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Friday, 28 June 2013

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भाई जग्गे को निहाल करना

श्री गुरु अमर दास जी – साखियाँ - भाई जग्गे को निहाल करना



एक दिन भाई जग्गा जुरू जी के दर्शन करने आया| उसने प्राथना कि सच्चे पादशाह जी मुझे एक दिन जोगी ने बताया कि कल्याण तभी हो सकता है अगर घर - बाहर, स्त्री - पुत्र आदि का त्याग किया जाये जो कि बन्धन हैं|

इसके बाद ही मेरे से उपदेश लेना, मगर मैं किसी भी वास्तु का त्याग नहीं कर पाया| अब आप ही मुझ पर कृपा करे और बताये कि मुक्ति किस तरह मिल सकती है? गुरु जी ने उसका श्रधा व प्रेम भाव देखा और कहा यदि घर - बाहर, स्त्री - पुत्र छोड़ने से ही मुक्ति मिलती तो फिर शहरो और नगरों में आकर क्यों मांगते? गुरुसिख गृहस्थ में ही रह कर मुक्ति प्राप्त कर लेता है| गृहस्थ धर्म ही सबसे अच्छा है क्योंकि इसमें वह खुद कमाई करके खाता है और दान करता है और जो साधु ग्रहस्थियो से मांगकर खाता है वह अपने जप तप की कमाई में कमी डाल देता है, ग्रहस्थी जो कि अन्न वस्त्र कि सेवा करता है उसकी कमाई से भी हिस्सा ले लेता है|

हे भाई जग्गा! शरीर के साथ सन्तों की सेवा और मन से हरि की भक्ति करो| इस तरह शीघ्र ही कल्याण हो जायेगा| इस प्रकार गुरु जी ने मुक्ति का मार्ग सभी बंधनों को तोड़ कर नहीं अपितु ग्रहस्थ आश्रम में रहते हुए ही मुक्ति को प्राप्त करना बताया|

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.