ॐ साईं राम
पीसने का अभिप्राय गेहूँ से नहीं, वरन् अपने भक्तों के पापो, दुर्भाग्यों, मानसिक तथा शाशीरिक तापों से था । उनकी चक्की के दो पाटों में ऊपर का पाट भक्ति तथा नीचे का कर्म था । चक्की का मुठिया जिससे कि वे पीसते थे, वह था ज्ञान । बाबा का दृढ़ विश्वास था कि जब तक मनुष्य के हृदय से प्रवृत्तियाँ, आसक्ति, घृणा तथा अहंकार नष्ट नहीं हो जाते, जिनका नष्ट होना अत्यन्त दुष्कर है, तब तक ज्ञान तथा आत्मानुभूति संभव नहीं हैं ।
-: साईं मुख वचन :-
"चक्की के केंद्र मे जो ज्ञानरूपी दंड है, उसी को कस कर पकड़ लो, जिस प्रकार तुम मुझे करते देखते हो ! सिर्फ केंद्र की ओर अग्रसर होते जाओ और तब यह निश्चित है की तुम इस भवसागर रुपी चक्की से अवश्य बचोगे"