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Friday, 27 June 2014

श्री साईं लीलाएं - पानी से दीप जले

ॐ सांई राम







परसों हमने पढ़ा था.. 
साईं बाबा का आशीर्वाद

श्री साईं लीलाएं
  
पानी से दीप जले

साईं बाबा जब से शिरडी में आये थेवे रोजाना शाम होते ही एक छोटा-सा बर्तन लेकर किसी भी तेल बेचने वाले दुकानदार की दुकान पर चले जाते और रात को मस्जिद में चिराग जलाने के लिए थोडा-सा तेल मांग लाया करते थे|




दीपावली से एक दिन पहले तेल बेचने वाले दुकानदार शाम को आरती के समय मंदिर पहुंचेसाईं बाबा के मांगने पर वे उन्हें तेल अवश्य दे दिया करते थेपरंतु साईं बाबा के बारे में उनके विचार कुछ अच्छे नहीं थे|उन्हें साईं बाबा के पास मस्जिद में जाकर बैठना अच्छा नहीं लगता थावहां का वातावरण उन्हें अच्छा नहीं लगता थावह उनकी भावनाओं से मेल नहीं खाता थाशाम को दुकान बंद करने के बाद वह मंदिर में पंडित के साथ गप्पे मारनादूसरों की बुराई करना अच्छा लगता थासाईं बाबा की निंदा करने पर पंडितजी को बड़ा आत्मसंतोष प्राप्त होता था|

"देखा भाईकल दीपावली है और शास्त्रों में लिखा है कि दीपावली के दिन जिस घर में अंधेरा रहता हैवहां लक्ष्मी नहीं आती हैजो भी लक्ष्मी का थोड़ा-बहुत अंश उस घर में होता हैवह भी चला जाता हैसुनोकल जब साईं बाबा तेल मांगने आएं तो उन्हें तेल ही न दिया जाएवैसे तो उनके पास सिद्धि-विद्धि कुछ है नहींऔर यदि होगी भी तो कल दीपावली के दिन मस्जिद में अंधेरा रहने के कारण लक्ष्मीउसका साथ छोड़कर चली जाएगी|"

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यह तो आपने मेरे मन की बात कह दी पंडितजी ! हम लोग भी कुछ ऐसा ही सोच रहे थेहम कल साईं बाबा को तेल नहीं देंगे|" एक दुकानदार ने कहा|

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मैं तो सोच रहा हूं कि तेल बेचा ही न जाएपूरा गांव उसका शिष्य बन गया है और उसकी जय-जयकार करते नहीं थकतेगांव में शायद ही दो-चार के घर इतना तेल हो कि कल दीपावली के दीए जला सकेंबस हमारे चार-छ: घरों में ही दीए जलेंगे|" - दूसरे दुकानदार ने कहा|

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हांयही ठीक रहेगा|" पंडितजी तुरंत बोले - "सचमुच तुमने बिल्कुल ठीक कहा हैमैंने तो इस बारे में सोचा भी नहीं था|

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फिर यह तय हो गया कि कल कोई भी दुकानदार तेल न बेचेगा चाहे कोई कितनी ही कीमत क्यों न दे|"अगले दिन शाम को साईं बाबा तेल बेचने वाले की दुकान पर पहुंचेउन्होंने कहा - "सेठजीआज दीपावली हैथोड़ा-सा तेल ज्यादा दे देना|"

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बाबाआज तो तेल की एक बूंद भी नहीं हैकहां से दूं सारा तेल कल ही बिक गयासोचा था कि सुबह को जाकर शहर से ले आऊंगात्यौहार का दिन होने के कारण दुकान से उठने की फुरसत ही नहीं मीलीआज तो अपने घर में भी जलाने के लिए तेल नहीं है|" दुकानदार ने बड़े दु:खी स्वर में कहा|साईं बाबा आगे बढ़ गए|तेल बेचने वाले सभी दुकानदार ने यही जवाब दिया|साईं बाबा खाली हाथ लौट आये|तभी एक कुम्हार जो उनका शिष्य थाउन्हें एक टोकरी दीये दे गया|साईं बाबा के मस्जिद खाली हाथ लौटने पर उनके शिष्यों को बड़ी निराशा हुईउन्होंने बड़ी खुशी के साथ दीपावली के कई दिन पहले से ही मस्जिद की मरम्मत-पुताई आदि करना शुरू कर दी थीउन्हें आशा थी कि अबकी बार मस्जिद में बड़ी धूमधाम के साथ दीपावली मनायेंगेरात भर भजन-कीर्तन होगाकई शिष्य अपने घर चले गएघर से पैसे और तेल खरीदने के लिए चल पड़ेवह जिस भी दुकानदार के पास तेल के लिए पहुंचतेवह यही उत्तर देता कि आज तो हमारे घर में भी जलाने के लिए तेल की एक बूंद भी नहीं है|सभी शिष्य-भक्तों को निराशा के साथ बहुत दुःख भी हुआवे सब खाली हाथ मस्जिद लौट आए|

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बाबा ! गांव का प्रत्येक दुकानदार यही कहता है कि आज तो उसके पास अपने घर में जलाने के लिए भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"

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तो इसमें इतना ज्यादा दु:खी होने कि क्या बात है दुकानदार सत्य ही तो कह रहे हैंसच में ही उनकी दुकान और घर में आज दीपावली की रात को एक दीया तक जलाने के लिए तेल की एक बूंद भी नहीं हैदीपावली मनाना तो उनके लिए बहुत दूर की बात है|" साईं बाबा ने मुस्कराते हुए कहा और फिर मस्जिद के अंदर बने कुएं पर जाकर उन्होंने कुएं में से एक घड़ा पानी भरकर खींचा|भक्त चुपचाप खड़े उनको यह सब करते देखते रहेसाईं बाबा ने अपने डिब्बेजिसमें वह तेल मांगकर लाया करते थेउसमें से बचे हुए तेल की बूंदे उस घड़े के पानी में डालीं और घड़े के उस पानी को दीयों में भर दियाफिर रूई की बत्तियां बनाकर उन दीयों में डाल दीं और फिर बत्तियां जला दींसारे दिये जगमग कर जल उठेयह देखकर शिष्यों और भक्तों की हैरानी का ठिकाना न रहा|

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इन दीयों को मस्जिद की मुंडेरोंगुम्बदों और मीनारों पर रख दोअब ये दिये कभी नहीं बुझेंगेमैं नहीं रहूंगा तब भी ये इसी तरह जगमगाते रहेंगे|"साईं बाबा ने वहां उपस्थित अपने शिष्यों और भक्तजनों से कहा और फिर एक पल रुककर बोले - "आज दीपावली का त्यौहार हैलेकिन गांव में किसी के घर में भी तेल नहीं हैजाओप्रत्येक घर में इस पानी को बांट आओलोगों में कहना कि दिये में बत्ती डालकर जला देंदीये सुबह सूरज निकलने तक जगमगाते रहेंगे|"

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बोलो साईं बाबा की जय!" सभी शिष्यों और भक्तों ने साईं बाबा का जयकारा लगाया और घड़ा उठाकर गांव में चले गएसभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे|दीपावली की रात का अंधकार धीरे-धीरे धरती पर उतरने लगा थातब तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंडितजी के घर को छोड़कर प्रत्येक घर में साईं बाबा के घड़े का पानी पहुंच गया था|साईं बाबा के शिरडी में आने के बाद में शिरडी और आस-पास के मुसलमान हिन्दुओं के साथ दीपावली का त्यौहार बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने लगे थे और हिन्दुओं ने भी ईद और शब्बेरात मनानी शुरू कर दी थीपूरा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा उठाउन दीयों की रोशनी अन्य दिन जलाए जाने वाले दीयों से बहुत तेज थीपूरे गांव भर में यदि कहीं अंधेरा छाया हुआ था तो वह पंडितजी और तेल बेचने वाले दुकानदारों के घर में|दुकानदार मारे आश्चर्य के परेशान थे कि कल शाम तो जो बर्तन तेल से लबालब भरे हुए थेइस समय बिल्कुल खाली पड़े थेजैसे उनमें कभी तेल भरा ही न गया होयही दशा पंडितजी की भी थीशाम को जब उनकी पत्नी दीये जलाने बैठी तो उसने देखा तेल की हांडी एकदम खाली पड़ी हैउसने बाहर आकर पंडितजी से तेल लाने के लिए कहा|

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तुम चिंता क्यों करती हो मैं अभी लेकर आता हूं|पंडितजी हांडी लेकर जब तेल बेचने वाले दुकानदारों के पास पहुंचेवे सब भी अपने माथे पर हाथ रखे इसी चिंता में बैठे थे कि बिना तेल के वह दीपावली कैसे मनायेंगे ?जब पंडितजी ने दुकान पर जाकर तेल मांगातो वे बोले - "पंडितजीन जाने क्या हुआकल शाम को ही हम लोगों ने तेल ख़रीदा थासुबह से एक बूंद तेल नहीं बेचालेकिन अब देखा तो तेल की एक बूंद भी नहीं हैबर्तन इस तरह खाली पड़े हैंजैसे इनमें कभी तेल था ही नहीं|" सभी दुकानदार ने यही कहानी दोहरायी|आश्चर्य की बात तो यह थी कि तेल से भरे बर्तन बिल्कुल ही खाली हो गए थेन घर में तेल की एक बूंद थी और न ही दुकान मेंपूरा गांव रोशनी से जगमगा रहा थाकेवल तेल बेचने वाले दुकानदारों और पंडितजी के घर में अंधकार छाया हुआ था|

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यह सब साईं बाबा की ही करामात हैहम लोगों ने उन्हें तेल देने से मना किया था और उसने कहा था कि आज तो हमारे घर और दुकान में एक बूंद भी तेल नहीं है|" -एक दुकानदार ने कहा - "चलो बाबा के पास चलकर उनसे माफी मांगें|"फिर तेल बेचने वाले सभी दुकानदार साईं बाबा के पास पहुंचेउनसे माफी मांगने लगे - "बाबाहम आपकी महिमा को नहीं समझ पाएहमें क्षमा करेंहम लोगों से बहुत बड़ा अपराध हुआ हैहमने आपसे झूठ बोला था|" -दुकानदारों ने साईं बाबा के चरणों में गिरते हुए कहा|

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इंसान गलतियों का पुतला हैअपराधी तो वह हैजो अपने अपराध को छिपाता हैजो अपने अपराध को स्वीकार कर लेता हैवह अपराधी नहीं होतातुमने अपराध नहीं किया|" -साईं बाबा ने दुकानदारों को उठाकर सांत्वना देते हुए कहा और फिर उनकी ओर देखते हुए बोले - "तात्याअभी उस घड़े में थोड़ा-सा पानी हैउसे इन लोगों के घरों में बांट आओ - और सुनो पंडितजी के घर भी दे आनाउन बेचारों के घर में भी तेल की एक बूंद भी नहीं है|"तात्या सभी दुकानदारों के घरों में घड़े का पानी बांट आयापरंतु पंडितजी ने लेने से इंकार कर दियासारा गांव दीयों की रोशनी से जगमगा रहा थाइसके बावजूद अभी भी एक घर में अंधेरा छाया हुआ था और वह घर था पंडितजी कादीपावली के दिन उनके घर में अंधेरा ही रहाएक दीपक जलाने के लिए भी तेल नहीं मिलासाईं बाबा के गांव में कदम रखते ही लक्ष्मी तो उनसे पहले ही रूठ गयी थी और दीपावली के दिन घर में अंधेरा पाकर तो बिलकुल ही रूठ गयीकुछ दुकानदारों जो मंदिर में सुबह-शाम जाया करते थेदीपावली की रात से उन्होंने मंदिर में आना छोड़ दियासाईं बाबा की भभूत के कारण उनका औषधालय तो पहले ही बंद हो चुका थामजदूरों ने खेतों में काम करने से मना कर दियातो पंडितजी का क्रोध अपनी चरम सीमा को लांघ गया|

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इस ढोंगी साईं बाबा को गांव से भगाए बिना अब काम नहीं चलेगा|" पंडितजी न मन-ही-मन फैसला किया| 
कल चर्चा करेंगे..बाबा के विरुद्ध पंडितजी की साजिश
ॐ सांई राम
===ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ===
बाबा के श्री चरणों में विनती है कि बाबा अपनी कृपा की वर्षा सदा सब पर बरसाते रहें ।

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.