श्री गुरु अर्जन देव जी - साखियाँ
मन की शांति का साधन
एक दिन सुल्तान्पुत के निवासी कालू, चाऊ, गोइंद, घीऊ, मूला, धारो, हेमा, छजू, निहाला, रामू, तुलसा, साईं, आकुल, दामोदर, भागमल, भाना, बुधू छीम्बा, बिखा और टोडा भाग मिलकर गुरु अर्जन देव जी के पास आए| उन्होंने आकर प्रार्थना की कि महाराज! हम रोज सवेरे उठकर स्नान करके गुरबानी का पाठ करने के बाद ही अपनी कृत करते हैं| मन को संयम में रखते हैं| संयम में रखने के बाद भी मन में कलहे ही रहती है| गुरु जी कृपा करके ऐसा उपदेश दो जिससे कलह समाप्त हो और मन को शांति मिले|
गुरु जी ने उनकी बात सुनी और कहने लगे कि जब तक मन से रजो गुण और तमो गुण का त्याग ना किया जाए तब तक मन को शांति नहीं मिल सकती| इसलिए इनका त्याग जरूरी है| आगे से सिख पूछने लगे महाराज! इस गुणों की परीक्षा किस प्रकार की जा सकती है|
गुरु जी फरमाने लगे हिंसा (जीव हत्या) और क्रोध तमो गुण में आते हैं| लोभ और अभिमान यह रजो गुण में आते हैं| इसलिए इनका त्याग जरूरी है|
तमो गुण के लक्षण-
· रात का बासी, खट्टा और चटपटा भोजन खाना
· बहुत अधिक सोना
· झूठ बोलना
· गन्दा रहना
· परायी निन्दा करनी
· बुरी संगत करनी
रजो गुण के लक्षण-
· भड़कीले वस्त्र पहनना
· मांस का सेवन करना
· अपना बडप्पन चाहाना
शांति गुण के लक्षण-
· उज्जवल सफ़ेद वस्त्र पहनने
· स्नान आदि में नियमित होना
· चावल दाल आदि स्वच्छ भोजन करना
· थोड़ा सोना व थोड़ा खाना
· एक मन होकर कथा कीर्तन सुनना
राजसी गुण के लक्षण-
· जिसका कभी मन टिके और कभी न टिके व राजसी गुण की निशानियाँ हैं|
तामसिक गुण के लक्षण-
· जिसका मन कभी टिके ही न, शब्द वाणी की समझ भी कोई न आए उसे तामसिक गुण वाला समझे|
अन्त में गुरु जी कहने लगे जब आप इन शांति वाले गुणों को अपनाओगे तो आपको शांति अपने आप ही प्राप्त हो जायेगी|