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Wednesday, 20 November 2013

भक्त अंगरा जी

ॐ साँई राम जी


भक्त अंगरा जी 



गुरु ग्रंथ साहिब में एक तुक आती है: 

'दुरबा परूरउ अंगरै गुर नानक जसु गाईओ ||'

जिसने ईश्वर कर नाम सिमरन किया है, यदि कोई पुण्य किया है, वह प्रभु भक्त बना ओर ऐसे भक्तों ने सतिगुरु नानक देव जी का यश गान किया है| अंगरा वेद काल के समय भक्त हुआ है| इसने सिमरन करके अथर्ववेद को प्रगट किया| कलयुग ओर अन्य युगों के लिए अंगरा भक्त ने ज्ञान का भंडार दुनिया के आगे प्रस्तुत किया| इस भक्त का सभी यश करते हैं| इस भक्त विद्वान के पिता का नाम उरु तथा माता का नाम आग्नेय था|

भक्त अंगरा एक राज्य का राजा था| इसके मन में इस बात ने घर कर लिया कि सभी प्रभु के जीव हैं ओर यदि किसी जीव को दुःख मिला तो इसके लिए राजा ही जिम्मेवार होगा| राजा को अपनी प्रजा का सदैव ध्यान रखना चाहिए| इन विचारों के कारण अंगरा बच-बच कर सावधानी से राज करता रहा| राज करते हुए उसे कुछ साल बीत गए|

एक दिन नारद मुनि जी घूमते हुए अंगरा की राजधानी में आए| राजा ने नारद मुनि का अपने राजभवन में बड़ा आदर-सत्कार किया| राजा अंगरा ने विनती की कि मुनिवर! राजभवन छोड़कर वन में जाकर तपस्या क्यों न की जाए? राज की जिम्मेदारी में अनेक बातें ऐसी होती हैं कि कुछ भी अनिष्ट होने से राजा उनके फल का भागीदार होता है| उसने कहा कि मैं ताप करके देव लोक का यश करने का इच्छुक हूं|

राजा अंगरा के मन की बात सुनकर नारद मुनि ने उपदेश किया - राजन! आपके ये वचन ठीक हैं| आपका मन राज करने से खुश नहीं है| मन समाधि-ध्यान लगाता है| मनुष्य का मन जैसा चाहे वही करना चाहिए| मन के विपरीत जाकर किए कार्य उत्तम नहीं होते| यह दुःख का कारण बन जाते हैं| जाएं! ईश्वर की भक्ति करें| 

देवर्षि नारद के उपदेश को सुनकर अंगरा का मन ओर भी उदास हो गया| उसने राज-पाठ त्याग कर अपने भाई को राज सिंघासन पर बैठा दिया तथा प्रजा की आज्ञा लेकर वह वनों में चला गया| अंगरा ने वन में जाकर कठोर तपस्या की| भक्ति करने से ऐसा ज्ञान हुआ कि उसके मन में संस्कृत की कविता रचने की उमंग जागी| उसने वेद पर स्मृति की रचना की| 17वीं स्मृति आपकी रची गई है|

अन्त काल आया| कहते हैं कि जब प्राण त्यागे तो ईश्वर ने देवताओं को आपके स्वागत के लिए भेजा| आप भक्ति वाले वरिष्ठ भक्त हुए| जिनका नाम आज भी सम्मानपूर्वक लिया जाता है| परमात्मा की भक्ति करने वाले सदा अमर हैं|
बोलो! सतिनाम श्री वाहिगुरू|

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.