बाबा के महासमाधि लेने से कुछ समय पूर्व जब शिर्डी के भोले भले नागरिकों ने अपने मसीहा करुणावतार साईं जी से पूछा : बाबा !! जब आप हमारे बीच नहीं रहेंगे, तो हम क्या करेंगे? किसके पास अपना दुःख दर्द ले कर जायेंगे? कौन हमारी सहायता करेगा?
तब बाबा ने उन्हें आश्वासन दिया था, "एक देह त्यागकर, मैं अनंत देहों में तुम्हे मिलूँगा | मैं पग पग पर तुम्हारे साथ चलूँगा | मेरी समाधी चिर काल जीवंत रहेगी | जो एक बार उसकी सीढ़ियाँ चड़ेगा, उसकी रक्षा का जिम्मा मेरा होगा | मेरे द्वार से कोई निराश नहीं जाएगा |
बाबा के दिए उक्त आश्वासन की प्रतीति आज देश - विदेश में अनगिनित व्यक्ति नित्य प्रति अपने जीवन में कर रहे है और वह बाबा की ओर ऐसे खिंचे चले आ रहे है जैसे चिड़िया के पैर में डोरी बांध कर, बाबा ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया हो |
बाबा अपनी लीला अनेकानेक ढंग से दिखाते है | किसी को सशरीर दर्शन दे कर, किसी को स्वपन अवस्था में दृष्टान्त देकर, किसी को किसी और रूप में अपनी उपस्थिति का अहसास करा कर, अपनी नगरी शिर्डी बुला लेते है और तत्पश्चात उसके जीवन का समस्त भार अपने ऊपर ले कर, उसे आध्यात्मिक राह पर चलने को प्रोत्साहित करते है |
ऐसे अनगिनित दृष्टान्त नित्य प्रति घटित हो रहे है और किवदंतियों के रूप में चारों ओर सुने जा सकते है | फलस्वरूप बाबा के भक्तों की संख्या में निरंतर बढ़ोतरी होती जा रही है |
शिर्डी के साईं - समर्थ की गाथा इतिहास के पन्नो में छिपी कोई कहानी नहीं है | बाबा मात्र 92 वर्ष पूर्व सशरीर इस पृथ्वी पर चलते फिरते देखे गए थे | उन्होंने अपना पार्थिव शरीर विजय दशमी, 15 अक्टूबर 1918 को दोपहर के ठीक 2 :30 बजे ही त्यागा था |