श्री गुरु गोबिंद सिंह जी दोनों समय दीवान लगाकर संगत को उपदेश देकर निहाल करते थे| इस समय दो युवक पठान भी दीवान में उपस्थित होकर श्रद्धा भाव से गुरु जी के वचन सुनते|
एक दिन शाम के समय जब गुरु जी अपने तम्बू में विश्राम कर रहे थे तो इनमें से एक पठान गुलखां ने समय ताड़ कर आप जी के पेट में कटार के दो वार कर दिए| गुरु जी ने शीघ्र ही अपने आप को सँभालते हुए उसका सिर एक वार से धड़ से अलग कर दिया| गुलखां का साथी रुस्तमखां जो तम्बू से बाहर खड़ा था उसे पहरेदारों ने मार दिया| इसके पश्चात सिंघो ने नादेड़ नगर से जराह को बुलाकर आपके जख्मों की मरहम पट्टी कराई| तथा रोज ही आप की आरोग्यता के लिए बाणी का पाठ व अरदास करने लगे|
जब गुरु जी के जख्म गहरे होने के कारण ठीक होने की आशा न रही तो सिहों ने बेबस होकर प्रार्थना की कि सच्चे पातशाह! हमें आप किसके पास छोड़ कर सच्च खंड की तैयारी कर रहे हो? आपके पीछे हमारी रखवाली कौन करेगा|
सिहों की प्रार्थना सुनकर गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश करवाया तथा पांच तैयार सिंह हजूरी में खड़े करके आपने तीन परिक्रमा करके पांच पैसे व नारियल श्री गुरु ग्रंथ साहिब के आगे रखकर माथा टेक कर वचन किया कि आज से देहधारी गुरु का सिलसिला समाप्त करके इस वाणी को आत्म प्रकाश करने वाली बड़े गुरु साहिब तथा प्रभु के भक्तों ने उच्चारण की हुई है, गुरु नानक साहिब जी की गुरु गद्दी पर स्थापित कर दिया| हमारे बाद यह गुरु युगों-युग अटल रहेगा| जिसने हमारे आत्मिक दर्शन करने हों, वह इस शब्द गुरु के दर्शन करे और जिसने हमारे पांच भूतक शरीर के दर्शन करने हों, तो वह हमारे तैयार बर तैयार खालसे के दर्शन करे|
संवत 1765 वाले दिन कार्तिक सुदी को आप जी ने खालसा पंथ को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्मुख करके यह वचन किया|
दोहरा ||
गुरु ग्रंथ जी मानिओ प्रगट गुरां की देह ||
जो प्रभ को मिलबो चहै खोज शबद में लेह ||
गुरु जी ने सिहों को बड़ा उदास देखा और प्रेम से वचन किया हे प्यारे सिहों! अकाल पुरख के नियम के अनुसार यह अस्थूल शरीर मिलते और बिछड़ते रहते हैं| इनका प्यार कभी नहीं निभता| श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बाणी हमारा ह्रदय है| रात दिन इनके मिलने से प्रभु के गुणों को अपने मन में जोड़ना| इनकी उपस्थिति में पांच सिंह जो हुक्म करेगें, उसे गुरु का हुक्म मानकर स्वीकार करना|
गुरबाणी का पाठ और शास्त्रों का अभ्यास करना| गुरु साहिब का इतिहास सुनना| पांच रहितवान सिहों को मेरा रूप समझना| जो श्रद्धा से पांच सिहों से अरदास कराएगा, उसके सभी मनोरथ पूरे होंगे|
सिहों को धैर्य उपदेश देकर जब आदी रात बीत गई तो आप जी ने पहले "जपुजी साहिब" फिर -
"हरि हरि जन दुइि ऐक हैं ||
बिब बिचार किछु नाहि ||
जल ते उपज तरंगि||
ज्यों जल ही बिखै समाहि ||"
आदि पांच दोहरे पढ़कर अरदास की और इसके पश्चात मखमल का कमर कस्सा करके किरपान, धनुष, तीर तथा हाथ में बंदूक पकड़कर सिख वीरो को हाथ जोड़कर "वाहिगुरू जी का खालसा || वाहिगुरू जी की फतहि ||" बुलाई| इस समय सिक्ख संगत सेजल नेत्रों से आपको नमस्कार करने लगी, तो उनको आपके शरीर की कोई छुह प्राप्त न हुई| मगर शरीर करके आपके दर्शन सबको हो रहे थे| इस कौतक को अनुभव करके सब संगत ने हाथ जोड़कर धरती पर शीश रखकर आप जी को नमस्कार किया|
अन्तिम समय आप जी ने अपने सिहों को कहा कि अब तुम सब अपने-अपने घर चले जाना और जथेदार संतोख सिंह को आज्ञा की कि तुम यहाँ रहकर हमारे स्थान की सेवा करनी| जो धन आ जाए उससे लंगर चलाना|
यह वचन करके आप जी कनात अन्दर चले गए और चिखा ऊपर चौकड़ा मारकर बैठ गए| इसके पश्चात चिखा को अग्नि प्रचंड करा कर ज्योति में ज्योत मिलाकर अनंत में लीन हो गए|