ॐ सांई राम
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
मेरी औकात ही क्या है, जो कुछ मैं लिखूँ या मैं बोलूँ ,
ये साईं ने ही खुद ही हैं, उसने खुद लिखवाई है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
मेरी औकात ही क्या है, जो कुछ मैं लिखूँ या मैं बोलूँ ,
ये साईं ने ही खुद ही हैं, उसने खुद लिखवाई है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
सुना है मेने साईं जी, सभी के मन में बसते है,
वो दुःख में साथ रोते है, वो सुख में सँग हस्ते है |
ये हैं जज्बात सुख-दुःख की, ये हैं एहसास सुख दुःख की,
ये साईं ने ही भेजी है, ये मेरे में आई है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
वो दुःख में साथ रोते है, वो सुख में सँग हस्ते है |
ये हैं जज्बात सुख-दुःख की, ये हैं एहसास सुख दुःख की,
ये साईं ने ही भेजी है, ये मेरे में आई है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
सुना है कर्म करने को, प्रभु ज़रिया बनता है,
है करता वो ही सबकुछ है, पर सामने न आता है ||
है मुमकिन हाथ-जीभ मेरी, बनाई हो उसने ज़रिया,
ये लिखने वाला भी वो है, ये बोलने वाला साईं है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
है करता वो ही सबकुछ है, पर सामने न आता है ||
है मुमकिन हाथ-जीभ मेरी, बनाई हो उसने ज़रिया,
ये लिखने वाला भी वो है, ये बोलने वाला साईं है ||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
शुक्रगुजार हु साईं का, मुझे इस काबिल जो समझा,
मैं शुक्रगुजार हु आपका भी, जो इतनी इज्ज़त को बख्शा |
मैं गुनाहगार हु पहले, जो कोई गुस्ताखी हुई हो,
मैं जर्रा आफताब वो है, मैं 'दास' वो मेरा साईं है||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |
मैं शुक्रगुजार हु आपका भी, जो इतनी इज्ज़त को बख्शा |
मैं गुनाहगार हु पहले, जो कोई गुस्ताखी हुई हो,
मैं जर्रा आफताब वो है, मैं 'दास' वो मेरा साईं है||
ये पंक्तिया मेरी नहीं, जाने कहा से आई है,
ये मेरे साईं ने दी है, उसने खुद लिखवाई है |