हम वर्ल्ड ऑफ़ साईं ग्रुप के माध्यम से आप सब से अपील करते है की यदि आप के पास गैर जरूरी (न काम आने वाले हर रोज़ मर्रा का कोई भी जरूरी सामान जो शायद आज आपकी जरूरत का हिस्सा न हो) जैसे वस्त्र (किसी भी तरह के वस्त्र, हर उम्र एवं हर श्रेणी के), खिलौने अथवा बिस्तर (पुराने या नए चादर, तकिया, कम्बल, इत्यादि) अथवा अन्नदान, जरूरतमंद कौड़ियों के आश्रम के लिए दान दे | ग़रीबों को भोजन अवश्य दें क्यों कि बाबा ने स्वयं कहा है कि जो ग़रीबों को भोजन खिलाता है वो वास्तव में मुझे भोजन खिलाता है |
शिर्डी के साँई बाबा जी के दर्शनों का सीधा प्रसारण... अधिक जानने के लियें पूरा पेज अवश्य देखें
शिर्डी से सीधा प्रसारण ,...
"श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ...
के सौजन्य से...
सीधे प्रसारण का समय ...
प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ...
सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को
ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन
नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,...
हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है।
...ॐ साँई राम जी...
Monday, 31 October 2011
और मांगे भी क्या तुझ से ओ मेरे साईं
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
ॐ साईं राम
दिल क्यों उदास है
आज फिर साईं से मिलने की प्यास है
आँख में आंसू और दिल में एक आस है
यह भी विश्वास है कि साईं हर पल आस पास है
लेकिन फिर भी न जाने क्यों दिल उदास है
और मांगे भी क्या तुझ से ओ मेरे साईं, ऐसा क्या है जो तुझ से न पाया है |
औरों को जो मिला मुक़द्दर से मिला, हमने तो मुक़द्दर भी तेरे दर से पाया है |
Sunday, 30 October 2011
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
ॐ साईं राम
तू है हमारा और हम तेरे
तेरे प्यार में तेरे द्वार पे डाल दिये हमने डेरे
तू है हमारा और हम तेरे
तेरे चमन का रंग अनोखा है
दूसरे बागों में धोखा ही धोखा है
मुरझाए फ़िर खिले रहे चाहे कितना भी हमें ग़म घेरे
तू है हमारा और हम तेरे
किसकी मज़ाल तेरे दर से उठाएगा
किसमें है ताकत हमें कौन बहकाएगा
दिलसे निकली यही दुआ तू कभी न हमसे मुहं फेरे
तू है हमारा और हम तेरे
तेरा रस्ता चमकता मिलेगा
कोई भी राही न थकता मिलेगा
हर पग पर मिट जाएंगे मन की शंका के अंधेरे
तू है हमारा और हम तेरे
तेरे प्यार में तेरे द्वार पे डाल दिये हमने डेरे
तू है हमारा और हम तेरे
तेरे चमन का रंग अनोखा है
दूसरे बागों में धोखा ही धोखा है
मुरझाए फ़िर खिले रहे चाहे कितना भी हमें ग़म घेरे
तू है हमारा और हम तेरे
किसकी मज़ाल तेरे दर से उठाएगा
किसमें है ताकत हमें कौन बहकाएगा
दिलसे निकली यही दुआ तू कभी न हमसे मुहं फेरे
तू है हमारा और हम तेरे
तेरा रस्ता चमकता मिलेगा
कोई भी राही न थकता मिलेगा
हर पग पर मिट जाएंगे मन की शंका के अंधेरे
तू है हमारा और हम तेरे
इस जीवन के रूप देखे
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
ॐ साईं राम
हे सांई इक कर्म कमा,
मेरा हिसाब यही चुका,
मेरे कर्म धर्म जो भी है,
जो भी पाप पुन्य किया,
सारा लेखा कर सफा,
हे सांई, हे मेरे बाबा इक यह कर्म कमा
इस जीवन के रूप देखे,
ये सारे आडम्बर देखे,
नाते देखे रिश्ते देखे,
संगी देखे साथी देखे,
सारे लेते सिर्फ मज़ा,
हे सांई, हे मेरे बाबा इक यह कर्म कमा
यदि फिर आना हो बाकी तो,
कर्म भोगने हो बाकी तो,
ये दिल न देना बस करना इतनी दया,
न है मेरी इंसान बनने की ही चाह,
हे सांई, हे मेरे बाबा इक यह कर्म कमा
मेरा हिसाब यही चुका,
मेरे कर्म धर्म जो भी है,
जो भी पाप पुन्य किया,
सारा लेखा कर सफा,
हे सांई, हे मेरे बाबा इक यह कर्म कमा
इस जीवन के रूप देखे,
ये सारे आडम्बर देखे,
नाते देखे रिश्ते देखे,
संगी देखे साथी देखे,
सारे लेते सिर्फ मज़ा,
हे सांई, हे मेरे बाबा इक यह कर्म कमा
यदि फिर आना हो बाकी तो,
कर्म भोगने हो बाकी तो,
ये दिल न देना बस करना इतनी दया,
न है मेरी इंसान बनने की ही चाह,
हे सांई, हे मेरे बाबा इक यह कर्म कमा
Saturday, 29 October 2011
मेरे साईं सा नहीं कोई दूजा इस जग में
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
ॐ सांई राम
मेरे साईं सा नहीं कोई दूजा इस जग में
जो हर ले सब का दुःख अपने में
जो हर ले सब का दुःख अपने में
जहाँ भी देखू अपने साईं को पाऊ
अपने मान-चित को बस साईं में समाऊ
हे मेरे साईं रहम नज़र कर दे
खुशिया मेरी झोली में भर दे
हाथ पसारे खड़ी हु साईं
तेरी एक रहम नज़र का इशारा
बदल देंगा मेरा जीवन सारा
बदल देंगा मेरा जीवन सारा
मेरे साईं सा नहीं कोई दूजा इस जग में
जो हर ले सब का दुःख अपने में
जो हर ले सब का दुःख अपने में
Friday, 28 October 2011
दूर खड़ा तू देख रहा
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
>>>>>साईं की महिमा<<<<<
दूर खड़ा तू देख रहा
सबके मन का भाव
पल भर में तू कर दे
पूरी मन की आस
आस बन जाती
दिल का एक अरमान
दिन की शुरुवात होती
लेकर तेरा नाम
तेरा नाम जप कर
दिल हो जाए मालामाल
तेरी किरपा से
खुल जाए स्वर्ग के दरबार
हर दरबार की चादर में
जड़े हुए है हीरे मोती
जिसकी चमक से
मिल जाती मन को मुक्ति
मन की मुक्ति पाकर
मिल जाए साईं का आशीष
आत्मा तृप्त हो जावे
मिल जावे दिल को आराम
दिल का आराम पाकर
धन्य हो जावे जीवन
जिसकी करूणा कथा को पढ़कर
दिल हो जावे बेकरार
बेकरार दिल एक ही गाथा गावे
जय साईंराम, जय-जय साईंराम
सबके मन का भाव
पल भर में तू कर दे
पूरी मन की आस
आस बन जाती
दिल का एक अरमान
दिन की शुरुवात होती
लेकर तेरा नाम
तेरा नाम जप कर
दिल हो जाए मालामाल
तेरी किरपा से
खुल जाए स्वर्ग के दरबार
हर दरबार की चादर में
जड़े हुए है हीरे मोती
जिसकी चमक से
मिल जाती मन को मुक्ति
मन की मुक्ति पाकर
मिल जाए साईं का आशीष
आत्मा तृप्त हो जावे
मिल जावे दिल को आराम
दिल का आराम पाकर
धन्य हो जावे जीवन
जिसकी करूणा कथा को पढ़कर
दिल हो जावे बेकरार
बेकरार दिल एक ही गाथा गावे
जय साईंराम, जय-जय साईंराम
( विशेष आभार : साईं प्रिया )
Thursday, 27 October 2011
अक्सर, बाबा जी रातों में मुझे हंसाते हैं
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
ॐ साईं राम
कभी कभी बाबा जी मुझे सारी रात जगाते हैं
जागते हुए मुझे वे कईं ख्वाब दिखाते हैं
खवाबों में ही फिर बाबा मुझे उलझाते हैं
परीक्षा लेने को मेरी, प्रलोभन दे कर ललचाते हैं
दिल और दिमाग, मुझे दो-धारी तलवार पर चलाते हैं
तब, मेरे खूब उलझ जाने पर बाबा मंद-मंद मुस्कराते हैं
जाने कैसी कैसी लीला करते हैं और दिखाते हैं
अक्सर, बाबा जी रातों में मुझे हंसाते हैं
जागते हुए मुझे वे कईं ख्वाब दिखाते हैं
खवाबों में ही फिर बाबा मुझे उलझाते हैं
परीक्षा लेने को मेरी, प्रलोभन दे कर ललचाते हैं
दिल और दिमाग, मुझे दो-धारी तलवार पर चलाते हैं
तब, मेरे खूब उलझ जाने पर बाबा मंद-मंद मुस्कराते हैं
जाने कैसी कैसी लीला करते हैं और दिखाते हैं
अक्सर, बाबा जी रातों में मुझे हंसाते हैं
हजारों फूल लगते हैं एक माला बनाने के लिए,
हजारों दीप लगते हैं एक आरती सजाने के लिए,
मगर एक "सद्गुरु-साईनाथ" काफी हैं,
ज़िन्दगी को जन्नत बनाने के लिए"
हजारों दीप लगते हैं एक आरती सजाने के लिए,
मगर एक "सद्गुरु-साईनाथ" काफी हैं,
ज़िन्दगी को जन्नत बनाने के लिए"
गुरूवार का, मेरे बाबा का दिन आया...
मन में फिर, एक नयी आस ले कर आया...
सच्चे मन से जिस ने बाबा को भी ध्याया....
उसी ने मेरे बाबा को पाया.....
श्री साई सच्चरित्र - अध्याय 29
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
अध्याय 29
मद्रासी भजनी मेला, तेंडुलकर (पिता व पुत्र), डाँक्टर कैप्टन हाटे और वामन नार्वेकर आदि की कथाएँ ।
______________________________________
मद्रासी भजनी मेला
लगभग सन् 1916 में एक
मद्रासी भजन मंडली पवित्र काशी की तीर्थयात्रा पर निकली । उस मंडली में एक
पुरुष, उनकी स्त्री, पुत्री और साली थी । अभाग्यवश, उनके नाम यहाँ नहीं
दिये जा रहे है । मार्ग में कहीं उनको सुनने में आया कि अहमदनगर के
कोपरगाँव तालुका के शिरडी ग्राम में श्री साईबाबा नाम के एक महान् सन्त
रहते है, जो बहुत दयालु और पहुँचे हुए है । वे उदार हृदय और अहेतुक
कृपासिन्धु है । वे प्रतिदिन अपने भक्तों को रुपया बाँटा करते है । यदि कोई
कलाकार वहाँ जाकर अपनी कला का प्रदर्शन करता है तो उसे भी पुरस्कार मिलता
है । प्रतिदिन दक्षिणा में बाबा के पास बहुत रुपये इकट्ठे हो जाया करते थे ।
इन रुपयों में से वे नित्य एक रुपया भक्त कोण्डाजी की तीन वर्षीय कन्या
अमनी को, किसी को दो रुपये से पाँच रुपये तक, छः रुपये अमनी की माली को और
दस से बीस रुपये तक और कभी-कभी पचास रुपये भी अपनी इच्छानुसार अन्य भक्तों
को भी दिया करते थे । यह सुनकर मंडली शिरडी आकर रुकी । मंडली बहुत सुन्दर
भजन और गायन किया करती थी, परन्तु उनका भीतरी ध्येय तो द्रव्योपार्जन ही था
। मंडली में तीन व्यक्ति तो बड़े ही लालची थे । केवल प्रधान स्त्री का ही
स्वभाव इन लोगों से सर्वथा भिन्न था । उसके हृदय में बाबा के प्रति श्रद्घा
और विश्वास देखकर बाबा प्रसन्न हो गये । फिर क्या था? बाबा ने उसे उसके
इष्ट के रुप में दर्शन दिये और केवल उसे ही बाबा सीतानाथ के रुप में दिखलाई
दिये, जब कि अन्य उपस्थित लोगों को सदैव की भाँति ही । अपने प्रिय इष्ट का
दर्शन पाकर वह द्रवित हो गई तथा उसका कंठ रुँध गया और आँखों से अश्रुधारा
बहने लगी । तभी प्रेमोन्मत हो वह ताली बजाने लगी । उसको इस प्रकार आनन्दित
देख लोगों को कौतूहल तो होने लगा, परन्तु कारण किसी को भी ज्ञात न हो रहा
था । दोपहर के पश्चात उसने वह भेद अपने पति से प्रगट किया । बाबा के
श्रीरामस्वरुप में उसे कैसे दर्शन हुए इत्यादि उसने सब बताया । पति ने सोचा
कि मेरी स्त्री बहुत भोली और भावुक है, अतः इसे राम का दर्शन होना एक
मानसिक विकार के अतिरिक्त कुछ नहीं है । उसने ऐसा कहकर उसकी उपेक्षा कर दी
कि कहीं यह भी संभव हो सकता है कि केवल तुम्हें ही बाबा राम के रुप में
दिखे ओर अन्य लोगों को सदैव की भाँति ही । स्त्री ने कोई प्रतिवाद न किया,
क्योंकि उसे राम के दर्शन जिस प्रकार उस समय हुए थे, वैसे ही अब भी हो रहे
थे । उसका मन शान्त, स्थिर और संतृप्त हो चुका था ।
आश्चर्यजनक दर्शन
इसी प्रकार दिन बीतते गये ।
एक दिन रात्रि में उसके पति को एक विचित्र स्वप्न आया । उसने देखा कि एक
बड़े शहर में पुलिस ने गिरफ्तार कर डोरी से बाँधकर उसे कारावास में डाल
दिया है । तत्पश्चात् ही उसने देखा कि बाबा शान्त मुद्रा में सींकचों के
बाहर उसके समीप खड़े है । उन्हें अपने समीप खड़े देखकर वह गिड़गिड़ा कर
कहने लगा कि "आपकी कीर्ति सुनकर ही मैं आपके श्रीचरणों में आया हूँ । फिर
आपके इतने निकट होते हुए भी मेरे ऊपर यह विपत्ति क्यों आई?"
तब वे बोले कि "तुम्हें अपने
बुरे कर्मों का फल अवश्य भुगतना चाहिये ।" वह पुनः बोला कि, "इस जीवन में
मुझे अपने ऐसे कर्म की स्मृति नही, जिसके कारण मुझे ये दुर्दिन देखने का
अवसर मिला ।" बाबा ने कहा कि यदि इस जन्म में नहीं तो गत जन्म में अवश्य
कोई बुरा कर्म किया होगा।" तब वह कहने लगा कि, "मुझे तो अपने गत जन्म की
कोई स्मृति नहीं, परन्तु यदि एक बार मान भी लूँ कि कोई बुरा कर्म हो भी गया
होगा तो आपके यहाँ होते हुए तो उसे भस्म हो जाना चाहिये, जिस प्रकार सूखी
घास अग्नि द्वारा शीघ्र भस्म हो जाती है ।" बाबा ने पूछा, "क्या तुम्हारा
सचमुच ऐसा दृढ़ विश्वास है?" उसने कहा, – "हाँ ।"
बाबा ने उससे अपनी आँखें
बन्द करने को कहा और जब उसने आँखें बन्द की, उसे किसी भारी वस्तु के गिरने
की आहट सुनाई दी । आँखें खोलने पर उसने अपने को कारावास से मुक्त पाया ।
पुलिस वाला नीचे गिरा पड़ा है तथा उसके शरीर से रक्त प्रवाहित हो रहा है,
यह देखकर वह अत्यन्त भयभीत दृष्टि से बाबा की ओर देखने लगा । तब बाबा बोले
कि "बच्चू! अब तुम्हारी अच्छी तरह खबर ली जायेगी । पुलिस अधिकारी अभी
आएँगे और तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे ।" तब वह गिड़गिड़ा कर कहने लगा कि
आपके अतिरिक्त मेरी रक्षा और कौन कर सकता है? मुझे तो एकमात्र आपका ही
सहारा है । भगवान् ! मुझे किसी प्रकार बचा लीजिये ।"
तब बाबा ने फिर उससे आँखें
बन्द करने को कहा । आँखे खोलने पर उसने देखा कि वह पूर्णतः मुक्त होकर
सींकचों के बाहर खड़ा है और बाबा भी उसके समीप ही खड़े है । तब वह बाबा के
श्रीचरणों पर गिर पड़ा ।
बाबा ने पूछा कि, "मुझे बताओ
तो, तुम्हारे इस नमस्कार और पिछले नमस्कारों में किसी प्रकार की भिन्नता
है या नहीं? इसका उत्तर अच्छी तरह सोच कर दो ।"
वह बोला कि, "आकाश और पाताल
में जो अन्तर है, वही अंतर मेरे पहले और इस नमस्कार में है । मेरे पूर्व
नमस्कार तो केवल धन-प्राप्ति की आशा से ही थे, परन्तु यह नमस्कार मैंने
आपको ईश्वर जानकर ही किया है । पहले मेरी धारणा ऐसी थी कि यवन होने के नाते
आप हिन्दुओं का धर्म भ्रष्ट कर रहे है ।"
बाबा ने पूछा कि, "क्या
तुम्हारा यवन पीरों में विश्वास नहीं?" प्रत्युत्तर में उसने कहा – "जी
नहीं ।" तब वे फिर पुछने लगे कि "क्या तुम्हारे घर में एक पंजा नही?" क्या
तुम ताबूत की पूजा नहीं करते ?" तुम्हारे घर में अभी भी एक काडबीबी नामक
देवी है, जिसके सामने तुम विवाह तथा अन्य धार्मिक अवसरों पर कृपा की भीख
माँगा करते हो ।"
अन्त में जब उसने स्वीकार कर
लिया तो वे बोले कि "इससे अधिक अब तुम्हे क्या प्रमाण चाहिये?" तब उनके मन
में अपने गुरु श्रीरामदास के दर्शनों की इच्छा हुई । बाबा ने ज्यों ही
उससे पीछे घूमने को कहा तो उसने देखा कि श्रीरामदास स्वामी उसके सामने खड़े
है और जैसे ही वह उनके चरणों पर गिरने को तत्पर हुआ, वे तुन्त अदृश्य हो
गये ।
तब वह बाबा से कहने लगा कि, "आप तो वृद्ध प्रतीत होते है । क्या आपको अपनी आयु विदित है?"
बाबा ने पूछा कि, "तुम क्या
कहते हो कि मैं बूढ़ा हूँ? थोड़ी दूर मेरे साथ दौड़कर तो देखो ।" ऐसा कहकर
बाबा दौड़ने लगे और वह भी उनके पीछे-पीछे दौड़ने लगा । दौड़ने से पैरों
द्वारा जो धूल उड़ी, उसमें बाबा लुप्त हो गये और तभी उसकी नींद भी खुल गई ।
जागृत होते ही वह
गम्भीरतापूर्वक इस स्वप्न पर विचार करने लगा । उसकी मानसिक प्रवृत्ति में
पूर्ण परिवर्तन हो गया । अब उसे बाबा की महानता विदित हो चुकी थी । उसकी
लोभी तथा शंकालु वृत्ति लुप्त हो गयी और हृदय में बाबा के चरणों के प्रति
सच्ची भक्ति उमड़ पड़ी । वह था तो एक स्वप्न मात्र ही, परन्तु उसमें जो
प्रश्नोत्तर थे, वे अधिक महत्वपूर्ण थे । दूसरे दिन जब सब लोग मस्जिद में
आरती के निमित्त एकत्रित हुए, तब बाबा ने उसे प्रसाद में लगभग दो रुपये की
मिठाई और दो रुपये नगद अपने पास से देकर आर्शीवाद दिया । उसे कुछ दिन और
रोककर उन्होंने आशीष देते हुए कहा कि, "अल्ला तुम्हें बहुत देगा और अब सब
अच्छा ही करेगा । बाबा से उसे अधिक द्रव्य की प्राप्ति तो न हुई, परन्तु
उनकी कृपा उसे अवश्य ही प्राप्त हो गई, जिससे उसका बहुत ही कल्याण हुआ ।
मार्ग में उनको यथेष्ठ द्रव्य प्राप्त हुआ और उनकी यात्रा बहुत ही सफल रही ।
उन्हें यात्रा में कोई कष्ट या असुविधा न हुई और वे अपने घर सकुशल पहुँच
गये । उन्हें बाबा के श्रीवचनों तथा आर्शीवाद और उनकी कृपा से प्राप्त उस
आनन्द की सदैव स्मृति बनी रही ।
इस कथा से विदित होता है कि बाबा किस प्रकार अपने भक्तों के समीप आकर उन्हें श्रेयस्कर मार्ग पर ले आते थे और आज भी ले आते है ।
तेंडुलकर कुटुम्ब
बम्बई के पास बान्द्रा में
एक तेंडुलकर कुटुम्ब रहता था, जो बाबा का परम भक्त था । श्रीयुत् रघुनाथराव
तेंडुलकर ने मराठी भाषा में 'श्रीसाईनाथ भजनमाला' नामक एक पुस्तक लिखी
है, जिसमें लगभग आठ सौ अभंग और पदों का समावेश तथा बाबा की लीलाओं का मधुर
वर्णन है । यह बाबा के भक्तों के पढ़ने योग्य पुस्तक है । उनका ज्येष्ठ
पुत्र बाबू डाँक्टरी परीक्षा में बैठने के लिये अनवरत अभ्यास कर रहा था ।
उसने कई ज्योतिषियों को अपनी जन्म-कुंडली दिखाई, परन्तु सभी ने बतलाया कि
इस वर्ष उसके ग्रह उत्तम नहीं है किन्तु अग्रिम वर्ष परीक्षा में बैठने से
उसे अवश्य सफलता प्राप्त होगी । इससे उसे बड़ी निराशा हुई और वह अशांत हो
गया । थोड़े दिनों के पश्चात् उसकी माँ शिरडी गई और उसने वहाँ बाबा के
दर्शन किये । अन्य बातों के साथ उसने अपने पुत्र की निराशा तथा अशान्ति की
बात भी बाबा से कही । उनके पुत्र को कुछ दिनों के पश्चात् ही परीक्षा में
बैठना था । बाबा कहने लगे कि "अपने पुत्र से कहो कि मुझ पर विश्वास रखे ।
सब भविष्यकथन तथा ज्योतिषियों द्वारा बनाई कुंडलियों को एक कोने में फेंक
दे और अपना अभ्यास-क्रम चालू रख शान्तचित्त से परीक्षा में बैठे । वह अवश्य
ही इस वर्ष उत्तीर्ण हो जायेगा । उससे कहना कि निराश होने की कोई बात नहीं
है ।" माँ ने घर आकर बाबा का सन्देश पुत्र को सुना दिया । उसने घोर
परिश्रम किया और परीक्षा में बैठ गया । सब परचों के जवाब बहुत अच्छे लिखे
थे । परन्तु फिर भी संशयग्रस्त होकर उसने सोचा कि सम्भव है कि उत्तीर्ण
होने योग्य अंक मुझे प्राप्त न हो सकें । इसीलिये उसने मौखिक परीक्षा में
बैठने का विचार त्याग दिया । परीक्षक तो उसके पीछे ही लगा था । उसने एक
विद्यार्थी द्वारा सूचना भेजी कि उसे लिखित परीक्षा में तो उत्तीर्ण होने
लायक अंक प्राप्त है । अब उसे मौखिक परीक्षा में अवश्य ही बैठना चाहिये ।
इस प्रकार प्रोत्साहन पाकर वह उसमें भी बैठ गया तथा दोनों परीक्षाओं में
उत्तीर्ण हो गया । उस वर्ष उसकी ग्रह-दशा विपरीत होते हुए भी बाबा की कृपा
से उसने सफलता पायी । यहाँ केवल इतनी ही बात ध्यान देने योग्य है कि कष्ट
और संशय की उत्पत्ति अन्त में दृढ़ विश्वास में परिणत हो जाती है । जैसी भी
हो, परीक्षा तो होती ही है, परन्तु यदि हम बाबा पर दृढ़ विश्वास और
श्रद्घा रखकर प्रयत्न करते रहे तो हमें सफलता अवश्य ही मिलेगी ।
इसी बालक के पिता रघुनाथराव
बम्बई की एक विदेशी व्यवसायी फर्म में नौकरी करते थे । वे बहुत वृदृ हो
चुके थे और अपना कार्य सुचारु रुप से नहीं कर सकते थे । इसलिये वे अब
छुट्टी लेकर विश्राम करना चाहते थे । छुट्टी लेने पर भी उनके शारीरिक
स्वास्थ्य में कोई विशेष परिवर्तन न हुआ । अब यह आवश्यक था कि सेवानिवृत्ति
की पूर्वकालिक छुट्टी ली जाय । एक वृदृ और विश्वासपात्र नौकर होने के नाते
प्रधान मैनेजर ने उन्हें पेन्शन देर सेवा-निवृत्त करने का निर्णय किया ।
पेन्शन कितनी दी जाय, यह प्रश्न विचाराधीन था । उन्हें 150 रुपये मासिक
वेतन मिलता था । इस हिसाब से पेन्शन हुई 75 रुपये, जो कि उनके कुटुम्ब के
निर्वाह हेतु अपर्याप्त थी । इसलिये वे बड़े चिन्तित थे । निर्णय होने के
पन्द्रह दिन पूर्व ही बाबा ने श्रीमती तेंडुलकर को स्वप्न में दर्शन देकर
कहा कि "मेरी इच्छा है कि पेन्शन 100 रुपये दी जाय । क्या तुम्हें इससे
सन्तोष होगा?"
श्रीमती तेंडुलकर ने कहा कि "बाबा मुझ दासी से आप क्या पूछते है हमें तो आपके श्री-चरणों में पूर्ण विश्वास है ।"
यद्यपि बाबा ने 100 रुपये
कहे थे, परन्तु उसे विशेष प्रकरण समझकर 10 रुपये अधिक अर्थात् 110 रुपये
पेन्शन निश्चित हुई । बाबा अपने भक्तों के लिये कितना अपरिमित स्नेह और
कितनी चिन्ता रखते थे ।
कैप्टन हाटे
बीकानेर के निवासी कैप्टन
हाटे बाबा के परम भक्त थे । एक बार स्वप्न में बाबा ने उनसे पूछा कि "क्या
तुम्हें मेरी विस्मृति हो गई?" श्री. हाटे ने उनके श्रीचरणों से लिपट कर
कहा कि "यदि बालक अपनी माँ को भूल जाये तो क्या वह जीवित रह सकता है?"
इतना कहकर श्री. हाटे शीघ्र
बगीचे में जाकर कुछ वलपपडी (सेम) तोड़ लाये और एक थाली में सीधा (सूखी
भिक्षा) तथा दक्षिणा रखकर बाबा को भेंट करने आये । उसी समय उनकी आँखें खुल
गई और उन्हें ऐसा भान हुआ कि यह तो एक स्वप्न था । फिर वे सब वस्तुएँ जो
उन्होंने स्वप्न में देखी थी, बाबा के पास शिरडी भेजने का निश्चय कर लिया ।
कुछ दिनों के पश्चात् वे ग्वालियर आये और वहाँ से अपने एक मित्र को बारह
रुपयों का मनीआर्डर भेजकर पत्र में लिख भेजा कि दो रुपयों में सीधा की
सामग्री और वलपपड़ी (सेम) आदि मोल लेकर तथा दस रुपये दक्षिणास्वरुप साथ में
रखकर मेरी ओर से बाबा को भेंट देना । उनके मित्र ने शिरडी आकर सब वस्तुएँ
तो संग्रह कर ली, परन्तु वलपपड़ी प्राप्त करने में उन्हें अत्यन्त कठिनाई
हुई । थोड़ी देर के पश्चात् ही उन्होंने एक स्त्री को सिर पर टोकरी रखे
सामने से आते देखा । उन्हें यह देखकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ कि उस टोकरी में
वलपपड़ी के अतिरिक्त कुछ भी न था । तब उन्होंने वलपपड़ी खरीद कर सब एकत्रित
वस्तुएँ लेकर मस्जिद में जाकर श्री. हाटे की ओर से बाबा को भेंट कर दी ।
दूसरे दिन श्री. निमोणकर ने उसका नैवेद्य (चावल और वलपपड़ी की सब्जी) तैयार
कर बाबा को भोजन कराया । सब लोगों को बड़ा विस्मय हुआ कि बाबा ने भोजन में
केवल वलपपड़ी ही खाई और अन्य वस्तुओं को स्पर्श तक न किया । उनके मित्र
द्वारा जब इस समाचार का पता कैप्टन हाटे को चला तो वे गदगद हो उठे और उनके
हर्ष का पारावार न रहा ।
पवित्र रुपया
एक अन्य अवसर पर कैप्टन हाटे
ने विचार किया कि बाबा के पवित्र करकमलों द्वारा स्पर्शित एक रुपया लाकर
अपने घर में अवश्य ही रखना चाहिये । अचानक ही उनकी भेंट अपने एक मित्र से
हो गई, जो शिरडी जा रहे थे । उनके हाथ ही श्री. हाटे ने एक रुपया भेज दिया ।
शिरडी पहुँचने पर बाबा को यथायोग्य प्रणाम करने के पश्चात् उसने दक्षिणा
भेंट की, जिसे उन्होंने तुरन्त ही अपनी जेब में रख लिया । तत्पश्चात् ही
उसने कैप्टन हाटे का रुपया भी अर्पण किया, जिसे वे हाथ में लेकर गौर से
निहारने लगे । उन्होंने उसका अंकित चित्र ऊपर की ओर कर अँगूठे पर रख
खनखनाया और अपने हाथ में लेकर देखने लगे । फिर वे उनके मित्र से कहने लगे
कि "उदी सहित यह रुपया अपने मित्र को लौटा देना । मुझे उनसे कुछ नहीं
चाहिये । उनसे कहना कि वे आनन्दपूर्वक रहें ।" मित्र ने ग्वालियर आकर वह
रुपया हाटे को देकर वहाँ जो कुछ हुआ था, वह सब उन्हें सुनाया, जिसे सुनकर
उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने अनुभव किया कि बाबा सदैव उत्तम
विचारों को प्रोत्साहित करते है । उनकी मनोकामना बाबा ने पूर्ण कर दी ।
श्री. वामन नार्वेकर
पाठकगण अब एक भिन्न कथा
श्रवण करें । एक महाशय, जिनका नाम वामन नार्वेकर था, उनकी साई-चरणों में
प्रगाढ़ प्रीति थी । एक बार वे एक ऐसी मुद्रा लाये, जिसके एक ओर राम,
लक्ष्मण और सीता तथा दूसरी ओर करबदृ मुद्रा में मारुति का चित्र अंकित था ।
उन्होंने यह मुद्रा बाबा को इस अभिप्राय से भेंट की कि वे इसे अपने कर
स्पर्श से पवित्र कर उदी सहित लौटा दे । परन्तु उन्होंने उसे तुरन्त अपनी
जेब में रख लिया । शामा ने वामनराव की इच्छा बताकर उनसे मुद्रा वापस करने
का अनुरोध किया । तब वे वामनराव के सामने ही कहने लगे कि "यह भला उनको
क्यों लौटाई जाये? इसे तो हमें अपने पास ही रखना चाहिये । यदि वे इसके बदले
में पच्चीस रुपया देना स्वीकार करें तो मैं इसे लौटा दूँगा ।" वह मुद्रा
वापस पाने के हेतु श्री. वामनराव ने पच्चीस रुपये एकत्रित कर उन्हें भेंट
किये । तब बाबा कहने लगे कि "इस मुद्रा का मूल्य तो पच्चीस रुपयों से कहीं
अधिक है । शामा तुम इसे अपने भंडार में जमा करके अपने देवालय में
प्रतिष्ठित कर इसका नित्य पूजन करो ।" किसी का साहस न था कि वे यह पूछ तो
ले कि उन्होंने ऐसी नीति क्यों अपनाई? यह तो केवल बाबा ही जाने कि किसके
लिये कब और क्या उपयुक्त है ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।
Wednesday, 26 October 2011
दीपक एक जलाना साथी
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
ॐ सांई राम
दीपक एक जलाना साथी
गुमसुम बैठ न जाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!!
दीपक एक जलाना साथी!!
सघन कालिमा जाल बिछाए
द्वार-देहरी नज़र न आए
घर की राह दिखाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी
द्वार-देहरी नज़र न आए
घर की राह दिखाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी
घर औ' बाहर लीप-पोतकर
कोने-आंतर झाड़-झूड़कर
मन का मैल छुड़ाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!!
कोने-आंतर झाड़-झूड़कर
मन का मैल छुड़ाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!!
एक हमारा, एक तुम्हारा
दीप जले, चमके चौबारा
मिल-जुल पर्व मनाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!!
दीप जले, चमके चौबारा
मिल-जुल पर्व मनाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!!
आ सकता है कोई झोंका
क्योंकि हवा को किसने रोका?
दोनों हाथ लगाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!
क्योंकि हवा को किसने रोका?
दोनों हाथ लगाना साथी!
दीपक एक जलाना साथी!
शुभ दीपावली
Tuesday, 25 October 2011
बाबा ने दिवाली पर पानी से दिए जलाए
प्रस्तुतकर्ता :-
साईं का हनी
बाबा ने दिवाली पर पानी से दिए जलाए
आश्चर्य ! पानी के दिए सारी रात जले | यह देख कर सभी दुकानदारों ने बाबा से क्षमा - याचना की एवं प्रतिदिन उन्हें स्वयं ही तेल देने लगे |"
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