ॐ साईं राम
दर्शन मेरे पाय वह, प्रेमी मेरा होय |
बिन मेरे संसार को, शून्य मानता होय ||
जप करता हो नाम का, सतत लगाए ध्यान |
केवल मेरी शरण ले, और करे गुणगान ||
शरणागत मेरा बने, छोड़े सकल जहान |
उसका ऋण मुझ पर चढ़े, मुक्ति करूँ प्रदान ||
भूख प्यास मम प्रेम हो, मेरे में मन लाय |
मुझको भोग लगाए बिन, भोजन न कर पाय ||
अहंकार को त्याग के, हृदय होय आसीन |
जो आवे मेरी शरण, मैं उसके आधीन ||
नदियाँ बन भक्तन चलें, मिलें समुन्दर जाय |
मैं सागर बन कर मिलूँ, मुझ में भक्त समाय ||