श्री गुरु हरिगोबिन्द जी – साखियाँ
श्री गुरु हरिगोबिन्द जी - ज्योति ज्योत समाना
बाबक रबाबी और मलिक जाती के परलोक सिधार जाने के कुछ समय बाद गुरु हरि गोबिंद जी ने अपने शरीर त्यागने का समय नजदीक अनुभव करके श्री हरि राये जी को गुरुगद्दी का विचार कर लिया|इस मकसद से आपने दूर - नजदीक सभी सिखों को करतारपुर पहुँचने के लिए पत्र लिखे|
गुरु हरिगोबिंद जी ने अपना अंतिम समय नजदीक पाकर श्री हरि राय जी को गद्दी देने का विचार किया| वे श्री हरि राय जी से कहने लगे कि तुम गुरु घर की रीति के अनुसार पिछली रात जागकर शौच स्नान करके आत्मज्ञान को धारण करके भक्ति मार्ग को ग्रहण करना| शोक को त्याग देना व धैर्य रखना| सिखों को उपदेश देना और उनका जीवन सफल करना| बाबा जी के ऐसे वचन सुनकर श्री हरि राय जी कहने लगे महाराज! देश के तुर्क हमारे शत्रु है, उनके पास हकूमत है, उनके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? गुरु जी कहने लगे कि तुम चिंता ना करो, जो तुम्हारे ऊपर चढ़कर आएगा, वह कोहरे के बादल कि तरह उड़ जायेगा| तुम्हे कोई भी हानि नहीं पहुँचायेगा| यह बात सुनकर श्री हरि राय जी ने गुरु जी के चरणों में माथा टेका और शांति प्राप्त की|
गुरु जी ने अपने अन्तिम समय के लिए एक कमरा तैयार कराया और उसका नाम पातालपुरी रखा| इसके पश्चात अपनी दोनों महिलाओं माता मरवाही और माता नानकी जी और तीनों पुत्रों श्री सूरज मल जी, श्री अणी राय जी और श्री तेग बहादर जी और पोत्र श्री हरि राय जी को मसंदो व सिक्ख सेवकों को अपने पास बिठाकर वचन किया कि अब हमारी स्वर्ग सिधारने की तैयारी है| यह कोई नई बात नहीं है| संसार का प्रवाह नदी की तरह चलता रहता है| यहाँ सब कुछ नाशवान और अस्थिर है| प्रभु का हुकम मानना और उसपर चलना चहिए| यही जरूरी है|
सिक्खों और परिवार को आज्ञा:
इसके पश्चात गुरु जी ने भाई भाने को आज्ञा की कि तुमने अपने पुत्र को श्री हरि राय जी की सेवा में रहने देना| जोध राय को कहा कि तुम अपने घर कांगड़ चले जाना और सतिनाम का स्मरण करके सुख भोगना और गुरु का लंगर जारी रखना|
बीबी वीरो को धैर्य दिया और कहा कि तेरी संतान बड़ा यश पायेगी| तुम्हें सारे सुखो की प्राप्ति होगी|
बिधीचंद के पुत्र लालचंद को कहा, तुमने अपने घर सुर सिंह चले जाना| और फिर जब गुरु घर को जरुरत होगी, तन मन के साथ हाजिर होकर सेवा करनी|
इस तरह बाबा सुन्दर और परमानन्द को भी अपने घर गोइंदवाल भेज दिया| फिर माता नानकी की तरफ देखकर कहा कि तुम अपने पुत्र श्री तेग बहादर को लेकर अपने मायके बकाले चले जाओ|
श्री सूरज मल जी को कहा कि तुम पानी इच्छा के अनुसार श्री हरि राय जी के पास अथवा यहाँ तुम्हें सुख प्रतीत हो निवास कर लेना| तेरा वंश बहुत बड़ेगा| श्री अणी राय जी को आपने कुछ नहीं कहा क्योंकि उनका ध्यान ब्रह्म ज्ञान में टिका हुआ था|
संगत के प्रति वचन:
संगत और मसंदो आप ने संबोधित करके वचन किया कि आज से श्री हरि राय जी को हमारा ही स्वरूप जानना और मानना| जो इनके विरुद्ध चलेगा,उसका लोक व परलोक बिगड़ेगा| वह यहाँ वहाँ दुःख पायेगा| वाणी पड़नी, सतिनाम का स्मरण करना और शोक किसी ने नहीं करना होगा| हम अपने निज धाम स्वर्ग को जा रहे हैं|
इस तरह सब को धैर्य और आदेश देकर गुरु जी ने पाताल पुरी नाम के कमरे में घी का दीया जलाकर कुश और नरम बिछौना करवाया और सारी संगत को धैर्य व सांत्वना देकर भाई जोध राय और भाई भाने को कहा तुम इस कमरे का सात दिन पहरा रखना और सातवें दिन इसका दरवाजा श्री हरि राय जी से खुलवाना|
पहले कोई निकट आकर विघ्न ना डाले| यह वचन करके आपजी ने कमरे के अंदर जाकर दरवाजा बन्द कर लिया और कुश के आसन पर समाधि लगाकर बैठ गए| संगत बाहर बैठकर अखंड कीर्तन करने लगी|
सातवें दिन सवा पहर दिन चढ़े श्री हरि राय जी ने अरदास करके दरवाजा खोला और गुरु जी के मृत शरीर को स्नान कराकर और नवीन वस्त्र पहना कर एक सुन्दर विमान में रखकर चन्दन व घी चिता के पास ले गए और चिता में रखकर संस्कार कर दिया| इसके पश्चात सबने सतलुज नदी में स्नान किया और डेरे आकर कड़ाह प्रसाद की देघ तैयार करके बाँटी|
इस तरह श्री गुरु हरि गोबिंद जी चेत्र सुधि पंचमी संवत 1701 विक्रमी को ज्योति ज्योत समाए|