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Monday, 2 June 2014

रामायण के प्रमुख पात्र - भक्तिमति शबरी

ॐ श्री साँईं राम जी


शबरीका जन्म भीलकुलमें हुआ था| वह भीलराजकी एकमात्र कन्या थी| उसका विवाह एक पशुस्वभावके क्रूर व्यक्तिसे निश्चय हुआ| अपने विवाहके अवसरपर अनेक निरीह पशुओंको बलिके लिये लाया गया देखकर शबरीका हृदय दयासे भर गया| उसके संस्कारोंमें दया, अहिंसा और भगवद्भक्ति थी| विवाहकी रात्रिमें शबरी पिताके अपयशकी चिन्ता छोड़कर बिना किसीको बताये जंगलकी ओर चल पड़ी| रात्रिभर वह जी-तोड़कर भागती रही और प्रात:काल महर्षि मतंगके आश्रममें पहुँची| त्रिकालदर्शी ऋषिने उसे संस्कारी बालिका समझकर अपने आश्रममें स्थान दिया| उन्होंने शबरीको गुरुमन्त्र देकर नाम-जपकी विधि भी समझायी|

महर्षि मतंगने सामाजिक बहिष्कार स्वीकार किया, किन्तु शरणागता शबरीका त्याग नहीं किया| महर्षिका अन्त निकट था| उनके वियोगकी कल्पनामात्रसे शबरी व्याकुल हो गयी| महर्षिने उसे निकट बुलाकर समझाया - 'बेटी! धैर्यसे कष्ट सहन करती हुई साधनामें लगी रहना| प्रभु राम एक दिन तेरी कुटियामें अवश्य आयेंगे| प्रभुकी दृष्टिमें कोई दीन-हीन और अस्पृश्य नहीं है| वे तो भावके भूखे हैं और अन्तरकी प्रीतिपर रीझते हैं| शबरीका मन अप्रत्याशित आनन्दसे भर गया और महर्षिकी जीवन-लीला सम्पात हो गयी|

शबरी अब वृद्धा हो गयी थी| 'प्रभु आयेंगे' गुरुदेवकी यह वाणी उसके कानोंमें गूँजती रहती थी और इसी विश्वासपर वह कर्मकाण्डी ऋषियोंके अनाचार शान्तिसे सहती हुई अपनी साधनामें लगी रही| वह नित्य भगवान् के दर्शनकी लालसासे अपनी कुटिया को साफ करती, उनके भोगके लिये फल लाकर रखती| आखिर शबरीकी प्रतीक्षा पूरी हुई| अभी वह भगवान् के भोगके लिये मीठे-मीठे फलोंको चखकर और उन्हें धोकर दोनोंमें सजा ही रही थी कि अचानक एक वृद्धने उसे सूचना दी - 'शबरी! तेरे राम भ्रातासाहित आ रहे हैं|' वृद्धके शब्दोंने शबरीमें नवीन चेतनाका संचार कर दिया| वह बिना लकुट लिये हड़बड़ीमें भागी| श्रीरामको देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणोंमें लोट गयी| देहकी सुध भूलकर वह श्रीरामको देखते ही वह निहाल हो गयी और उनके चरणोंमें लोट गयी| देहकी सुध भूलकर वह श्रीरामके चरणोंको अपने अश्रुजलसे धोने लगी| किसी तरह भगवान् श्रीरामने उसे उठाया| अब वह आगे-आगे उन्हें मार्ग दिखाती अपनी कुटियाकी ओर चलने लगी| कुटियामें पहुँचकर उसने भगवान् का चरण धोकर उन्हें आसनपर बिठाया| फलोंके दोने उनके सामने रखकर वह स्नेहसिक्त वाणीमें बोली - 'प्रभु! मैं आपको अपने हाथोंसे फल खिलाऊँगी| खाओगे न भीलनीके हाथके फल? वैसे तो नारी जाति ही अधम है और मैं तो अन्त्यज, मूढ और गँवार हूँ| 'कहते-कहते शबरीकी वाणी रुक गयी और उसके नेत्रोंसे अश्रुजल छलक पड़े|

श्रीरामने कहा - 'बूढ़ी माँ! मैं तो एक भक्तिका ही नाता मानता हूँ| जाति-पाति, कुल, धर्म सब मेरे सामने गौण हैं| मुझे भूख लग रही है, जल्दीसे मुझे फल खिलाकर तृप्त कर दो|' शबरी भगवान् को फल खिलाती जाती थी और वे बार-बार माँगकर खाते जाते थे| महर्षि मंतगकी वाणी आज सत्य हो गयी और पूर्ण हो गयी शबरीकी साधना| उसने भगवान् को सीताकी खोजके लिये सुग्रीवसे मित्रता करनेकी सलाह दी और स्वयंको योगाग्निमें भस्म करके सदाके लिये श्रीरामके चरणोंमें लीन हो गयी| श्रीराम-भक्तिकी अनुपम पात्र शबरी धन्य है|

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.