ॐ साँई राम जी
गौतम मुनि और अहल्या की साखी
गौतम ऋषि सालगराम शिवलिंग के पुजारी थे| उन्होंने कई वर्ष परमात्मा की कठिन तपस्या की| भोले भंडारी शिव जी महाराज ने इन पर कृपालु होकर वर दिया-हे गौतम! जो मांगोगे वही मिलेगा| तेरी हर इच्छा पूर्ण होगी| हम तुम पर अति प्रसन्न हैं|
यह वर लेकर गौतम ऋषि बड़े प्रसन्न हुए और दिन-रात प्रभु के सिमरन में व्यतीत करने लगे| संयोग से गौतम ऋषि को एक दिन पता चला कि मुदगल की कन्या जिसका नाम अहल्या था, उसके विवाह हेतो स्वयंवर रचा जा रहा है| अहल्या इतनी सुन्दर थी कि हरेक उससे शादी करने का इच्छावान था| इन्द्र जैसे स्वर्ग के राजा महान शक्तियों वाले देवते भी तैयार थे| देवताओं और ऋषियों की इच्छा, उनके क्रोध को देखकर मुदगल ने ब्रह्मा जी से विनती की - हे प्रभु! मेरी कन्या के शुभ कार्य के बदले युद्ध होना ठीक नहीं| आप हस्तक्षेप करके देवताओं को समझाएं| वह युद्ध न करें तथा कोई और उपाय सोचकर कृपा करें|
ब्रह्मा जी ने विनती स्वीकार कर ली| वह स्वयं ही सालस बन बैठे और उन्होंने सारे देवताओं व ऋषियों-मुनियों, जो विवाह करवाने के चाहवान थे, को इकट्ठा करके कहा-देखो! मुदगल की पुत्री सुन्दर है लेकिन उसको वर एक चाहिए| आप सब चाहवान हैं| यह भूल है| यदि स्वयंवर मर्यादा पर चलना है तो आप में से जो चौबीस मिनटों में धरती का चक्कर लगाकर प्रथम आए, उससे अहल्या का विवाह कर दिया जाएगा|
ब्रह्मा जी से ऐसी शर्त सुनकर सारे देवता पहले तो बड़े हैरान हुए लेकिन फिर सबने अपने-अपने तपोबल पर मां करके यह शर्त परवान कर ली| देवराज इन्द्र तथा ब्रह्मा जी के पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन और सनत को बड़ा अभिमान था| उन्होंने मन ही मन में सोचा की वह बाजी जीत जाएंगे| त्रिलोकी की परिक्रमा करनी उनके लिए कठिन नहीं|
मुदगल की पुत्री अहल्या की सुन्दरता और शोभा सुनकर गौतम ने उससे विवाह रचाने की इच्छा रखी और अपने सालगराम से प्रार्थना की| सालगराम ने गौतम ऋषि को दर्शन दिए और कहा-हे गौतम! यदि आपकी ऐसी इच्छा है तो वह अवश्य पूर्ण होगी| आप मेरी परिक्रमा कर लें, बस त्रिलोकी की परिक्रमा हो जाएगी| आप सबसे पहले ब्रह्मा जी को दिखाई देंगे|
विवाह के लिए शर्त की दौड़ शुरू हो गई| ऋषि गौतम ने सालगराम की परिक्रमा कर ली| उधर देवराज इन्द्र तथा अन्य देवता जब परिक्रमा करने लगे तो वह बहुत तेज चले| हवा से भी अधिक रफ्तार पर दौड़ते गए लेकिन जिस पड़ाव पर जाते, वहां गौतम ऋषि होते| वे बड़े हैरान हुए तथा गुस्से में आकर मारने के लिए भागे मगर वह तो माया रूपी हो चुके थे| इसलिए कोई ताकत उनको नष्ट नहीं कर सकती थी|
भगवान सालगराम की महान शक्ति से गौतम ब्रह्मा जी के पास पहले आ गए| ब्रह्मा जी अत्यंत प्रसन्न हुए| फिर ब्रह्मा जी ने अहल्या तथा गौतम को परिणय सूत्र में बांधने का फैसला किया| यह सुनकर देवता बड़े निराश और नाराज हुए, उन्होंने बड़ी ईर्ष्या की| जबरदस्ती छीनने का प्रयास किया, पर ब्रह्मा जी की शक्ति के आगे उनकी एक न चली| वह वापिस अपने-अपने स्थानों पर चले गए| गौतम अहल्या को लेकर अपने आश्रम में आ गया| गौतम का आश्रम गंगा के किनारे था| वह तपस्या करने लगा, उसकी महिमा दूर-दूर तक फैल गई|
इन्द्र देवता नाराज हो गए, देश में अकाल पड़ गया, सारी धरती दहक उठी| साधू, संत, ब्राह्मण तथा अन्य सब लोग बहुत दुखी हुए| उनके दुःख को देख कर गौतम ऋषि का दिल भी बड़ा दुखी हुआ| उसने सालगराम की पूजा की और प्रार्थना की कि हे भगवान! मुझे शक्ति दीजिए ताकि मैं भूखे लोगों को भोजन खिलाकर उनकी भूख को मिटा सकूं| भगवान ने गौतम की प्रार्थना स्वीकार कर ली और गौतम ने लंगर लगा दिया, भगवान की ऐसी कृपा हुई कि किसी चीज़ की कोई कमी न रही| हर किसी ने पेट भर कर और अपने मनपसंद का खाना खाया| गौतम का यश तीनों लोकों में फैल गया| उसके यश को देखकर इन्द्र और भी तड़प उठा, वह पहले ही अहल्या को लेकर क्रोधित था| इन्द्र ने माया शक्ति से काम लेना चाहा| इस माया शक्ति से उसने एक गाय बनाई, गाय की रचना इस प्रकार की कि जब गौतम उसे हाथ लगाएगा तो वह मर जाएगी|
वह गाय गौतम के आश्रम में पहुंची| गौतम आश्रम से बाहर निकला तो गाय को काटने के लिए उसने जब हाथ लगाया तो वह धरती पर गिर कर मर गई|
इन्द्र की चाल के अनुसार ब्राह्मणों ने शोर मचा दिया कि ऋषि गौतम के हाथ से गाय की हत्या हो गई, उसको अब प्रायश्चित करना चाहिए| पर सालगराम भगवान की कृपा से गौतम ऋषि को पता चल गया कि यह इन्द्र का माया जाल था| गौतम ने उन सब झूठे ब्राह्मणों को श्राप दिया और कहा-"जाओ! तुम्हारी भूख कभी नहीं मिट सकती, यह भूख जन्म-जन्म ऐसे ही रहेगी|" यह श्राप लेकर ब्राह्मण बहुत दुखी हुए और गौतम ने भोजन बंद कर दिया|
इस प्रकार दिन-प्रतिदिन गौतम का यश बढ़ता गया और वह अहल्या के साथ जीवन व्यतीत करता रहा| उसके घर एक कन्या ने जन्म लिया| वह कन्या भी बहुत रूपवती थी| वह आश्रम में खेल कूद कर पलने बढ़ने लगी|
इन्द्र ने अपना हठ न छोड़ा| वह अहल्या के पीछे लगा रहा| वह प्रेम लीला करने के लिए व्याकुल था| वासना की ज्वाला उसे दुखी करती थी| उसकी व्याकुलता बाबत भाई गुरदास जी ने वचन किया है :-
गोतम नारि अहलिआ तिस नो देखि इंद्र लोभाणा |
पर घर जाइ सराप लै होई सहस भग पछोताणा |
सुंञा होआ इन्द्र लोक लुकिआ सरवर मन शरमाणा |
सहस भगहु लोइण सहस लैदोई इन्द्र पुरी सिधाणा |
सती सतहुं टलि सिला होइ नदी किनारे बाझ पराणा |
रघुपति चरन छुहंदिआं चली स्वर्ग पुर सणे बिबाणा |
भगत वछ्ल भलीआई अहुं पतित उधारण पाप कमाणा |
गुण नो गुण सभको करै अउगुण कीते गुण तिस जाणा |
अवगति गति किआ आखि वखाणा |१८|
भाई गुरदास जी अहल्या की कथा बताते हुए कहते हैं कि अहल्या का सौंदर्य देख कर इन्द्र लोभ में आ गया था| उसे कोई बुद्धिमानों ने समझाया-हे इन्द्र! पराई-नारी का भोग मनुष्य को नरक का भागी बनाता है| इस तरह का विचार कभी भी अपने मन में नहीं लाना चाहिए| आपकी पहले ही अनेक रानियां हैं| सारी इन्द्रपुरी नारि सुन्दरता से भरी पड़ी है, उन्हें धोखा नहीं देना चाहिए| पतिव्रता नारी एक महान शक्ति है|
पर जब इन्द्र ने हठ न छोड़ा तो उसके एक धूर्त सलाहकार ने कहा कि 'गौतम जिस समय गंगा स्नान करने जाता है, तब पूजा - पाठ का समय होता है| उस समय भोग-विलास नहीं किया जाता, प्रभु का गुणगान किया जाता है| अच्छा यह है कि आप माया शक्ति से मुर्गे और चन्द्रमा से सहायता लें|
'वह क्या सहायता करेंगे?' इन्द्र ने पूछा| मुझे इसके बारे में जरा विस्तार से बताओ|
इन्द्र की बात सुनकर उसके सलाहकार ने कहा-'मुर्गे की बांग से गौतम सुबह उठता है और चन्द्रमा निकलने पर वह गंगा स्नान करने जाता है| अगर मुर्गा पहले बांग दे दे और चन्द्रमा पहले निकल जाए तो वह गंगा स्नान करने चला जाएगा और इस प्रकार आपको एक सुनहरी अवसर मिल जाएगा|'
'यह तो बहुत अच्छी चाल है|' इन्द्र ने कहा| इन्द्र खुशी से बोला - मैं अभी मुर्गे और चन्द्रमा से सहायता मांगता हूं, उनसे अभी बात करता हूं| वह अवश्य ही मेरी सहायता करेंगे| फिर साहस करके इन्द्र मुर्गे और चन्द्रमा के पास पहुंचा| उनको सारी बात बताई और अपने पाप का भागी उन्हें भी बना लिया| वे दोनों उसकी सहायता करने को तैयार हो गए| उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी|
रात नियत की गई तथा नियत रात को ही मुर्गे ने बांग दे दी| चन्द्रमा भी निकल आया| गौतम ने मुर्गे की बांग सुनी तो अपना तौलिया धोती उठा कर गंगा स्नान के लिए चल पड़ा| वास्तव में अभी गंगा स्नान का समय नहीं हुआ था| जब वह गंगा स्नान करने लगा तो आकाशवाणी हुई 'हे ऋषि गौतम! असमय आकार ही स्नान करने लगे हो, अभी तो स्नान का समय नहीं है| तुम्हारे साथ धोखा हुआ है| यह सब एक माया जाल है| तुम्हारे घर पर कहर टूट रहा है, जाओ जा कर अपने घर की खबर लो| यह आकाशवाणी सुनकर गौतम वापिस चल पड़ा|
उधर गौतम के जाने के पश्चात इन्द्र ने बिल्ले का रूप धारण किया| बिल्ले का रूप धारण करने का कारण यह था कि गौतम अहल्या को अकेले नहीं छोड़ता था क्योंकि देवता उसके पीछे पड़े थे| जब भी गौतम स्नान करने जाता तो अपनी पुत्री अंजनी को कुटिया के सामने द्वार पर बिठा जाता था|
इन्द्र ने जब देखा कि अंजनी द्वार के आगे बैठी है और पूछेगी कि आप कौन है? तो वह क्या उत्तर देगा, इसलिए इन्द्र ने बिल्ले का रूप धारण कर लिया और भीतर चला गया| अंजनी ने ध्यान न दिया| इन्द्र की माया शक्ति से अंजनी को नींद आ गई, वह बैठी रही| भीतर जाकर इन्द्र ने गौतम मुनि का भेस धारण कर लिया, उसके जैसी ही सूरत बना ली| अहल्या को कुछ भी पता न चला| इन्द्र अहल्या से प्रेम-क्रीड़ा करने लग गया| अभी वह अंदर ही था कि बाहर से गौतम आ गया|
'अंदर कौन है?' अंजनी को गौतम ने पूछा| उस समय गौतम की आंखें गुस्से से लाल थीं| वह बहुत व्याकुल था|
'माजार' अंजनी ने उत्तर दिया| इसके दो अर्थ हैं एक तो 'मां का यार' और दूसरा 'बिल्ला'| वह बहुत घबरा गई|
गौतम भीतर चला गया| उसने देखा कि इन्द्र उसी का रूप धारण करके नग्न अवस्था में ही अहल्या के पास बैठा था| उसकी यह घिनौनी करतूत देखकर गौतम ऋषि ने अपने भगवान सालगराम को याद किया और इन्द्र को श्राप दिया - "हे इन्द्र! तू एक भग के बदले पाप का भागी बना है| तुम्हारे शारीर पर एक भग के बदले हजारों भग होंगे| तुम दुखी होकर दुःख भोगोगे|"
गौतम ऋषि का यह श्राप सुनकर इन्द्र घबराया| लेकिन इन्द्र पर श्राप प्रगट होने लगा| उसका शरीर फूटने लगा| हजार भग नज़र आने लगीं| शर्म का मारा छिपता रहा|
इन्द्र से ध्यान हटाकर गौतम ऋषि ने चन्द्रमा को श्राप दिया| तुम तो धर्मी थे, जगत को रोशन करने वाले मगर तुमने एक अधर्मी, पापी का साथ दिया है इसलिए डूबते-चढ़ते रहोगे, बस एक दिन सम्पूर्ण कला होगी| जबकि चांद पहले सम्पूर्ण कला में रहता था परन्तु उसी समय श्राप के बाद उसकी कला भी कम हो गई|
मुर्गे को भी श्राप दिया-'कलयुग में तुम असमय बांग दिया करोगे| तुम्हारी बांग पर कोई भरोसा नहीं करेगा|
गौतम ऋषि तब तीनों को श्राप दे कर फिर अहल्या की ओर मुड़ा| उस समय वह बहुत ही सुन्दर लग रही थी जिसके समान कोई दूसरी नारी न थी| उसको भी गौतम ने श्राप दे दिया-'हे अहल्या! तुम एक पतिव्रता स्त्री थी| क्या तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी जो एक पराये पुरुष को पहचान न सकी, पत्थर की तरह लेटी रही जाओ - तुम पत्थर का रूप धारण कर लोगी| तुम्हारा कल्याण न होगा| इस के पश्चात नारी का धर्म कमज़ोर हो जाएगा| कलयुग में नारी बदनाम होगी|
जब यह श्राप अहल्या ने सुना तो वह हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगी-हे प्रभु! मेरा कोई दोष नहीं है, मैंने तो बस आपका रूप देखा| मुझे क्षमा करो, मेरे साथ धोखा हुआ है| मैं तो आपकी दासी हूं| मेरा धर्म है....|'
अहल्या का विलाप एवं पुकार सुनकर गौतम को दया आई और उसने दूसरा वचन किया - 'शिला के रूप में तुम्हें कुछ काल तक रहना पड़ेगा| जब श्री राम चन्द्र जी अवतार लेंगे तो उनके पवित्र चरण स्पर्श से तुम फिर से नारी रूप धारण करोगी और तुम्हारा कल्याण होगा|
आश्रम में से निकल कर अहल्या गंगा किनारे पहुंची तो उसका शरीर पत्थर हो गया| वह श्राप में सोई रही| अहल्या बहुत देर तक पत्थर बनी रही| श्री राम चन्द्र जी ने अयोध्या नगरी में जन्म लिया| श्री रामचन्द्र जी लक्ष्मण तथा विश्वामित्र के साथ जब उस तपोवन में आए तो उनके चरणों के स्पर्श से अहल्या फिर नारी रूप में आ गई|
उधर बृहस्पति के कहने पर इन्द्र फिर गौतम के पास गया और अपनी भूल की माफी मांगी हाथ जोड़े, पैर पकड़े, कहा-फिर कभी पर-नारी कोई नहीं देखूंगा| तब इन्द्र का रोगी शरीर भी ठीक हो गया| वह अपने इन्द्र लोक चला गया|