ॐ साईं राम
वास्तव में श्री साई बाबा का प्राकट्य हुआ था जन्म नही। जन्म तो योनिज का होता है जबकि अयोनिज का प्राकट्य होता है। श्री साई बाबा का भी प्राकट्य हुआ था, ठीक वैसे ही जैसे नामदेव व कबीरदास का प्राकट्य हुआ था। वह भी बालरूप में।
नामदेव व कबीर जहाँ बालरूप में मिले थे वहीं श्री साई बाबा सोलह वर्ष की तरुणावस्था में शिरडी में नीम के पेड़ के नीचे भक्तों के कल्याण के लिए प्रकट हुए थे।
वे पूर्ण ब्रह्यज्ञानी थे। सांसारिक पदार्थो की उन्हें स्वप्न में भी कोई लालसा नहीं थी। माया को वे ठुकरा चुके थे तो मुक्ति उनके श्रीचरणों में लोटती थी।
शिरडी गाँव की एक वृद्धा स्त्री (नाना चोपदार की माँ ) ने श्री साई बाबा के बारे में वर्णन करते हुए बताया कि एक तरुण, स्वस्थ, फुर्तीला व अतिशय सुन्दर बालक नीम के पेड़ के नीचे उन्हें समाधिस्थ दिखाई दिया। उसे सर्दी-गर्मी और बरसात की जरा भी परवाह नहीं थी।
इतनी छोटी आयु में एक तरुण को तपस्या करते देख लोगों को बडा आश्चर्य हुआ। वह तरुण दिन में किसी से भी नही मिलता था। रात्री में भी वह निर्भीकता से भ्रमण करता था। लोग उस तरुण के बारे में आश्चर्यचकित होकर इधर-उधर लोगों से पुछते फिरते थे कि तरुण का आगमन कहाँ से हुआ है? उस तरुण का शारीरिक सौंदर्य ऐसा था कि जो कोई भी उसे एक बार देख लेता था, वह सम्मोहित सा हो जाता था।
वह तरुण हमेशा नीम के पेड़ के नीचे बैठा रहता था उसका आचरण किसी महात्मा से कम नही था। वह त्याग व वैराग्य की प्रतिमा ही था।
एक बार एक आश्चर्यजनक घटना घटी। घटना के अनुसार एक भक्त पर भगवान खंडोबा का संचरण हुआ। लोगों ने शंका-समाधान की द्रष्टि से खंडोबा से पूछा, “ हे देव! बतलाइए कि इस तरुण के माता-पिता कौन हैं और इसका आगमन कहाँ से हुआ है?”
इस पर भगवान खंडोबा ने एक कुदाली मंगवाकर निर्दिष्ट स्थान को खोदने के लिए कहा। जब वह स्थान पूरी तरह खोद दिया गया तो वहाँ पत्थर के नीचे कुछ ईटें मिली। पत्थर व ईटों को हटाया गया तो वहाँ एक दरवाजा दिखाई दिया, जहाँ चार दीपक जल रहे थे। उस दरवाजे का रास्ता एक गुफा में जाता था, जहाँ गाय के मुख के आकार की इमारत, लकड़ी के तख्ते, मालाएँ आदि दिखाई दीं।
भगवान खंडोबा बोले कि इस तरुण ने इस स्थान पर बारह वर्ष तक तप किया है। तब लोग उस तरुण से ही प्रश्न करने लगे। लेकिन उस तरुण ने बात को यह कहकर टाल दिया कि यह मेरे गुरुदेव कि पवित्र भूमि है, जो मेरे लिए पूजनीय है। तब फिर लोगो ने उस दरवाजे को पहले की तरह बंद कर दिया।
जिस तरह अश्वत्थ (पीपल) और औदुंबर (गूलर) के पेड़ों को पवित्र माना जाता है, उसी तरह नीम के पेड़ को भी श्री साई बाबा ने उतना ही पवित्र माना और उससे प्रेम किया।
जिस नीम के पेड़ के नीचे श्री साई बाबा तप किया करते थे, उस स्थान को व पेड़ को न केवल म्हालसापति बल्कि अन्य भक्तजन भी गुरु का समाधि-स्थल समझकर सदैव ही नमन किया करते थे।