सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च |
दधाना हस्त पद्माभ्याम कूष्मांडा शुभदास्तु मे ||
माँ दुर्गा जी के चौथे स्वरूप का नाम कूष्मांडा है | अपनी मंद हलकी हंसी द्व्रारा अंड अर्थात ब्रम्हांड को उत्पन करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से अभिहित किया गया है | जब सृष्टि का आस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार था, तब इन्ही देवी ने अपने हास्य से सृष्टि की रचना की थी | इस कारण यही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि-शक्ति हैं | इनसे पूर्व ब्रम्हांड का आस्तित्व था ही नहीं |
_____________________________________________सिंहासनगता नित्यं पदमाश्रितकरद्व्या |
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ||
माँ दुर्गा जी के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है | ये भगवान स्कन्द " कुमार कार्तिकेय " नाम से भी जाने जाते हैं | ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे | पुराणों में इन्हें कुमार और शक्तिधर कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है | इनका वाहन मयूर है | इन्ही भगवान स्कन्द की माता होने के कारण माँ दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है |