जयसिंह की रानी की परख करनी
राजा जयसिंह की रानी ने जब यह सुना कि बाल गुरु जी शक्तिवान हैं तो उसने आपको भोजन खिलाने के लिए महलों में बुलाया| रानी गुरु जी की शक्ति को परखना चाहती थी| इस मकसद से रानी ने सेविकाओं वाले वस्त्र पहन लिए और उनके बीच में जाकर बैठ गई| अन्तर्यामी गुरु जी जब अपनी माता सहित राजा के महल में गए तो सभी सेविकाओं ने आपको माथा टेका और बैठ गई|
गुरूजी अपने हाथ की छड़ी सबके सिर ऊपर रखते गए और साथ-साथ यह भी कहते रहे कि यह भी रानी नहीं, यह भी रानी नहीं| परन्तु जब असली रानी की बारी आई तो गुरु जी ने उसके सिर पर भी छड़ी रखी और कहने लगे यह ही रानी है| यह सुनकर रानी फूले नहीं समाई और बड़े प्यार से उन्हें गोदी में बिठा लिया| साथ ही साथ श्रदा के साथ उनके चरण पकडे और सिर झुकाया| राजा-रानी ने बड़े प्रेम से उन्हें भोजन खिलाया व जवाहरात की थाली भी उनको भेंट की|
श्री गुरु हरि कृष्ण जी गुरु गद्दी मिलना
कीरत पुर में गुरु हरि राय जी के दो समय दीवान लगते थे| हजारों श्रद्धालु वहाँ उनके दर्शन के लिए आते और अपनी मनोकामनाएँ पूरी करते| एक दिन गुरु हरि राय जी ने अपना अन्तिम समय नजदीक पाया और देश परदेश के सारे मसंदो को हुक्मनामे भेज दिये कि अपने संगत के मुखियों को साथ लेकर शीघ्र ही किरत पुर पहुँच जाओ| इस तरह जब सब सिख सेवक और सोढ़ी, बेदी, भल्ले, त्रिहण, गुरु, अंश और सन्त-महन्त सभी वहाँ पहुँचे| आपजी ने दीवान लगाया और सब को बताया कि हमारा अन्तिम समय नजदीक आ रहा है और हमने गुरु गद्दी का तिलक अपने छोटे सपुत्र श्री हरि कृष्ण जी को देने का निर्णय किया है|
इसके उपरांत गुरु जी ने श्री हरि कृष्ण जी को सामने बिठाकर उनकी तीन परिकर्मा की और पांच पैसे और नारियल आगे रखकर उनको नमस्कार की| उन्होंने साथ-साथ यह वचन भी किया कि आज से हमने इनको गुरु गद्दी दे दी है| आपने इनको हमारा ही रूप समझना है और इनकी आज्ञा में रहना है| गुरु जी का यह हुक्म सुनकर सारी संगत ने यह वचन सहर्ष स्वीकार किया और भेंट अर्पण की| इस प्रकार संगत ने श्री हरि कृष्ण जी को गुरु स्वीकार कर लिया|
यह सब गुरु हरि कृष्ण जी के बड़े भाई श्री राम राय जी बर्दाश्त ना कर सके| उन्होंने क्रोध में आकर बाहर मसंदो को पत्र लिखे कि गुरु की कार भेंट इक्कठी करके सब मुझे भेजो नहितो पछताना पड़ेगा| उसने इसके साथ-साथ दिल्ली जाकर औरंगजेब को कहा कि मेरे साथ बहुत अन्याय हुआ है| गुरु गद्दी पर बैठने का हक तो मेरा था परन्तु मुझे छोडकर मेरे छोटे भाई को गुरु गद्दी पर बिठाया गया| जिसकी उम्र केवल पांच वर्ष की है| आप उसको दिल्ली में बुलाओ और कहो कि गुरु बनकर सिखो से कार भेंटा ना ले और अपने आप को गुरु ना कहलाए| श्री राम राय के बहुत कुछ कहने के कारण बादशाह ने मजबूर होकर राजा जयसिंह को कहा कि अपना विशेष आदमी भेजकर गुरु जी को दिल्ली बुलाओ| जयसिंह ने ऐसा ही किया| राजा जयसिंह कि चिट्टी पड़कर और मंत्री की जुबानी सुनकर गुरु हरि कृष्ण जी ने माता और बुद्धिमान सिक्खों से विचार किया और दिल्ली जाने की तैयारी कर ली|
श्री गुरु हरि कृष्ण जी - जीवन - परिचय
श्री गुरु हरि कृष्ण जी जीवन - परिचय
प्रकाश उत्सव (जन्म की तारीख): किरतपुर में 7 जुलाई, 1656
Parkash Ustav (Birth date): July 7, 1656 at Kiratpur
पिता: गुरु हर राय जी
Father: Guru HarRai Ji
माँ: माता कृष्ण कौर
Mother: Mata Krishen Kaur
सहोदर: राम राय (भाई)
Sibling: Ram Rai (brother)
ज्योति ज्योत (स्वर्ग करने के उदगम): 30 मार्च 1664
Joti Jyot (ascension to heaven): March 30, 1664
मंगल अष्ट गुरु जी ||
हरि किषण भयो अषटम बलबीरा ||
जिन पहुँचे देहली तजिओ सरीरा ||
बाल रूप धरिओ स्वांग रचाइि ||
तब सहिजे तन को छोड सिधाइि ||
इिउ मुगलन सीस परी बहु छारा ||
वै खुद पति सों पहुचे दरबारा ||
(पउड़ी २३ || वार ४१ || भाई गुरदास दूजा ||)
श्री हरि कृष्ण जी का जन्म श्री गुरु हरि राय जी के घर माता कृष्ण कौर जी की कोख से सावण वदी 10 बुधवार संवत 1713 विक्रमी को कीरतपुर नगर में हुआ| आपजी के बड़े भाई का नाम श्री राम राय जी था|
श्री गुरु हरिराय जी - ज्योति ज्योत समाना
ज्योति ज्योत समाना
दूसरे दिन कार्तिक वदी ९ संवत १७१८ विक्रमी को गुरु जी ने अपने आसन पर चौकड़ी मार ली| अपने श्रद्धानंद स्वरूप में वृति जोड़कर शरीर को त्याग दिया व सच क्खंड जा विराजे| आप जी के पांच तत्व के शरीर को चन्दन कि चिता में तैयार करके गुरु हरिगोबिंद जी के द्वारा निर्मित पतालपुरी के स्थान के पास अग्निभेंट कर दिया गया|
ॐ सांई राम
आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साँई ग्रुप की ओर से साईं-वार की हार्दिक शुभ कामनाएं, हम प्रत्येक साईं-वार के दिन आप के समक्ष बाबा जी की जीवनी पर आधारित श्री साईं सच्चित्र का एक अध्याय प्रस्तुत करने के लिए श्री साईं जी से अनुमति चाहते है, हमें आशा है की हमारा यह कदम घर घर तक श्री साईं सच्चित्र का सन्देश पंहुचा कर हमें सुख और शान्ति का अनुभव करवाएगा, किसी भी प्रकार की त्रुटी के लिए हम सर्वप्रथम श्री साईं चरणों में क्षमा याचना करते है...
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 37
चावड़ी का समारोह
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इस अध्याय में हम कुछ थोड़ी सी वेदान्तिक विषयों पर प्रारम्भिक दृष्टि से समालोचना कर चावड़ी के भव्य समारोह का वर्णन करेंगे ।
प्रारम्भ
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श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ
भाई भगतु व भाई फेरु की वार्ता
भाई भगतु गुरु घर का सेवक था| जब गुरु हरि राय जी गुरु गद्दी पर बैठे तो कुछ समय बाद भगतु जी ने प्रार्थना की कि महाराज! सेवा के बिना मनुष्य की आयु बेकार है इसलिए मुझे कोई सेवा दो| गुरु जी हँस कर कहने लगे कि अब आप बहुत वृद्ध हो गए हो| अपने मनोरंजन के लिए कोई चरखा लाओ|
भगतु कहने लगे महाराज! जैसे आपकी इच्छा है वैसे सेवा बक्शो| परन्तु मुझे सेवा जरूर दो| गुरु जी प्रसन्न होकर कहने लगे तुम गुरु के लंगर के लिए खेती कराओ| गुरु की आज्ञा आते ही भगतु जी ने कर्मचारी और बैल तैयार करवाकर धरती जो जोता और बीज डाल दिया और संभाल करनी शुरू कर दी|
एक दिन खेत में काम करने वाले वालों ने कहा,भाई जी! रोटी हमें घी के साथ अच्छी तरह से दो| हम और भी अधिक उत्साह से काम करेंगे| भाई जी ने जब उनकी बात सुनी तो इधर उधर देखने लगे| उधार से एक फेरी वाला जा रहा था जिसके पास नमक,मिर्च,गुड़,घी इत्यादि था| उसको बुलाकर भाई जी कहने लगे इनको रोटी के साथ जितना घी चाहिए उतना दे दो| इस घी का मूल्य हमसे कल ले लेना| तब फेरी वाले ने काम करने वालो को अपनी कुपी में से एक एक पली घी दे दिया|
फेरी वाले ने घर जाकर घी वाली कुपी जिसमे थोड़ा सा घी बचा था, खूंटी पर टांग दिया| सुबह उठकर जब कुप्पी को तोलकर देखने लगा कि श्रमिकों को कितना घी खिलाया है| जिसके पैसे भगतु से लेने हैं| उसने जैसे ही कुप्पी को देखा व घी से लबा लब भरी हुई थी| यह कौतक देखकर फेरी वाला भगतु जी के पास गया और उनके पैरों में माथा टेका और कहने लगा कि मुझे अपना सिख बनाओ| भाई भगतु ने जब उसकी श्रद्धा देखी तो व उसे गुरु दरबार पर ले गया| भाई भगतु को देखकर गुरु जी कहने लगे परोपकारी भगतु किसको साथ लायेहो? भाई भगतु ने सारी बात बताई और यह भी कहा कि यह आपका सिख बनना चाहता है|
गुरु जी फेरी वाले से पूछने लगे कि आपका क्या नाम है और क्या करते हो| उसने कहा महाराज! मेरा नाम संगत है मैं फेरी लगाने का काम करता हूँ| गुरु जी ने वचन किया कि तू फेरी करता हुआ हमारी शरण में आया है इसलिए आज से तेरा नाम फेरु है| गुरु जी ने उसको अपना चरणामृत देकर सिख बना लिया और वचन किया फेरी का काम छोडकर सतिनाम का सिमरन किया और देग चलाया करो तुम्हें कभी कमी नहीं आएगी| इस प्रकार फेरु जी ने गुरु जी का वचन मानकर अपना ध्यान सतिनाम की याद में लगा दिया और तन मन से देग की कार चलाने लग गए|
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ
भगत भगवान की वार्ता
एक भगवान गिर सन्यासी साधु ने गुरु की बहुत महिमा सुनी कि आप ईश्वर अवतार हैं| मन में यह धारणा लेकर गुरु दर्शन के लिए आ गए कि अगर गुरु सच्चा है तो यह मुझे चतुर्भुज रूप में दर्शन देंगे| मैं तब ही इन्हें सच्चा ईश्वर का अवतार मानूंगा|
मन में यह भाव लिए जब भगवान गिर गुरु के दरबार में पहुँचे तो उनकी हैरानी की सीमा ना रही| वह अपनी सुध-बुध खो बैठे| वह पत्थर की मूर्ति बनकर कुछ समय वही खड़े रहे| उन्होंने देखा कि संगत बैठी है कीर्तन भी चल रहा है| एक चतुर्भुज स्याम मूर्ति चक्कर सिंघासन के ऊपर सुशोभित है| यह सब देखकर अपनी चेतना को कायम करते हुआ उसने गुरु के चरणों में डन्डवत होकर माथा टेका जब उठकर देखा गुरु जी अपने गुरु स्वरुप में दर्शन दे रहे हैं| भगत भगवान यह कौतक देखकर बहुत प्रभावित हुए और कहने लगे कि महाराज! मुझे अपना सिख बनाकर उपदेश दो|
गुरु जी ने उसकी श्रद्धा भक्ति देखकर चरणामृत दिया और सतिनाम का उपदेश दिया और वचन किया - "भक्त भगवान दर सहि परवान" यह उपदेश और वरदान लेकर भगत भगवान ने सिखी का खूब प्रचार किया|
ॐ साँई राम जी
आप सभी को वर्ल्ड ऑफ साँई ग्रुप की ओर से रक्षा बन्धन की हार्दिक शुभ कामनायें
रक्षाबंधन : भाई-बहनों का त्योहार
हिन्दु कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पुर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं।
रक्षा बंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में है। हिंदू पुराण कथाओं के अनुसार, महाभारत में, (जो कि एक महान भारतीय महाकाव्य है) पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून (श्री कृष्ण ने भूल से खुद को जख्मी कर दिया था) को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। इस प्रकार उन दोनो के बीच भाई और बहन का बंधन विकसित हुआ था, तथा श्री कृष्ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था।
वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षाबंधन से सम्बन्धित इस प्रकार की अनेकों कथाएं हैं।
रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि : रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलाकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं।
इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।
इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से सभी बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अतः इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिन, इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए।
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व : भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए।
रक्षाबंधन की कथा : रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए। शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी।
भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया। आधुनिक समय में राजपूत रानी कर्मावती की कहानी काफी प्रचलित है। राजपूत रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को शत्रु से बचाया।
2013 में रक्षाबंधन का त्योहार मंगलवार के दिन 20 अगस्त को है।
आप सभी के लिये मंगल कामनाओं एंव शुभ घड़ी की शुरूआत की दुआओं के साथ इस पावन पर्व की एक बार फिर से हार्दिक बधाईं..
ॐ साँई राम
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ
एक माई की श्रद्धा पूरी करनी
एक बजुर्ग माई जो कि निर्धन थी| उसके मन में यह भाव था कि गुरु जी उसके हाथ का तैयार किया हुआ भोजन खाये| जिस दिन गुरु जी उसके हाथ का बना भोजन खायेगें वह किसमत वाली हो जायेगी| उसने मेहनत मजदूरी करके कुछ पैसे जोड़ लिए और गुरु जी के भोजन के लिए रसद भी तैयार करके रख ली|
एक दिन उसने स्नान करके रसोई का लेप किया और गुरु जी के लिए भोजन तैयार करने लगी| मन में उसके श्रद्धा भाव था कि गुरु जी मेरा भोजन अवश्य ग्रहण करेगें| उसने दो रोटियाँ तैयार करके उसके ऊपर घी, चीनी डालकर साफ कपड़े में लपेट लिया और गुरु दरबार की और चल पड़ी| लेकिन मन में बार बार यही भाव थे कि वह किस तरह कपड़े में लपेटा हुआ भोजन गुरु जी को देगी|
उधर गुरु जी ने माई की प्रार्थना सुन ली और उसकी श्रधा को देखकर दीवान से उठ गए| उन्होंने जल्दी जल्दी घोड़ा तैयार करवाया और शिकार के बाहने उधर ही चाल पड़े जिस तरफ से गरीब माई गुरु-गुरु का जाप करते हुए आ रही थी| जब माई ने देखा कि गुरु जी कुछ सिखो के साथ घोड़े पर सवार होकर इधर ही आ रहे हैं तो वह एक तरफ खड़ी हो गई|
माई को एक तरफ खड़ी देखकर गुरु जी ने घोड़ा उसके पास जाकर ही खड़ा कर दिया और कहने लगे - "माई हमे बहुत भूख लगी है हमें रोटी दो|" यह वचन सुनते ही माई ने कपड़े में लपेटी हुई रोटी दोनों हाथों से गुरु जी के आगे कर दी| गुरु जी ने कपड़े में से रोटी निकाली और हाथ के ऊपर रखकर खाने लगे| साथ-साथ गुरु जी ने कहना शुरू किया कि यह भोजन बहुत स्वाद है, हमें बहुत आनन्द आया है| गरीब माई की आँखों से आंसू बहने लगे|
गुरु जी ने भोजन किया और कपड़ा वापिस माई को दे दिया| गुरु जी ने वचन किया कि माई तू निहाल हो गई है| तब माई ने गुरु के चरणों पर माथा टेका और उनकी महिमा गाती हुई घर की और चल दी|
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ
शाहजहाँ के बेटे (दारा शिकोह) को स्वस्थ करना
शाहजहाँ के बेटे का नाम दारा शिकोह था| शाहजहाँ अपने बड़े पुत्र को ताज़ देना चाहता था| परन्तु इसका तीसरा लड़का औरंगजेब अपने भाई से इर्ष्या करता था जिसके कारण औरंगजेब ने रसोइए की ओर से शेर की मूंछ का बल अथवा कोई जहरीली चीज़ खिला दी जिससे दारा शिकोह बीमार हो गया| बादशाह ने उसका बहुत इलाज़ करवाया परन्तु दारा शिकोह ठीक ना हुआ|
शाहजहाँ ने देश के सभी हकीमो को बुलाकर पूछा तब उन्होंने उसकी बीमारी को देखकर बताया कि एक लौंग जिसका वजन एक माशा हो ओर एक हरढ़ जुसका वज़न १४ सिरसाही हो रगड़कर कर शाहिजादे को दिए जाए तब शेर का बल अथवा कोई ऐसी जहरीली चीज़ बाहर निकाल आएगी और शाहिजादा स्वस्थ हो जाएगा| राजे ने वैसा ही किया जैसे हकीमो ने बोला था| बादशाह ने सारे देश में अपने आदमी भेजे परन्तु यह चीजे कहीं ना मिली| बादशाह चिंता में पड़ गए| तब वजीर खाँ ने बताया बादशाह! मुझे किसी सिख से पता चला है यह दोनों चीजे इस मात्र की गुरु नानक जी की गद्दी पर विराजमान गुरु हरि राय जी के पास हैं अगर आप चाहे तो उनसे मंगवा को|
बादशाह ने अपने दो अहिलकर गुरु जी के पास चिट्ठी देकर भेजे और प्रार्थना की कि यह दोनों चीजे दे दो आपकी बड़ी कृपा होगी| यह चिट्ठी पढ़कर गुरु जी ने अपने तोशेखाने में से हरढ़ और लौंग मँगवाकर उन्हें दे दी| जब यह दोनों चीजे रगड़कर हकीमो ने दारा शिकोह को दी तो वह थोड़े दिनों में ही स्वस्थ हो गया| बादशाह और उसके दरबारियों ने गुरु घर की बहुत महिमा की और उनकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा|
श्री गुरु हरिराय जी – साखियाँ
भाई जीवन को वरदान देना
करतारपुर में एक ब्राहमण का इकलौता लड़का मर गया| लड़के के माता-पिता गुरु हरि राय जी के पास आ गए और कहने लगे कि हमारे पुत्र को जीवित कर दो| नहीं तो हम भी आपके द्वार पर प्राण त्याग देंगे| तब गुरु जी ने कहा अगर कोई इस लड़के कि जगह प्राण देगा तो यह जीवित हो जाएगा| गुरु जी का यह वचन सुनकर जब उसके माँ-बाप भी प्राण देने को तैयार ना हुए तो उनकी कुरलाहट पर तरस करके भाई जीवन से सोचा एक दिन तो मरना ही है तो फिर क्यों ना गुरु के हुकम के अनुसार ही प्राण त्यागे जाए और जीवन सफल हो जाए| यह सोच कर भाई जीवन ने डेरे जाकर कपड़ा बिछाया और ऊपर लेटकर अपने प्राण त्याग दिए| इधर जैसे ही भाई जीवन ने प्राण त्यागे उधर ब्राहमण का पुत्र जीवित हो गया|
भाई का ऐसा बलिदान देखकर सबने उन्हें धन्य कहा| गुरु जी ने भाई जीवन का संस्कार भाई भगतु की शमशान भूमि के पास ही कराया और वचन दिया कि जीवन का निवास गुरु के चरणों में होगा| जब गुरु जी को यह पता लगा कि भाई जीवन की स्त्री गर्भवती है तो अपने वचन दिया कि इसको लड़का होगा जिसका वंश बहुत बड़ेगा| इस तरह गुरु जी ने भाई जीवन की प्रशंसा की और उसे वरदान देकर सबको धैर्य दिया| इस प्रकार भाई जीवन ने गुरु का हुकम मानकर अपना जीवन सफल किया और अपने वंश के लिए वरदान प्राप्त किया|
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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.