अध्याय 37
चावड़ी का समारोह
इस अध्याय में हम कुछ वेदान्तिक विषयों पर प्रारम्भिक दृष्टि से समालोचना कर चावड़ी के भव्य समारोह का वर्णन करेंगे ।
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प्रारम्भ
धन्य है श्रीसाई, जिनका जैसा
जीवन था, वैसी ही अवर्णनीय लीला विलास, और अदभुत क्रियाओं से पूर्ण नित्य
के कार्यक्रम भी । कभी तो वे समस्त सांसारिक कार्यों से अलिप्त रहकर
कर्मकाण्डी से प्रतीत होते और कभी ब्रह्मानंद और कभी आत्मज्ञान में निमग्न
रहा करते थे । कभी वे अनेक कार्य करते हुए भी उनसे असंबन्ध रहते थे ।
यद्यपि कभी-कभी वे पूर्ण निष्क्रिय प्रतीत होते, तथापि वे आलसी नहीं थे ।
प्रशान्त महासागर की तरह सदैव जागरुक रहकर भी वे गंभीर, प्रशान्त और स्थिर
दिखाई देते थे । उनकी प्रकृति का वर्णन तो सामर्थ्य से परे है ।
यह तो सर्व विदित है कि वे
बालब्रह्मचारी थे । वे सदैव पुरुषों को भ्राता तथा स्त्रियों को माता या
बहिन सदृश ही समझा करते थे । उनकी संगति द्वारा हमें जिस अनुपम ज्ञान की
उपलब्धि हुई है, उसकी विस्मृति मृत्युपर्यन्त न होने पाये, ऐसी उनके
श्रीचरणों में हमारी विनम्र प्रार्थना है । हम समस्त भूतों में ईश्वर का ही
दर्शन करें और नामस्मरण की रसानुभूति करते हुए हम उनके मोहविनाशक चरणों की
अनन्य भाव से सेवा करते रहे, यही हमारी आकांक्षा है ।
हेमाडपंत ने अपने दृष्टिकोण द्वारा आवश्यकतानुसार वेदान्त का विवरण देकर चावड़ी के समारोह का वर्णन निम्न प्रकार किया है -
चावड़ी का समारोह
बाबा के शयनागार का वर्णन
पहले ही हो चुका है । वे एक दिन मस्जिद में और दूसरे दिन चावड़ी में
विश्राम किया करते थे और यह कार्यक्रम उनकी महासमाधि पर्यन्त चालू रहा ।
भक्तों ने चावड़ी में नियमित रुप से उनका पूजन-अर्चन 10 दिसम्बर, सन् 1909
से आरम्भ कर दिया था ।
अब उनके चरणाम्बुजों का
ध्यान कर, हम चावड़ी के समारोह का वर्णन करेंगे । इतना मनमोहक दृश्य था वह
कि देखने वाले ठिठक-ठिठक कर रह जाते थे और अपनी सुध-बुध भूल यही आकांक्षा
करते रहते थे कि यह दृश्य कभी हमारी आँखों से ओझल न हो । जब चावड़ी में
विश्राम करने की उनकी नियमित रात्रि आती तो उस रात्रि को भक्तों का अपार
जन-समुदाय मस्जिद के सभा मंडप में एकत्रित होकर घण्टों तक भजन किया करता था
। उस मंडप के एक ओर सुसज्जित रथ रखा रहता था और दूसरी ओर तुलसी वृन्दावन
था । सारे रसिक जन सभा-मंडप मे ताल, चिपलिस, करताल, मृदंग, खंजरी और ढोल
आदि नाना प्रकार के वाद्य लेकर भजन करना आरम्भ कर देते थे । इन सभी
भजनानंदी भक्तों को चुम्बक की तरह आकर्षित करने वाले तो श्री साईबाबा ही थे
।
मस्जिद के आँगन को देखो तो
भक्त-गण बड़ी उमंगों से नाना प्रकार के मंगल-कार्य सम्पन्न करने में संलग्न
थे । कोई तोरण बाँधकर दीपक जला रहे थे, तो कोई पालकी और रथ का श्रृंगार कर
निशानादि हाथों में लिये हुए थे । कही-कही श्री साईबाबा की जयजयकार से
आकाशमंडल गुंजित हो रहा था । दीपों के प्रकाश से जगमगाती मस्जिद ऐसी प्रतीत
हो रही थी, मानो आज मंगलदायिनी दीपावली स्वयं शिरडी में आकर विराजित हो गई
हो । मस्जिद के बाहर दृष्टिपात किया तो द्वार पर श्री साईबाबा का पूर्ण
सुसज्जित घोड़ा श्यामसुंदर खड़ा था । श्री साईबाबा अपनी गादी पर शान्त
मुद्रा में विराजित थे कि इसी बीच भक्त-मंडलीसहित तात्या पटील ने आकर
उन्हें तैयार होने की सूचना देते हुए उठने में सहायता की । घनिष्ठ सम्बन्ध
होने के कारण तात्या पाटील उन्हें 'मामा' कहकर संबोधित किया करते थे । बाबा
सदैव की भाँति अपनी वही कफनी पहिन कर बगल में सटका दबाकर चिलम और तम्बाखू
संग लेकर धन्धे पर एक कपड़ा डालकर चलने को तैयार हो गये । तभी तात्या पाटील
ने उनके शीश पर एक सुनहरा जरी का शेला डाल दिया । इसके पश्चात् स्वयं बाबा
ने धूनी को प्रज्वलित रखने के लिये उसमें कुछ लकड़ियाँ डालकर तथा धूनी के
समीप के दीपक को बाँयें हाथ से बुझाकर चावड़ी को प्रस्थान कर दिया । अब
नाना प्रकार के वाद्य बजने आरम्भ हो गये और उनसे भाँति-भाँति के स्वर
निकलने लगे । सामने रंग-बिरंगी आतिशबाजी चलने लगी और नर-नारी भाँति-भाँति
के वाद्य बजाकर उनकी कीर्ति के भजन गाते हुए आगे-आगे चलने लगे । कोई
आनंद-विभोर हो नृत्य करने लगा तो कोई अनेक प्रकार के ध्वज और निशान लेकर
चलने लगे । जैसे ही बाबा ने मस्जिद की सीढ़ी पर अपने चरण रखे, वैसे ही
भालदार ने ललकार कर उनके प्रस्थान की सूचना दी । दोनों ओर से लोग चँवर लेकर
खड़े हो गये और उन पर पंखा झलने लगे । फिर पथ पर दूर तक बिछे हुए कपड़ो के
ऊपर से समारोह आगे बढ़ने लगा । तात्या पाटील उनका बायाँ तथा म्हालसापति
दायाँ हाथ पकड़ कर तथा बापूसाहेब जोग उनके पीछे छत्र लेकर चलने लगे । इनके
आगे-आगे पूर्ण सुसज्जित अश्व श्यामसुंदर चल रहा था और उनके पीछे भजन मंडली
तथा भक्तों का समूह वाद्यों की ध्वनि के संग हरि और साई नाम की ध्वनि,
जिससे आकाश गूँज उठता था, उच्चारित करते हुए चल रहा था । अब समारोह चावड़ी
के कोने पर पहुँचा और सारा जनसमुदाय अत्यन्त आनंदित तथा प्रफुल्लित दिखलाई
पड़ने लगा । जब कोने पर पहुँचकर बाबा चावड़ी के सामने खड़े हो गये, उस समय
उनके मुख-मंडल की दिव्यप्रभा बड़ी अनोखी प्रतीत होने लगी और ऐसा प्रतीत
होने लगा, मानो अरुणोदय के समय बाल रवि क्षितिज पर उदित हो रहा हो ।
उत्तराभिमुख होकर वे एक ऐसी मुद्रा में खड़े गये, जैसे कोई किसी के आगमन की
प्रतीक्षा कर रहा हो । वाद्य पूर्ववत ही बजते रहे और वे अपना दाहिना हाथ
थोड़ी देर ऊपर-नीचे उठाते रहे । वादक बड़े जोरों से वाद्य बजाने लगे और इसी
समय काकासाहेब दीक्षित गुलाल और फूल चाँदी की थाली में लेकर सामने आये और
बाबा के ऊपर पुष्प तथा गुलाल की वर्षा करने लगे । बाबा के मुखमंडल पर
रक्तिम आभा जगमगाने लगी और सब लोग तृप्त-हृदय हो कर उस रस-माधुरी का
आस्वादन करने लगे । इस मनमोहक दृश्य और अवसर का वर्णन शब्दों में करने में
लेखनी असमर्थ है । भाव-विभोर होकर भक्त म्हालसापति तो नृत्य करने लगे,
परन्तु बाबा की अभंग एकाग्रता देखकर सब भक्तों को महान् आश्चर्य होने लगा ।
एक हाथ में लालटेन लिये तात्या पाटील बाबा के बाँई ओर और आभूषण लिये
म्हालसापति दाहिनी ओर चले । देखो तो, कैसे सुन्दर समारोह की शोभा तथा भक्ति
का दर्शन हो रहा है । इस दृश्य की झाँकी पाने के लिये ही सहस्त्रों
नर-नारी, क्या अमीर और क्या फकीर, सभी वहाँ एकत्रित थे । अब बाबा मंद-मंद
गति से आगे बढ़ने लगे और उनके दोनों ओर भक्तगम भक्तिभाव सहित, संग-संग चले
लगे और चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण दिखाई पड़ने लगा । सम्पूर्ण वायुमंडल
भी खुशी से झूम उठा और इस प्रकार समारोह चावड़ी पहुँचा । अब वैसा दृश्य
भविष्य में कोई न देख सकेगा । अब तो केवल उसकी याद करके आँखों के सम्मुख उस
मनोरम अतीत की कल्पना से ही अपने हृदय की प्यास शान्त करनी पड़ेगी ।
चावड़ी की सजावट भी अति
उत्तम प्रकार से की गई थी । उत्तम चाँदनी, शीशे और भाँति-भाँति के
हाँड़ी-लालटेन (गैस बत्ती) लगे हुए थे । चावड़ी पहुँचने पर तात्या पाटील
आगे बढ़े और आसन बिछाकर तकिये के सहारे उन्होंने बाबा को बैठाया । फिर उनको
एक बढ़िया अँगरखा पहिनाया और भक्तों ने नाना प्रकार से उनकी पूजा की,
उन्हें स्वर्ण-मुकुट धारण कराया, तथा फूलों और जवाहरों की मालाएँ उनके गले
में पहनाई । फिर ललाट पर कस्तूरी का वैष्णवी तिलक तथा मध्य में बिन्दी
लगाकर दीर्घ काल तक उनकी ओर अपलक निहारते रहे । उनके सिर का कपड़ा बदल दिया
गया और उसे ऊपर ही उठाये रहे, क्योंकि सभी शंकित थे कि कहीं वे उसे फेक न
दे, परन्तु बाबा तो अन्तर्यामी थे और उन्होंने भक्तों को उनकी इच्छानुसार
ही पूजन करने दिया । इन आभूषणों से सुसज्जित होने के उपरान्त तो उनकी शोभा
अवर्णनीय थी ।
नानासाहेब निमोणकर ने
वृत्ताकार एक सुन्दर छत्र लगाया, जिसके केंद्र में एक छड़ी लगी हुई थी ।
बापूसाहेब जोग ने चाँदी की एक सुन्दर थाली में पादप्रक्षालन किया और अघ्र्य
देने के पश्चात् उत्तम विधि से उनका पूजन-अर्चन किया और उनके हाथों में
चन्दन लगाकर पान का बीड़ा दिया । उन्हें आसन पर बिठलाया गया । फिर तात्या
पाटील तथा अन्य सब भक्त-गण उनके श्री-चरणों पर अपने-अपने शीश झुकाकर प्रणाम
करने लगे । जब वे तकिये के सहारे बैठ गये, तब भक्तगण दोनों ओर से चँवर और
पंखे झलने लगे । शामा ने चिलम तैयार कर तात्या पाटील को दी । उन्होंने एक
फूँक लगाकर चिलम प्रज्वलित की और उसे बाबा को पीने को दिया । उनके चिलम पी
लेने के पश्चात फिर वह भगत म्हालसापति को तथा बाद में सब भक्तों को दी गई ।
धन्य है वह निर्जीव चिलम । कितना महान् तप है उसका, जिसने कुम्हार द्वारा
पहिले चक्र पर घुमाने, धूप में सुखाने, फिर अग्नि में तपाने जैसे अनेक
संस्कार पाये । तब कहीं उसे बाबा के कर-स्पर्श तथा चुम्बन का सौभाग्य
प्राप्त हुआ । जब यह सब कार्य समाप्त हो गया, तब भक्तगण ने बाबा को
फूलमालाओं से लाद दिया और सुगन्धित फूलों के गुलदस्ते उन्हें भेंट किये ।
बाबा तो वैराग्य के पूर्ण अवतार थे और वे उन हीरे-जवाहरात व फूलों के हारों
तथा इस प्रकार की सजधज में कब रुचि लेने वाले थे ? परन्तु भक्तों के सच्चे
प्रेमवश ही, उनके इच्छानुसार पूजन करने में उन्होंने कोई आपत्ति न की ।
अन्त में मांगलिक स्वर में वाद्य बजने लगे और बापूसाहेब जोग ने बाबा की
यथाविधि आरती की । आरती समाप्त होने पर भक्तों ने बाबा को प्रणाम किया और
उनकी आज्ञा लेकर सब एक-एक करके अपने घर लौटने लगे । तब तात्या पाटील ने
उन्हें चिनम पिलाकर गुलाब जल, इत्र इत्यादि लगाया और विदा लेते समय एक
गुलाब का पुष्प दिया । तभी बाबा प्रेमपूर्वक कहने लगे कि, "तात्या, मेरी
देखभाल भली भाँति करना । तुम्हें घर जाना है तो जाओ, परन्तु रात्रि में
कभी-कभी आकर मुझे देख भी जाना ।" तब स्वीकारात्मक उत्तर देकर तात्या पाटील
चावड़ी से अपने घर चले गये । फिर बाबा ने बहुत सी चादरें बिछाकर स्वयं अपना
बिस्तर लगाकर विश्राम किया ।
अब हम भी विश्राम करें और इस
अध्याय को समाप्त करते हुये हम पाठकों से प्रार्थना करते है कि वे
प्रतिदिन शयन के पूर्व श्री साईबाबा और चावड़ी समारोह का ध्यान अवश्य कर
लिया करें ।
।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।