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शिर्डी से सीधा प्रसारण ,... "श्री साँई बाबा संस्थान, शिर्डी " ... के सौजन्य से... सीधे प्रसारण का समय ... प्रात: काल 4:00 बजे से रात्री 11:15 बजे तक ... सीधे प्रसारण का इस ब्लॉग पर प्रसारण केवल उन्ही साँई भक्तो को ध्यान में रख कर किया जा रहा है जो किसी कारणवश बाबा जी के दर्शन नहीं कर पाते है और वह भक्त उससे अछूता भी नहीं रहना चाहते,... हम इसे अपने ब्लॉग पर किसी व्यव्सायिक मकसद से प्रदर्शित नहीं कर रहे है। ...ॐ साँई राम जी...

Wednesday, 30 November 2011

साई बाबा का अमृतमय उपदेश

ॐ साईं राम
 
एक दिन दोपहर की आरती के बाद जब भक्त अपने-अपने घरों की ओर लौट रहे थे तब बाबा ने उन्हें मधुर वाणी में अमृतमय उपदेश देते हुए इस प्रकार कहा- “तुम कुछ भी, जो मर्जी हो करो, लेकिन यह याद रखो कि तुम जो कुछ भी करते हो, वह सब मुझे पता है। मैं ही सब जीवों का स्वामी हूँ और सबके ह्रदयों में वास करता हूँ । संसार के जितने जड़चेतन जीव हैं, वे मेरे ही उदर में समाए हुये हैं। समुचे ब्रह्मांड को नियंत्रित व संचालित करने वाला भी मैं ही हूँ। मैं ही संसार की उत्पत्ति करता हूँ, मैं ही इसका पालन-पोषण करता हूँ और मैं ही संहार करता हूँ। लेकिन जो मेरी भक्ति करते हैं, उन्हें कोई भी, किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकता। जो मेरी भक्ति से विमुख (वंचित) रहते हैं, वही माया के मकड-जाल में फँसते हैं।
 || अनंतकोटि ब्रह्माण्ड नायक राजाधिराज योगिराज श्री सच्चिदानंद  सद्गुरु श्री साईंनाथ महाराज की जय ||

  

Tuesday, 29 November 2011

अमृत वाणी

ॐ साईं राम

सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके न कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिर्डी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साईं की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध कब कहाँ हो जाये बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तू निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग-पग काँटे बोय के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा-मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्यायशील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी प्रारब्ध के बदले है सकता लेख
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत झांकना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डावांडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बिना प्रीत के तार हिले मिले न प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुणा का अवतार
घट घट की वो जानता महायोगी सुखकार



चरणों में अपने रख लो मुझे


ॐ साईं राम


बाबा जी दुःख में सब आपका सिमरन करते है,
सुख में करता न कोई,
क्यों दुनिया स्वार्थी है बाबा,
समझता क्यों नहीं कोई,
कुछ नहीं है हमारा साईं,
सब दें आपकी ही है,
सब रह जाता है यहीं बाबा,
आप हमेशा है सहाई,
सुख में आप न देखो भक्त को,
दुःख में दौड़े आते हो,
इतना प्रेम बाबा आप अपने भक्तो पे लुटाते हो,
सिखा दो बाबा आप सबको दुश्मन से भी प्रेम करना,
फिर न रहेगा कोई स्वार्थी,
और न मोह माया में फसेगा,
जब से शरण में आपकी आई हूँ,
दुनिया न मुझे अच्छी लगे,
मन करे बस बाबा पास आपके बैठी रहूँ,
घर द्वार न जाना पड़े,
ध्यान में आपके मगन रहूँ 
न उलझन कोई घेरे,
बाबा आप तो दया का भंडार हो,
कर दो दया अपनी बेटी पर,
चरणों में अपने रख लो मुझे,
भटकूँ न  मैं इधर-उधर

एक प्रार्थना
बाबा जी की बेटी 
आंचल साईं चावला



Monday, 28 November 2011

SUV WORTH Rs.13 LAKH DONATED

ॐ साईं राम

SUV WORTH Rs.13 LAKH DONATED TO SAI BABA @ SHIRDI  
28th Nov`2011

A Sai Devotee donated the first production of his company's fully-loaded top-end global SUV called "XUV 500"
worth Rs.13 Lakhs to Shri Sai Baba Sansthan Trust`Shirdi on Sunday, 27th November`2011.




बिना गुरु भगवान प्राप्ति संभव नही


ॐ साईं राम

शिर्डी मे साई की कफनी उतारकर और मुकुट चढाकर 'सदगुरू साई' को 'भगवान साई' बना दिया ।


प्रश्न :- गुरुवर्य !! श्री साईबाबा को सदगुरू माने या भगवान या दोनो ही ?
जबाब:- श्री साई चरित्र मे साईबाबा के अत्यंत करीबी म्हालसापती साईबाबा को हमेशा 'गुरुदेव' ही कहते थे क्योंकी साईबाबा ने म्हालसापती को ब्रम्हज्ञान-गुरुमंत्र-उपदेश दिया था । साईबाबा जब ब्रह्म कि तन्द्रा मे जाते तो वे भगवान हो जाते थे और वैसे ही बाते करते थे । ब्रह्म कि तन्द्रा मे ध्येय-ध्यान-ध्याता एकरूप हो जाता हैं । जब वे ब्रह्म कि तन्द्रा से बाहर आते थे तो कहते थे की 'मै आप जैसा साधारण मनुष्य हूँ । कभी कभी साईबाबा अपने गुरु परंपरा कि अपने गुरु कि बाते करते थे और बिना गुरु भगवान प्राप्ति संभव नही कहते । अब जो लोग गुरु परंपरा, सदगुरू पे विश्वास रखने वाले होते हैं वे साई को 'सदगुरू' मानते है और जो गुरु परंपरा , सदगुरू पर विश्वास नही रखते वो साई को 'भगवान' मानते हैं । परन्तु सदगुरू, भगवान से बडा होता हैं, क्योकी बगैर गुरु के भगवान प्राप्ति कतई संभव नही / ब्रह्म की तन्द्रा मे जाना संभव नही ।


Sunday, 27 November 2011

ध्यान की गहराई

ॐ साईं राम


बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद शिकागो के व्याख्यान के बाद अमेरिका में प्रसिद्ध हो चले थे। वहां वह घूम-घूमकर वेदांत दर्शन पर प्रवचन दिया करते थे। इस सिलसिले में उन्हें अमेरिका के उन अंदरूनी इलाकों में भी जाना होता था, जहां धर्मांध और संकीर्ण विचारधारा वाले लोग रहते थे। एक बार स्वामीजी को ऐसे ही एक कस्बे में व्याख्यान के लिए बुलाया गया था। एक खुले मैदान में लकड़ी के बक्सों को जमाकर मंच तैयार किया गया था।

स्वामीजी ने उस पर खड़े होकर वेदांत, योग और ध्यान पर व्याख्यान देना शुरू किया। बाहर से गुजरने वाले लोग भी उनकी बातें सुनने लगे जिनमें कुछ चरवाहे भी थे। थोड़ी देर में ही उनमें से कुछ ने बंदूकें निकालीं और स्वामीजी की ओर निशाना दागने लगे। कोई गोली उनके कान के पास से गुजरती तो कोई पांव के पास से। नीचे रखे कुछ बक्से तो छलनी हो गए थे। लेकिन इस सबके बावजूद स्वामीजी का व्याख्यान पहले की तरह धाराप्रवाह चलता रहा। न वह थमे न उनकी आवाज कांपी। अब चरवाहे भी वहां ठहर गए।

व्याख्यान के बाद वे स्वामीजी से बोले, 'आपके जैसा व्यक्ति हमने पहले नहीं देखा। हमारी गोलीबारी के बीच आपका भाषण ऐसे चलता रहा जैसे कुछ हुआ ही न हो। अगर हमारा निशाना चूकता तो आपकी जान आफत में पड़ सकती थी।' स्वामीजी ने उन्हें बताया कि जब वह व्याख्यान दे रहे थे, तब उन्हें बाहरी वातावरण का ज्ञान ही न था। उनका सारा चित्त वेदांत और ध्यान की उन गहराइयों में डूबा हुआ था। वे चरवाहे उनके प्रति नतमस्तक हो गए।
 
साईं सन्देश
 
संसार में जितने भी सजदे होते है,जिसके लिये सिर झुकाए जाते है,वह एक ही  है |
 
 

Saturday, 26 November 2011

शिर्डी को जाने वाले ले जा पयाम,


ॐ साईं राम
साईं के नाम, मेरा नमस्कार मेरा सलाम, मेरा नमस्कार मेरा सलाम,
शिर्डी को जाने वाले,
ये कहना क़ि अब के बरस ज़िन्दगी, जहाँ के झमेलों में उलझी रही,
तू है पास फिर भी है कुछ दूरियां, में कैसे कहूँ क्या है मजबूरियां,
तरसता हूँ में तेर दरबार को, कहा छोड़ दूँ आपने घर बार को
कहा छोड़ दूँ आपने घर बार को,
मगर ले रहा हूँ मगर ले रहा हूँ मगर ले रहा हूँ
तुम्हारा ही नाम हर सुबह शाम मेरा नमस्कार मेरा सलाम
मेरा नमस्कार मेरा सलाम
शिर्डी को जाने वाले ले जा पायाम,
साईं के नाम, मेरा नमस्कार मेरा सलाम, मेरा नमस्कार मेरा सलाम,
शिर्डी को जाने वाले,


ये कहना क़ि में भुला नहीं तेरा द्वार, अभिषेक क़ि थालियों क़ि कतार
तेरे नीम क़ि पत्तियों क़ि मिठास, जो खुद ही बढ़ाये जो रोगी क़ि प्यास,
तू है पीरो मुर्षित बहुत ही बड़ा, तेरी बंदगी में बहुत कुछ पढ़ा,
तेरी बंदगी में बहुत कुछ पड़ा,
में फैला रहा हू में फैला रहा हू में फैला रहा हू
तुम्हारा कलम हर सुबहो शाम मेरा नमस्कार मेरा सलाम,
मेरा नमस्कार मेरा सलाम,
शिर्डी को जाने वाले

ये कहना तेरे पास आऊंगा में, तेरे दर पे सिर को झुखाऊंगा में,
किसी एक कारण नहीं आ सका, यदि तेरा दर्शन नहीं पा सका,
मेरे दिल में शिर्डी बना दीजियो, मेरे दिल में शिर्डी बना दीजियो,
इससे मूर्ति से सजा दीजियो, इससे मूर्ति से सजा दीजियो,
ये कर दीजियो यह कर दीजियो, ये कर दीजियो, ये कर दिजियों,
मेरा चोट्टा सा काम, हर सुभाह शाम मेरा नमस्कार मेरा सलाम,
मेरा नमस्कार मेरा सलाम,

शिर्डी को जाने वाले ले जा पयाम,
साईं के नाम, मेरा नमस्कार मेरा सलाम, मेरा नमस्कार मेरा सलाम!
एक पैग़ाम मेरे साईं के नाम
साईं की पुत्री 
आँचल साईं चावला


Friday, 25 November 2011

चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे

ॐ साईं राम

चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे
तुझे दोनों जहां का सुख चैन मिलेगा
चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे

कभी दिन उजियारा कभी रैन अंधेरी
कभी मन हरियाली कभी झोली खाली
वो सब कुछ जाने कब क्या देना है
हर पग पे करेगा तेरी रखवाली
तू पकड़ के रखियो विश्वास की डोरी
वो जहां मिला था फिर वहीं मिलेगा
चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे
तुझे दोनों जहां का सुख चैन मिलेगा

स्वीकार किया है हमें सांई ने जब से
ख़ुद को पहचाना जग को पहचाना
मुश्किल से मिली है बाबा कि चौखट
मुश्किल से मिला है मुझे एक ठिकाना
लगता है हमे हम किस्मत के धनी हैं
अब एसी जगह से कहो कौन हिलेगा
चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे
तुझे दोनों जहां का सुख चैन मिलेगा

हो सकता है इक दिन तुम्हें नींद आ जाये
तुम रोम-रोम को ज़रा बोल के रखना
बंद भी हो जाएं जग के दरवाज़े
तुम मन की खिड़की सदा खोल के रखना
किस रात में सांई कब चुपके-चुपके
अपने भक्तों से ख़ुद आन मिलेगा
चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे

तुझे दोनों जहां का सुख चैन मिलेगा
फिर पतझड़ में भी तेरी बगिया में
सांई रहमत का हर फूल खिलेगा
चिन्ता से भरा दिल सांई को देदे
तुझे दोनों जहां का सुख चैन मिलेगा
विशेष आभार : श्री साईं जी की पुत्री
आँचल साईं चावला

Thursday, 24 November 2011

कब सूखेंगी मेरी ये आंखे

ॐ साईं राम

बाबा आपकी याद बहुत आती है,


और मेरी आंखे भिगा जाती है,


लगता नहीं दिल बाबा आपके बिना,


और कितनी लम्बी जुदाई है,


कब आओगे बाबा मुझसे मिलने तुम,


कब सूखेंगी मेरी ये आंखे,


शिर्डी जब जब जाती हूँ हर पल पास तुमको पाती हूँ,


वापस घर जब आती हूँ ख़ुद को तनहा पाती हूँ,


बाबा करदो तुम कुछ ऐसा,


पास तुम्हारे हर पल रहूँ,


और सेवा तुम्हारी ज़िन्दगी भर करूँ

विशेष आभार :  बाबा की पुत्री
आँचल साईं चावला

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 33

 उदी की महिमा, बिच्छू का डंक, प्लेग की गाँठ, जामनेर का चमत्कार, नारायण राव, बाला बुवा सुतार, अप्पा साहेब कुलकर्णी, हरीभाऊ कर्णिक ।

पूर्व अध्याय में गुरु की महानता का दिग्दर्शन कराया गया है । अब इस अध्याय में उदी के माहात्म्य का वर्णन किया जायेगा ।
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प्रस्तावना
आओ, पहले हम सन्तों के चरणों में प्रणाम करें, जिनकी कृपादृष्टि मात्र से ही समस्त पापसमूह भस्म होकर हमारे आचरण के दोष नष्ट हो जायेंगे । उनसे वार्तालाप करना हमारे लिये शिक्षाप्रद और अति आनन्ददायक है । वे अपने मन में "यह मेरा और वह तुम्हारा" ऐसा कोई भेद नहीं रखते । इस प्रकार के भेदभाव की कल्पना उनके हृदय में कभी भी उत्पन्न नहीं होती । उनका ऋण इस जन्म में तो क्या, अनेक जन्मों में भी न चुकाया जा सकेगा ।

उदी (विभूति)
यह सर्वविदित है कि बाबा सबसे दक्षिणा लिया करते थे तथा उस धन राशि में से दान करने के पश्चात् जो कुछ भी शेष बचता, उससे वे ईधन मोल लेकर सदैव धूनी प्रज्वलित रखते थे । इसी धूनी की भस्म ही "उदी" कहलाती है । भक्तों के शिरडी से प्रस्थान करते समय यह भस्म मुक्तहस्त से उन सभी को वितरित कर दी जाती थी ।
इस उदी से बाबा हमें क्या शिक्षा देते है ? उदी वितरण कर बाबा हमें शिक्षा देते है कि इस अंगारे की तरह गोचर होने वाले ब्रह्मांड का प्रतिबिम्ब भस्म के ही समान है । हमारा तन भी ईधन सदृश ही है, अर्थात् पंचभूतादि से निर्मित है, जो कि सांसारिक भोगादि के उपरांत विनाश को प्राप्त होकर भस्म के रुप में परिणत हो जायेगा ।
भक्तों को इस बात की स्मृति दिलाने के हेतु ही कि अन्त में यह देह भस्म सदृश होने वाला है, बाबा उदी वितरण किया करते थे । बाबा इस उदी के द्वारा एक और भी शिक्षा प्रदान करते है कि इस संसार में ब्रह्म ही सत्य और जगत् मिथ्या है । इस संसार में वस्तुतः कोई किसी का पिता, पुत्र अथवा स्त्री नहीं हैं । हम जगत में अकेले ही आये है और अकेले ही जायेंगे । पूर्व में यह देखने में आ चुका है और अभी भी अनुभव किया जा रहा है कि इस उदी ने अनेक शारीरिक और मानसिक रोगियों को स्वास्थ्य प्रदान किया है । यथार्थ में बाबा तो भक्तों को दक्षिणा और उदी द्वारा सत्य और असत्य में विवेक तथा असत्य के त्याग का सिद्घान्त समझाना चाहते थे । इस उदी से वैराग्य और दक्षिणा से त्याग की शिक्षा मिलती है । इन दोनों के अभाव में इस मायारुपी भवसागर को पार करना कठिन है, इसलिये बाबा दूसरे के भोग स्वयं भोग कर दक्षिणा स्वीकार कर लिया करते थे । जब भक्तगण विदा लेते, तब वे प्रसाद के रुप में उदी देकर और कुछ उनके मस्तक पर लगाकर अपना वरद-हस्त उनके मस्तक पर रखते थे । जब बाबा प्रसन्न चित्त होते, तब वे प्रेमपूर्वक गीत गाया करते थे । ऐसा ही एक भजन उदी के सम्बन्ध में भी है । भजन के बोल है, "रमते राम आओ जो आओ जी, उदिया की गोनियाँ लाओजी ।" यह बाबा शुद्ध और मधुर स्वर में गाते थे ।
यह सब तो उदी के आध्यात्मिक प्रभाव के सम्बन्ध में हुआ, परन्तु उसमें भौतिक प्रभाव भी था, जिससे भक्तों को स्वास्थ्य समृद्घि, चिंतामुक्ति एवं अनेक सांसारिक लाभ प्राप्त हुए । इसलिये उदी हमें आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ पहुँचाती है । अब हम उदी की कथाएँ प्रारम्भ करते है ।

बिच्छू का डंक
नासिक के श्री. नारायण मोतीराम जानी बाबा के परम भक्त थे । वे बाबा के अन्य भक्त रामचंद्र वामन मोडक के अधीन काम करते थे । एक बार वे अपनी माता के साथ शिरडी गये तथा बाबा के दर्शन का लाभ उठाया । तब बाबा ने उनकी माँ से कहा कि, "अब तुम्हारे पुत्र को नौकरी छोड़कर स्वतंत्र व्यवसाय करना चाहिये ।" कुछ दिनों में बाबा के वचन सत्य निकले । नारायण जानी ने नौकरी छोड़कर एक उपाहार गृह 'आनंदाश्रम' चलाना प्रारम्भ कर दिया, जो अच्छी तरह चलने लगा । एक बार नारायण राव के एक मित्र को बिच्छू ने काट लिया, जिससे उसे असहनीय पीड़ा होने लगी । ऐसे प्रसंगों में उदी तो रामबाण प्रसिदृ ही है । काटने के स्थान पर केवल उसे लगा ही तो देना है । नारायण ने उदी खोजी, परन्तु कहीं न मिल सकी । उन्होंने बाबा के चित्र के समक्ष खड़े होकर उनसे सहायता की प्रार्थना की और उनका नाम लेते हुए, उनके चित्र के सम्मुख जलती हुई अगरबत्ती में से एक चुटकी भस्म बाबा की उदी मानकर बिच्छू के डंक मारने के स्थान पर लेप कर दिया । वहाँ से उनके हाथ हटाते ही पीड़ा तुरंत मिट गई और दोनों अति प्रसन्न होकर चले गये ।

प्लेग की गाँठ
एक समय एक भक्त बाँद्रा में था । उसे वहाँ पता चला कि उसकी लड़की, जो दूसरे स्थान पर है, प्लेगग्रस्त है और उसे गिल्टी निकल आई है । उनके पास उस समय उदी नहीं थी, इसलिये उन्होंने नाना चाँदोरकर के पास उदी भेजने के लिये सूचना भेजी । नानासाहेब ठाणे रेल्वे स्टेशन के समीप ही रास्ते में थे । जब उनके पास यह सूचना पहुँची, वे अपनी पत्नी सहित कल्याण जा रहे थे । उनके पास भी उस समय उदी नहीं थी । इसीलिये उन्होंने सड़क पर से कुछ धूल उठाई और श्री साईबाबा का ध्यान कर उनसे सहायता की प्रार्थना की तथा उस धूल को अपनी पत्नी के मस्तक पर लगा दिया । वह भक्त खड़े-खड़े यह सब नाटक देख रहा था । जब वह घर लौटा तो उसे जानकर अति हर्ष हुआ कि जिस समय से नानासाहेब ने ठाणे रेल्वे स्टेशन के पास बाबा से सहायता करने की प्रार्थना की, तभी से उनकी लड़की की स्थिति में पर्याप्त सुधार हो चला था, जो गत तीन दिनों से पीड़ित थी ।

जामनेर का विलक्षण चमत्कार
सन् 1904-05 में नानासाहेब चाँदोरकर खानदेश जिले के जामनेर में मामलतदार थे । जामनेर शिरडी से लगभग 100 मील से भी अधिक दूरी पर है । उनकी पुत्री मैनाताई गर्भावस्था में थी और प्रसव काल समीप ही था । उसकी स्थिति अति गम्भीर थी । 2-3 दिनों से उसे प्रसव-वेदना हो रही थी । नानासाहेब ने सभी संभव प्रयत्न किये, परन्तु वे सब व्यर्थ ही सिदृ हुए । तब उन्होंने बाबा का ध्यान किया और उनसे सहायता की प्रार्थना की । उस समय शिरडी में एक रामगीर बुवा, जिन्हें बाबा बापूगीर बुवा के नाम से पुकारते थे, अपने घर खानदेश को लौट रहे थे । बाबा ने उन्हें अपने समीप बुलाकर कहा कि तुम घर लौटते समय थोड़ी देर के लिये जामनेर में उतरकर यह उदी और आरती श्री. नानासाहेब को दे देना । रामगीर बुवा बोले कि, "मेरे पास केवल दो ही रुपये है, जो कठिनाई से जलगाँव तक के किराये को ही पर्याप्त होंगे । फिर ऐसी स्थिति में जलगाँव से और 30 मील आगे जाना मेरे लिए कैसे संभव होगा?" बाबा ने उत्तर दिया कि, "चिंता की कोई बात नहीं । तुम्हारी सब व्यवस्था हो जायेगी ।" तब बाबा ने शामा से माधव अडकर द्वारा रचित प्रसिदृ आरती की प्रतिलिपि कराई और उदी के साथ नानासाहेब के पास भेज दी । बाबा के वचनों पर विश्वास कर रामगीर बुवा ने शिरडी से प्रस्थान कर दिया और पौने तीन बजे रात्रि को जलगाँव पहुँचे । इस समय उनके पास केवल दो आने ही शेष थे, जिससे वे बड़ी दुविधा में थे । इतने में ही एक आवाज उनके कानों में पड़ी कि, "शिरडी से आये हुए बापूगीर बुवा कौन है?" उन्होंने आगे बढ़कर बतलाया कि, "मैं ही शिरडी से आ रहा हूँ और मेरा ही नाम बापूगीर बुवा है ।" उस चपरासी ने, जो कि अपने आपको नानासाहेब चाँदोरकर द्वारा भेजा हुआ बतला रहा था, उन्हें बाहर लाकर एक शानदार ताँगे में बिठाया, जिसमें दो सुन्दर घोड़ी जुते हुए थे । अब वे दोनों रवाना हो गये । ताँगा बहुत वेग से चल रहा था । प्रातःकाल वे एक नाले के समीप पहुँचे, जहाँ ताँगेवाले ने ताँगा रोककर घोड़ों को पानी पिलाया । इसी बीच चपरासी ने रामगीर बुवा से थोड़ा सा नाश्ता करने को कहा । उसकी दाढ़ी-मूछें तथा अन्य वेशभूषा से उसे मुसलमान समझकर उन्होंने जलपान करना अस्वीकार कर दिया । तब उस चपरासी ने कहा कि मैं गढ़वाल का क्षत्रिय वंशी हिन्दू हूँ । यह सब नाश्ता नानासाहेब ने आपके लिये ही भेजा है तथा इसमें आपको कोई आपत्ति और संदेह नहीं करना चाहिये । तब वे दोनों जलपान कर पुनः रवाना हुए और सूर्योदय काल में जामनेर पहुँच गये । रामगीर बुवा लघुशंका को गये और थोड़ी देर में जब वे लौटकर आये तो क्या देखते है कि वहाँ पर न तो ताँगा था, और न ताँगेवाला और न ही ताँगे के घोड़े । उनके मुख से एक शब्द भी न निकल रहा था । वे समीप ही कचहरी में पूछताछ करने गये और वहाँ उन्हें बतलाया कि इस समय मामलतदार घर पर ही है । वे नानासाहेब के घर गये और उन्हें बतलाया कि, "मैं शिरडी से बाबा की आरती और उदी लेकर आ रहा हूँ ।" उस समय मैनाताई की स्थिति बहुत ही गंभीर थी और सभी को उसके लिये बड़ी चिंता थी । नानासाहेब ने अपनी पत्नी को बुलाकर उदी को जल में मिलाकर अपनी लड़की को पिला देने और आरती करने को कहा । उन्होंने सोचा कि बाबा की सहायता बड़ी सामयिक है । थोड़ी देर में ही समाचार प्राप्त हुआ कि प्रसव कुशलतापूर्वक होकर समस्त पीड़ा दूर हो गई है । जब रामगीर बुवा ने नानासाहेब को चपरासी, ताँगा तथा जलपान आदि रेलवे स्टेशन पर भेजने के लिये धन्यवाद दिया तो नानासाहेब को यह सुनकर महान् आश्चर्य हुआ और वे कहने लगे कि मैने न तो कोई ताँगा या चपरासी ही भेजा था और न ही मुझे शिरडी से आपके पधारने की कोई पूर्वसूचना ही थी !
ठाणे के सेवानिवृत श्री. बी. व्ही. देव ने नानासाहेब चाँदोरकर के पुत्र बापूसाहेब चाँदोरकर और शिरडी के रामगीर बुवा से इस सम्बन्ध में बड़ी पूछताछ की और फिर संतुष्ट होकर श्री साईलीला पत्रिका, भाग 13 (नं 11,12,13) में गद्य और पद्य में एक सुन्दर रचना प्रकाशित की । भाई श्री. बी. व्ही. नरसिंह स्वामी ने भी (1) मैनाताई (भाग 5, पृष्ठ 14), (2) बापूसाहेब चाँदोरकर (भाग 20, पृष्ठ 50) और (3) रामगीर बुवा (भाग 27, पृष्ठ 83) के कथन लिये है, जो कि क्रमशः 1 जून 1936, 16 सितम्बर 1936 और दिसम्बर 1936 को छपे है और यह सब उन्होंने अपनी पुस्तक भक्तों के अनुभव भाग 3 में प्रकाशित किये है । निम्नलिखित प्रसंग रामगीर बुवा ने कथनानुसार उदधृत किया जाता है ।"एक दिन मुझे बाबा ने अपने समीप बुलाकर एक उदी की पुड़िया और एक आरती की प्रतिलिपि देकर आज्ञा दी कि जामनेर जाओ और यह आरती तथा उदी नानासाहेब को दे दो । मैंने बाबा को बताया कि मेरे पास केवल दो रुपये ही है, जो कि कोपरगाँब से जलगाँव जाने और फिर वहाँ से बैलगाड़ी द्वारा जामनेर जाने के लिये अपर्याप्त है । बाबा ने कहा "अल्ला देगा ।" शुक्रवार का दिन था । मैं शीघ्र ही रवाना हो गया । मैं मनमाड 6-30 बजे सायंकाल और जलगाँव रात्रि को 2 बजकर 45 मिनट पर पहुँचा । उस समय प्लेग निवारक आदेश जारी थे, जिससे मुझे असुविधा हुई और मैं सोच रहा था कि कैसे जामनेर पहुँचूँ । रात्रि को 3 बजे एक चपरासी आया, जो पैर में बूट पहिने था, सिर पर पगड़ी बाँधे व अन्य पोशाक भी पहने था । उसने मुझे ताँगे में बिठा लिया और ताँगा चल पड़ा । मैं उस समय भयभीत-सा हो रहा था । मार्ग में भगूर के समीप मैंने जलपान किया । जब प्रातःकाल जामनेर पहुँचा, तब उसी समय मुझे लघुशंका करने की इच्छा हुई । जब मैं लौटकर आया, तब देखा कि वहाँ कुछ भी नहीं है । ताँगा और ताँगेवाला अदृश्य है ।" 

नारायण राव
भक्त नारायण राव को बाबा के दर्शनों का तीन बार सौभाग्य प्राप्त हुआ । सन् 1918 में बाबा के महासमाधि लेने के तीन वर्ष पश्चात् वे शिरडी जाना चाहते थे, परन्तु किसी कारणवश उनका जाना न हो सका । बाबा के समाधिस्थ होने के एक वर्ष के भीतर ही वे रुग्ण हो गये । किसी भी उपचार से उन्हें लाभ न हुआ । तब उन्होंने आठों प्रहर बाबा का ध्यान करना प्रारंभ कर दिया । एक रात को उन्हें स्वप्न हुआ । बाबा एक गुफा में से उन्हें आते हुए दिखाई पड़े और सांत्वना देकर कहने लगे कि, "घबराओ नहीं, तुम्हें कल से आराम हो जायेगा और एक सप्ताह में ही चलने-फिरने लगोगे ।" ठीक उतने ही समय में नारायणराव स्वस्थ हो गये । अब यह प्रश्न विचारणीय है कि क्या बाबा देहधारी होने से जीवित कहलाते थे और क्या उन्होंने देह त्याग दी, इसलिये मृत हो गये ? नहीं । बाबा अमर है, क्योंकि वे जीवन और मृत्यु से परे है । एक बार भी अनन्य भाव से जो उनकी शरण में जाता है, वह कहीं भी हो, उसे वे सहायता पहुँचाते है । वे तो सदा हमारे साथ ही खड़े है और चाहे जैसा रुप लेकर भक्त के समक्ष प्रकट होकर उसकी इच्छा पूर्ण कर देते है ।

अप्पासाहेब कुलकर्णी
सन् 1917 में अप्पासाहेब कुलकर्णी के शुभ दिन आये । उनका ठाणे को स्थानानंतरण हो गया । उन्होंने बालासाहेब भाटे द्वारा प्राप्त बाबा के चित्र का पूजन करना आरम्भ कर दिया । उन्होंने सच्चे हृदय से पूजा की । वे हर दिन फूल, चन्दन और नैवेद्य बाबा को अर्पित करते और उनके दर्शनों की बड़ी अभिलाषा रखते थे । इस सम्बन्ध में इतना तो कहा जा सकता है कि उत्सुकतापूर्वक बाबा के चित्र को देखना ही बाबा के प्रत्यक्ष दर्शन के सदृश है । नीचे लिखी कथा से यह बात स्पष्ट हो जाती है ।

बाला बुवा सुतार
बम्बई मे एक बालाबुवा नाम के संत थे, जो कि अपनी भक्ति, भजन और आचरण के कारण 'आधुनिक तुकाराम' के नाम से विख्यात थे । सन् 1917 में वे शिरडी आये । जब उन्होंने बाबा को प्रणाम किया तो बाबा कहने लगे कि मैं तो इन्हें चार वर्षों से जानता हूँ । बालाबुवा को आश्चर्य हुआ और उन्होंने सोचा कि मैं तो प्रथम बार ही शिरडी आया हूँ, फिर यह कैसे संभव हो सकता है? गहन चिन्तन करने पर उन्हें स्मरण हुआ कि चार वर्ष पूर्व उन्होंने बम्बई में बाबा के चित्र को नमस्कार किया था । उन्हें बाबा के शब्दों की यथार्थता का बोध हो गया और वे मन ही मन कहने लगे कि संत कितने सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी होते है तथा अपने भक्तों के प्रति उनके हृदय में कितनी दया होती है । मैंने तो केवल उनके चित्र को ही नमस्कार किया था तो भी यह घटना उनको ज्ञात हो गई । इसलिए उन्होंने मुझे इस बात का अनुभव कराया है कि उनके चित्र को देखना ही उनके दर्शन करने के सदृश है ।
अब हम अप्पासाहेब की कथा पर आते है । जब वे ठाणे में थे तो उन्हें भिवंडी दौरे पर जाना पड़ा, जहां से उन्हें एक सप्ताह में लौटना संभव न था । उनकी अनुपस्थिति में तीसरे दिन उनके घर में निम्नलिखित विचित्र घटना हुई । दोपहर के समय अप्पासाहेब के गृह पर एक फकीर आया, जिसकी आकृति बाबा के चित्र से ही मिलती-जुलती थी । श्रीमती कुलकर्णी तथा उनके बच्चों ने उनसे पूछा कि आप शिरडी के श्री साईबाबा तो नहीं है? इस पर उत्तर मिला कि वे तो साईबाबा के आज्ञाकारी सेवक है और उनकी आज्ञा से ही आप लोगों की कुशल-क्षेम पूछने यहाँ आये है । फकीर ने दक्षिणा माँगी तो श्रीमती कुलकर्णी ने उन्हें एक रुपया भेंट किया । तब फकीर ने उन्हें उदी की एक पुड़िया देते हुए कहा कि इसे अपने पूजन में चित्र के साथ रखो । इतना कहकर वह वहाँ से चला गया । अब बाबा की अदभुत लीला सुनिये ।
भिवंडी में अप्पासाहेब का घोड़ा बीमार हो गया, जिससे वे दौरे पर आगे न जा सके । तब उसी शाम को वे घर लौट आये । घर आने पर उन्हें पत्नी के द्वारा फकीर के आगमन का समाचार प्राप्त हुआ । उन्हें मन में थोड़ी अशांति-सी हुई कि मैं फकीर के दर्शनों से वंचित रह गया तथा पत्नी द्वारा केवल एक रुपया दक्षिणा देना उन्हें अच्छा न लगा । वे कहने लगे कि यदि मैं उपस्थित होता तो 10 रुपये से कम कभी न देता । तब वे फिर भूखे ही फकीर की खोज में निकल पड़े । उन्होंने मस्जिद एवं अन्य कई स्थानों पर खोज की, परन्तु उनकी खोज व्यर्थ ही सिदृ हुई । पाठक अध्याय 32 में कहे गये बाबा के वचनों का स्मरण करें कि भूखे पेट ईश्वर की खोज नहीं करनी चाहिये । अप्पासाहेब को शिक्षा मिल गई । वे भोजन के उपरांत जब अपने मित्र श्री. चित्रे के साथ घूमने को निकले, तब थोड़ी ही दूर जाने पर उन्हें सामने से एक फकीर द्रुत गति से आता हुआ दिखाई पड़ा । अप्पासाहेब ने सोचा कि यह तो वही फकीर प्रतीत होता है, जो मेरे घर पर आया था तथा उसकी आकृति भी बाबा के चित्र के अनुरुप ही है । फकीर ने तुरन्त ही हाथ बढ़ाकर दक्षिणा माँगी । अप्पासाहेब ने उन्हें एक रुपया दे दिया, तब वह और माँगने लगा । अब अप्पासाहेब ने दो रुपये दिये । तब भी उसे संतोष न हुआ । उन्होंने अपने मित्र चित्रे से 3 रुपये उधार लेकर दिये, फिर भी वह माँगता ही रहा । तब अप्पासाहेब ने उसे घर चलने को कहा । सब लोग घर पर आये और अप्प्साहेब ने उन्हें 3 रुपये और दिये अर्थात् कुल 9 रुपये, फिर भी वह असन्तुष्ट प्रतीत होता था और माँगे ही जा रहा था । तब अप्पासाहेब ने कहा कि मेरे पास तो 10 रुपये का नोट है । तब फकीर ने नोट ले लिया और 9 रुपये लौटाकर चला गया । अप्पासाहेब ने 10 रुपये देने को कहा था, इसलिये उनसे 10 रुपये ले लिये और बाबा द्वारा स्पर्शित 9 रुपये उन्हें वापस मिल गये । अंक 9 रुपये अर्थपूर्ण है तथा नवविद्या भक्ति की ओर इंगित करते है (देखो अध्याय 21) । यहाँ ध्यान दें कि लक्ष्मीबाई को भी उन्होंने अंत समय में 9 रुपये ही दिये थे।
उदी की पुड़िया खोलने पर अप्पासाहेब ने देखा कि उसमें फूल के पत्ते और अक्षत है । जब वे कालान्तर में शिरडी गये तो उन्हें बाबा ने अपना एक केश भी दिया । उन्होंने उदी और केश को एक ताबीज में रखा और उसे वे सदैव हाथ पर बाँधते थे । अब अप्पासाहेब को उदी की शक्ति विदित हो चुकी थी । वे कुशाग्र बुद्घि के थे । प्रथम उन्हें 40 रुपये मासिक मिलते थे, परन्तु बाबा की उदी और चित्र प्राप्त होने के पश्चात उनका वेतन कई गुना हो गया तथा उन्हें मान और यश भी मिला । इन अस्थायी आकर्षणों के अतिरिक्त उनकी आध्यात्मिक प्रगति भी शीघ्रता से होने लगी । इसलिये सौभाग्यवश जिनके पास उदी है, उन्हें स्नान करने के पश्चात मस्तक पर धारण करना चाहिये और कुछ जल में मिलाकर वह तीर्थ की तरह ग्रहण करना चाहिये ।

हरीभाऊ कर्णिक
सन् 1917 में गुरु पुर्णिमा के शुभ दिन डहाणू, जिला ठाणे के हरीभाऊ कर्णिक शिरडी आये तथा उन्होंने बाबा का यथाविधि पूजन किया । उन्होंने वस्तुएं और दक्षिणा आदि भेंट कर शामा के द्वारा बाबा से लौटने की आज्ञा प्राप्त की । वे मस्जिद की सीढ़ियों पर से उतरे ही थे कि उन्हें विचार आया कि एक रुपया और बाबा को अर्पण करना चाहिये । वे शामा को संकेत से यह सूचना देना चाहते थे कि बाबा से जाने की आज्ञा प्राप्त हो चुकी है, इसलिए मैं लौटना नहीं चाहता हूँ । परन्तु शामा का ध्यान उनकी ओर नहीं गया, इसलिए वे घर को चल पड़े । मार्ग में वे नासिक के मुख्य द्वार के भीतर बैठा करते थे, भक्तों को वहीं छोड़कर हरीभाऊ के पास आये और उनका हाथ पकड़कर कहने लगे कि, "मुझे मेरा रुपया दे दो ।" कर्णिक को बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने सहर्ष रुपया दे दिया । उन्हें विचार आया कि मैंने बाबा को रुपया देने का मन में संकल्प किया था और बाबा ने यह रुपया नासिक के नरसिंह महाराज के द्वारा ले लिया । इस कथा से सिद्ध होता है कि सब संत अभिन्न है तथा वे किसी न किसी रुप में एक साथ ही कार्य किया करते है ।

।। श्री सद्रगुरु साईनाथार्पणमस्तु । शुभं भवतु ।।

Wednesday, 23 November 2011

दया करो शिर्डी के साईं

ॐ साईं राम
दया करो शिर्डी के साईं, हमको हर पल है साईं आसरा तुम्हारा 
दया करो शिर्डी के साईं, नहीं कोई तेरे सिवा और है हमारा
दया करो शिर्डी के साईं, नहीं है और कहीं हाल-ए दिल सुनाना
दया करो शिर्डी के साईं, नहीं है और कहीं हमने सर झुकाना

सुनी है जिस तरह हज़ारों की, सुन से फ़रियाद अब वैसे ही हमारी
हंसा दे अब तो हमको दो घड़ी, के रोते हमने सारी उम्र है गुज़ारी
चली हैं आंधियाँ जो ग़म की, कहीं उड़ जाएँ न इस आशियाँ के तिनके
तेरा जो नाम लेते हर घड़ी, बनो रखवाले साईं आप आ के उनके

दीये तूने पानी से जलाये थे, तू ऐसा जादू कोई हमको भी दिखा दे
हमारी राहों में जो बिखरे, हे साईं फूल उन काँटों को बना दे
घेरा हुआ पतझड़ ने जिस को, वहां पे साईं मेरे फिर बहार ला दे
देके हमें रहमतों की रौशनी, अँधेरे जिंदगी के सारे ही मिटा दे

दिया है लाखों को सहारा, हमारा हाथ भी ये थाम ले ओ साईं
तुम तो हो बड़े ही रहमदिल, सुनते अब क्यों नहीं हमारी ये दुहाई 
तुम से सब पाते हैं मुरादें, फिर क्यों ये झोलियाँ तरसती हमारी
सोये हुए भाग्य ये जगा दो, के शान और भी बढ़ जायेगी तुम्हारी
 
  

Tuesday, 22 November 2011

चिट्ठीये नी चिट्ठीये

ॐ साईं राम
चिट्ठीये नी चिट्ठीये बाबा दे द्वारे जा, बाबा दे द्वारे जा के दुखड़े तू मेरे सुना

चिट्ठीये नी चिट्ठीये दुखां नाल लिखिये, 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं ,
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं 

रो रो के वक्त लंगावां मैं, एहना गमां तों न मर जावां मैं
मैं मर चल्ली सरकार, आखीं मेरे बाबा नूं 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
ओ करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं 

सीधी बाबा दे कोल जावीं तूं, ओथे मेरी अर्ज़ पुचावीं तूं 
तेरे करम दी मैं हक़दार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं

तेरे जेहा न कोई होर मैनू, बाबा तेरे करम दी लोड़ मैनु
तेरा मिल जावे बस प्यार, आखीं मेरे बाबा नूं 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं 

मैं तां सदका अली दा मंगेया ऐ, तुसी बाबा सब नु रंगेया ऐ
रंगों मैनु वी सरकार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं

मैनु मेरी किस्मत मार गई, जग जीत गया मैं हार गई
मेरा उजड़ गया घर-बार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं

आखीं जो जो मेरे नाल बीती ऐ, किसे चंगी न मेरे नाल कीती ऐ
इक तूं मेरा ग़मखार आखी मेरे बाबा नूं 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं

आखी जाके दुःख नीमाणी दा, पता लै लै हुण मरजाणी दा
जिन्द कल्ली दुःख हज़ार, आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं

दुखां दी भरी ए चिट्ठी ए, अरदास तेरे वाल लिखी ए 
पावीं जिंदगी विच बहार, आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं

चिट्ठीये नी चिट्ठीये दुखां नाल लिखिये, 
जावीं बाबा दे दरबार आखीं मेरे बाबा नूं
खोलो मेरे वी नसीब सरकार आखीं मेरे बाबा नूं
करो नज़रे-करम इक वार, आखीं मेरे बाबा नूं 
 





मैं अनाथ तुम नाथ हो मेरे

ॐ साईं राम

सब छोड़ के झूठे सहारे ओ साईं जी आया हूँ तेरे द्वारे
ओ बाबा जी आया हूं तेरे द्वारे
मेरे संकट हर लो सारे ओ साईं जी आया हूँ तेरे द्वारे
आया हूँ आया हूँ आया हूँ ओ बाबा जी आया हूं तेरे द्वारे

सब कुछ साईं हाथ है तेरे मैं अनाथ तुम नाथ हो मेरे

आप सब के हैं सब हैं तुम्हारे ओ साईं जी आया हूँ तेरे द्वारे
आया हूँ आया हूँ आया हूँ ओ बाबा जी आया हूं तेरे द्वारे

फूल कलियों में तेरी महक है कोयल मैना में तेरी चहक

कोयल मैना में तेरी चहक
नूर तेरे से नूर तेरे से रोशन नज़ारे ओ साईं जी आया हूँ तेरे द्वारे
आया हूँ आया हूँ आया हूँ ओ बाबा जी आया हूं तेरे द्वारे

नैनों में तस्वीर हो तेरी नाम तेरा जागीर हो मेरी

नाम तेरा जागीर हो मेरी
तेरे नाम के मैं बोलू जयकारे ओ साईं जी आया हूँ तेरे द्वारे
आया हूँ आया हूँ आया हूँ ओ बाबा जी आया हूं तेरे द्वारे

Monday, 21 November 2011

BUILD ANOTHER HOSPITAL

ॐ साईं राम

- SAI BABA SANSTHAN TRUST`SHIRDI TO BUILD ANOTHER HOSPITAL -
In order to expand the Free Health Treatment services for the needy people, the Shri Sai Baba Sansthan Trust`Shirdi
is going to construct one more Hospital at Nandurki village, about 5 km away from Shirdi`Maharashtra.
This proposed 600-bed 'Sai Baba Hospital' would be the third Hospital to be run by the Shirdi Sansthan Trust.

To be constructed at a cost of Rs.245 crore, this Hospital project would be completed in three years time.
The funds for the construction have been already sanctioned by the Shri Sai Baba Sansthan Trust`Shirdi while
the Nandurki village Gram Panchayat has readily donated 15 hectares of land free of cost,
to the Shirdi Sansthan Trust for this Project.

This Hospital will be in addition to the 2 existing Hospitals in Shirdi run by the Shirdi Sansthan Trust.
First is the 'Sai Baba Superspeciality Hospital' and the second is the 'Sainath Hospital', each, with a 200 bed capacity,
for which, the Trust spends Rs.70 crore annually to provide health facilities for the Below Poverty Line (BPL) people.


Over 37,000 poor patients from across the country have been provided free treatment for various ailments
during the last 5 years for which the Trust has spent Rs.54 crore.
The Shirdi Sansthan Trust has also decided to develop approach roads towards & within Shirdi under the
'Shirdi Integrated Road Development Scheme' for which Rs.88 crore has already been sanctioned by the Trust.


Sunday, 20 November 2011

वे अल्लाह साईं सोह्णेया

ॐ साईं राम

साडी कर दे ग़रीबी दूर अल्लाह, असी होए बड़े मजबूर अल्लाह 
साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
हुण सुत्ते तू नसीब जगा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

दुःख ते मुसीबतां ने आन घेरेया, अपने परायाँ ने वी मुंह फेरेया
तेरे अग्गे रो-रो कित्ती ऐ दुआ, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

मिठियां तवेशां ते न पावीं सोह्णेया, रंग मेरी ज़िन्दगी नु लावीं सोह्णेया
इक वारी सारे जग नु वखा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
मेरे सुत्ते तू नसीब जगा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

साईं वे साडी अरदास लेखे लाईं, साईं वे ख़ैर साडी झोलियाँ च पाईं
साईं वे नीवें होके तुरणा सिखाईं, साईं वे बहोता मगरूर न बनाईं
साईं वे साडी अरदास लेखे लाईं, साईं वे साडी अरदास लेखे लाईं

सुन लै नसीबां नु जगान वालेया, रोंदे होए दिलां नु हँसान वालेया
मेनू जग देयां दुखाँ चों बचा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
हुण साडे वी नसीब जगा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
 साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

ताजां दे सरताज शिर्डी वाल्डेया, राजेयाँ दे महाराज शिर्डी वाल्डेया
 ताजां दे सरताज शिर्डी वाल्डेया, राजेयाँ दे महाराज शिर्डी वाल्डेया

रंग लादे ज़िन्दगी नु कीती अर्जी, अग्गे अल्लाह सोह्णेया वे तेरी मर्ज़ी
देदे सदका तू पल धन दा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
 साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
कदे शिर्डी तू मैनू वी बुला, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

रूह गद गद हो गई आ मालका दर्शन करके तेरे, रूह गद गद हो गई आ मालका दर्शन करके तेरे,
रूह गद गद हो गई आ मालका दर्शन करके तेरे,रूह गद गद हो गई आ मालका दर्शन करके तेरे, 

न-हक़ जेह्ड़े दुखाँ विच फसे होए ने, क़ैद- खानेयाँ च जेह्ड़े डक्के होए ने 
ओहना सारेयां नु कर दे रिहा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
 साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
 मेरे सुत्ते तू नसीब जगा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

रहमतां तू साईंयां बेशुमार करदा, मावां नालों वध के वी प्यार करदा
तू ते करदा एं सबदा भला, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
हुण सबना ते करम कमा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

राज ते वारस ते खालक वे तू, सोह्णेया हनी दा मालक वी तू 
मेरी करदे तू माफ़ ख़ता, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
साडे नमाणेया ते करम कमा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया
 साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया

साडे घर विच बरकतां पा, वे अल्लाह साईं सोह्णेया


Saturday, 19 November 2011

साईं नाम कमा लै

ॐ साईं राम
साईं सच्चा सिरजनहार, साईं नाम कमा लै
साईं सबदा पालनहार, साईं नाम कमा लै
हीरे मोती सारे ओये, एथे छड जांवेंगा
मौत जदों नेड़े आई, फिर पछ्तांवेंगा
छड माया दा संसार , साईं नाम कमा लै
साईं सबदा पालनहार, साईं नाम कमा लै
पाप पुन सारे ओहनू, सौंप दे तू बंदिया
शीश साईं चरना च झुका दे हुण बंदिया
साईं सबदा बक्शनहार साईं नाम कमा लै
साईं सबदा पालनहार, साईं नाम कमा लै
जिंना लयी पापां भरी , कमाई करी जान्ना एं
अंत समे च किसे कम्म नहियों आणा एं
तूँ अपणा जनम सवार, साईं नाम कमा लै
साईं सबदा पालनहार, साईं नाम कमा लै
गरीब ते मासूम दी तू , सेवा करी जांवेंगा
पशुआं ते पंछियाँ दी सेवा करी जांवेंगा
हो जावेगा उद्दार, साईं नाम कमा लै
साईं सबदा पालनहार, साईं नाम कमा लै

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एक 18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठा था. अचानक वो ख़ुशी में जोर से चिल्लाया "पिताजी, वो देखो, पेड़ पीछे जा रहा हैं". उसके पिता ने स्नेह से उसके सर पर हाँथ फिराया. वो लड़का फिर चिल्लाया "पिताजी वो देखो, आसमान में बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं". पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने कहा इतना बड़ा होने के बाद भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से क्यों नहीं दिखाते?? पिता ने कहा की वो लोग डॉक्टर के पास से ही आ रहे हैं. मेरा बेटा जनम से अँधा था, आज ही उसको नयी आँखे मिली हैं. #नेत्रदान करे. किसी की जिंदगी में रौशनी भरे.