ॐ श्री साँईं राम जी
'ये पर्वतों के दायरे, ये शाम का धुआं'
हे साईं तेरे प्यार का, ये दीप है जला
तेरे ही दीदार का, है ये तो सिलसिला
हे साईं ..........
साईं मुख से बोल दो, अहम को अपने छोड़ दो,
खुद को उससे जोड़ दो, भरम वो सारे तोड़ दो
नसीब उसका खुल गया, जो साईं से मिला
हे साईं ..........
श्रद्धा हो सबूरी हो, लगन भी जिसमे पूरी हो,
मांग कर तो देख लो, आशा सबकी पूरी हो
जिसने माँगा जो भी कुछ, वो साईं से मिला
हे साईं ...........
साईं तुझको है नमन, तुझको कोटि है नमन
शिर्डी बन गया ये मन, धन्य हो गए नयन
हुआ दीदार साईं का,चमन है ये खिला
हे साईं .............
यह भजन बहन रविन्द्र जी की ओर से आप के समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा हैं, बाबा जी से प्रार्थना है की उन पर और आप सभी पर अपना आशिर्वाद बनायें रखे