ॐ साईं राम
सुखदायक सिद्ध साईं के नाम का अमृत पी
दुख: से व्याकुल मन तेरा भटके न कभी
थामे सब का हाथ वो, मत होई ये भयभीत
शिर्डी वाला परखता संत जनों की प्रीत
साईं की करुणा के खुले शत-शत पावन द्वार
जाने किस विध कब कहाँ हो जाये बेडा पार
जहाँ भरोसा वहाँ भला शंका का क्या काम
तू निश्चय से जपता जा साई नाम अविराम
ज्योर्तिमय साई साधना नष्ट करें अंधकार
अंतःकरण से रे मन उसे सदा पुकार
साई के दर विश्वास से सर झुका नही इक बार
किस मुँह से फिर मांगता क्या तुझको अधिकार
पग-पग काँटे बोय के पुष्प रहा तू ढूंढ
साई नाम के सादे में ऐसी नही है लूट
मीठा-मीठा सब खाते कर-कर देखो थूक
महालोभी अतिस्वार्थी कितना मूर्ख तू
न्यायशील सिद्ध साई से जो चाहे सुख भी
उसके बन्दो तू भी न्याय तो करना सीख
परमपिता सत जोत से क्यूं तूं कपट करे
वैभव उससे मांग कर उसे भी श्रद्धा दे
साई तेरी प्रारब्ध के बदले है सकता लेख
कभी मालिक की ओर तू सेवक बनकर देख
छोड़ कर इत उत झांकना भीतर के पट खोल
निष्ठा से उसे याद कर मत हो डावांडोल
साई को प्रीतम कह प्रीत भी मन से कर
बिना प्रीत के तार हिले मिले न प्रिय से वर
आनन्द का वो स्त्रोत है करुणा का अवतार
घट घट की वो जानता महायोगी सुखकार