ॐ श्री साँई राम जी
गजिन्द्र हाथी
एक निमख मन माहि अराधिओ गजपति पारि उतारे ||
सतिगुरु अर्जुन देव जी महाराज बाणी में फरमाते हैं कि हाथी एक पल प्रभु का सिमरन किया तो उसकी जान बच गई| परमेश्वर के नाम की ऐसी महिमा है| पशु-पक्षी जो भी नाम सिमरन करता है उसका जीवन सफल हो जाता है| गजपति (हाथी) दुःख-पीड़ा से व्याकुल था| उसकी चिल्लाहट ने जब कुछ भी न संवारा तो उसने भक्ति और परमात्मा की तरफ ध्यान किया| उसी समय परमात्मा अपनी शक्ति के साथ उसकी सहायता हेतु आ गए| उस हाथी को तेंदुए ने पकड़ रखा था और उसे पानी से बाहर नहीं आने दे रहा था|
हे जिज्ञासु जनो! एकाग्रचित होकर कथा सुनो कि किस तरह हाथी के बंधन मुक्त हो गए| महाभारत के अनुसार कथा इस प्रकार है -
होता एवं ब्रह्मा दो भाई हुए हैं| वह दोनों परमात्मा का सिमरन किया करते थे और इकट्ठे ही रहते थे| एक दिन दोनों सलाह-मशविरा करके एक राजा के पास दक्षिणा लेने गए|
यह मालूम नहीं, क्यों?
किसी कारण या स्वाभाविक ही भाई होता को दक्षिणा ज्यादा मिली तथा ब्रह्मा को कम| ब्रह्मा ने सोचा कि मुझे कम दक्षिणा मिली है तो भाई को ज्यादा, बराबर-बराबर करनी चाहिए| उसने शीघ्र ही सारी दक्षिणा मिला कर एक समान कर दी| उसके दो हिस्से करके भाई को कहने लगा - 'उठा ले एक हिस्सा|'
होता-'नहीं! यह नहीं हो सकता, मैं तो उतना हिस्सा लूंगा जितना मुझे मिला है| दक्षिणा इकट्ठी क्यों की?'
ब्रह्मा-'ईर्ष्या क्यों करते हो?'
होता-ईर्ष्या एवं लालच आप करते हो, जब आप को दक्षिणा कम मिली तो आप ने एक जैसी कर दी| कितनी बुरी बात है, मेरा पूरा हिस्सा दो, लालची!
ब्रह्मा-'मैं लालची हूं तो तुम तेंदुए की तरह हो| जाओ, मैं तुम्हें श्राप देता हूं तुम गंडकी नदी में तेंदुए बन कर रहोगे लालची|'
होता भी कम नहीं था उसने भी भगवत भक्ति की थी और उसने भी आगे से श्राप दे दिया - 'यदि मैं तेंदुआ बनूंगा तो याद रखो तुम भी मस्त हाथी बनोगे तथा उसी नदी में जब पानी पीने आओगे तो तुम्हें पकड़कर गोते देकर मारूंगा, फिर याद करोगे, ऐसे लालच को| तुमने सर्वनाश करने की जिम्मेदारी उठाई है, नीच ज़माने के|
यह कहता हुआ होता अपना हिस्सा भी छोड़ गया तथा घर को आ गया| कुछ समय पश्चात दोनों भाई मर गए और अगला जन्म धारण किया| होता तेंदुआ बना तथा ब्रह्मा हाथी| दोनों गंडकी नदी के पास चले गए| वह नदी बहुत गहरी थी|
हे भक्त जनो! ध्यान दीजिए लालच कितनी बुरी भला है| भाई-भाई का आपस में झगड़ा करा दिया| इतना मूर्ख बनाया कि दोनों का कुल नाश हो गया| वास्तव में अहंकार और लालच बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है| लालच में बंधे हुए लोग दुखी होते हैं| ऐसे ही लालच की अपरंपार में बंधे हुए लोग दुखी होते हैं| ऐसे ही लालच की अपरंपार महिमा है| लालच कभी नहीं करना चाहिए|
ब्रह्मा एक बहुत बड़ा हाथी बना जैसे कि सब हाथियों का सरदार था, कोई हाथी उसके सामने नहीं ठहरता था| वह सब हाथिनों के झुण्ड साथ लेकर इधर-उधर घूमता रहता| वह जंगल का राजा था| ब्रह्मा को जो श्राप मिला था, उसे तो पूरा होना ही था| भगवान की माया अनुसार वह हाथी एक दिन उस गंडकी नदी के पास चला गया| पानी पीया| पानी बहुत ठण्डा था और सारे हाथी प्यासे थे| सबसे आगे वही हाथी था जो पूर्व जन्म में ब्रह्मा था| जब वह पानी पीने के लिए आगे बढ़ा तो आगे उसका भाई तेंदुए का रूप धारण करके बैठा था| उसने ब्रह्मा की टांगें पकड़ कर उसको गहरे पानी में खींचना शुरू कर दिया| वह आगे - आगे गया| जब हाथी डूबने लगा तो उसने चिल्लाना शुरू कर दिया| वह पानी के बीच बिना डूबे खड़ा हो गया| बस सिर और सूंड ही नंगी थी| ऐसा देख कर बाकी हाथी बहुत हैरान हुए, हाथिनें चिल्लाने लगीं, पर हाथी को बाहर निकालने की किसी में समर्था नहीं थी|
तेंदुए ने ब्रह्मा से बदला लेना था| इसलिए वह ज़ोर से उस हाथी को पकड़ कर बैठा रहा| हाथी बल वाला था, उसको भी ज्ञान हो गया कि पिछले जन्म का हिसाब बाकी है| वह अपने आप को बचाने का यत्न करने लगा| वह पानी में सिर न डूबने देता| तेंदुआ भी उस हाथी को डुबोने का यत्न करता|
तेंदुए तथा हाथी को लड़ते हुए कई हजार साल बीत गए| हाथी भूखा रहा, पानी में से वह क्या खाए| तेंदुए का भोजन तो पानी में ही था| हाथी बिना कुछ खाए-पीए कमज़ोर हो गया वह पानी में डूबने लगा तो उसी समय उसने अपनी सूंड ऊपर उठा कर आकाश की तरफ देख कर भगवान को याद किया| उसने प्रार्थना की-हे प्रभु! मैं हाथी की योनि में पड़ा हूं, दया करें कि मैं पानी में न डूबूं| यदि यहां मरा तो जरूर किसी बुरी योनि में जाऊंगा| मेरी प्रार्थना सुनो प्रभु!"
ब्रह्मा (हाथी) ने शुद्ध हृदय से पुकार की, उसी समय परमात्मा ने उसकी प्रार्थना सुनी और स्वयं नदी किनारे आए| सुदर्शन चक्र से तेंदुए की तारें काटी और हाथी को डूबने से बचाया| उसकी हाथी की योनि से मुक्त करवाया, फिर भक्त रूप में प्रगत किया| वह प्रभु का यश करने लगा| तेंदुए का जन्म भी बदल गया|