श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भक्ति के प्रकार
नवधा भक्ति :-
१. गुरु जी के वचनों को श्रद्धा सहित सुनकर दिल में बसाना|
२. कथा कीर्तन के द्वारा परमात्मा के गुन गायन करना|
३. सत्यनाम का सुमिरन श्वास-२ करना|
४. परमत्मा व गुरु चरणों का धयान करना व सन्तो का चरण धोकर चरणामृत लेना|
५. पवित्र भोजन करना और गुरु निमित देना|
६. गुरु स्थल पर जा कर नमस्कार करनी और परिकर्मा करनी|
७. धूप,दीप व फूल माला चडाना|
८. परमेश्वर को मालिक व खुद को सेवक जानना|
९. अपने मन को स्थिर रखना| प्रभु के हुकम को अच्छा संयम कर मानना|
१०. पदार्थो की माया छोड़कर सब कुछ प्रभु को जानना|
इस नवधा भक्ति का एक गुण भी धारण हो जाये तो बंदे का उद्धार हो सकता है| मगर सभी गुण धारण करके बंदे का कल्याण हो सकता है|
प्रेमा भक्ति :-
जिस प्रकार वृक्ष का फल पहले हरा होता है, उसका स्वाद भी कड़वा होता है फिर यह खट्टा हो जाता है और फिर वृक्ष से रस लेकर रसीला हो जाता है मीठा बन जाता है| इसी तरह ही प्रेमा भक्ति वाले पुरुष का पहले रोने का जी करता है उसको अपने प्रियतम के दर्शनों की लालसा बढती है| वह यह समझकर कि मित्र से बिछडकर दुःख पा रहा है और गद् गद् हो जाता है| कभी परमेश्वर के गुण गाता है और कभी चुप धारण कर लेता है| इस अवस्था में वह सांवला हो जाता है| जैसे जैसे प्रेम बढता है खाना थोड़ा होता जाता है, रात दिन प्रेम में मस्त रहता है| मुँह का रंग पीला हो जाता है| जब सत्य संग ज्यादा हो जाता है तो पूरण प्रभु को सब जगह देखता है| इस देशा में मुख का रंग लाल हो जाता है, मन ज्ञानमय हो जाता है|
परा भक्ति :-
उच्च अवस्था में पहुँच कर परा भक्ति शुरू होती है| तब पुरुष ब्रहम स्वरुप हो जाता है, यही कल्याण का स्वरुप है| इस प्रकार तीनों ही आनंद अवस्था भक्ति को प्राप्त हुए|