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Sunday, 22 September 2013

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी – साखियाँ - आज्ञा मानने की व्याख्या

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी – साखियाँ










आज्ञा मानने की व्याख्या

एक दिन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दीवान की ओर आ रहे थे कि रास्ते में एक सिक्ख दीवार पर लेप कर रहा था| दीवार के ऊपर लेप मारते समय उससे गुरु जी के पाजामे के ऊपर चिकड़ के छींटे पड़ गए|

गुरु जी ने सेवकों से कहा इस लिपाई करने वाले को जोर से थप्पड़ मारो| यह बात सुनकर कई सिक्खों ने जोर से थप्पड़ लगा दिए| बहुत थप्पड़ों की मार से वह गरीब सिक्ख बेहोश हो गया| उसकी यह दशा देखकर गुरु जी ने अपने सेवकों को कहा मैंने एक सिक्ख को थप्पड़ मारने की आज्ञा दी थी| परन्तु आप सब ने हो इस गरीब को एक एक थप्पड़ मारकर बेहोश कर दिया है|

सिक्खों ने कहा महाराज! हमने तो आपका हुक्म माना है| गुरु जी ने कहा यदि हमारा हुक्म मानते हो तो इस सिक्ख को कोई अपनी लड़की का रिश्ता दे दो| गुरु जी का यह वचन सुनकर सभ चुप हो गए| सबको चुप देखकर गुरु जी ने कहा, गुरु का हुक्म तब ही यथार्थ है यदि गुरु के सारे हुक्म माने जाए| परन्तु तुमसे सिक्खी दूर है| आसान हुक्म मान लेते हो तथा कठिन समय चुप धारण कर लेते हो|

गुरु जी के यह वाक्य सुनकर कंधार के एक सिक्ख अजायब सिंह ने अपनी लड़की का रिश्ता उस गरीब सिक्ख को दे दिया तथा गुरु की अटूट खुशी प्राप्त की|

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.